Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

अब मुसलमानों से किनारा करके आगे बढ़ेगी बसपा

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने लोकसभा चुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद अब यूपी उपचुनाव से पहले संगठन स्तर पर बदलाव शुरू कर दिया है। सूत्रों की मानें तो 2022 के विधान सभा और 2024 के लोकसभा चुनावों से सबक लेकर बीएसपी अब दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के साथ ही उन्हें प्राथमिकता देने में लगी हुई है। वहीं मुसलमानों से मायावती का मोह भंग होता जा रहा है। मुसलमानों से मोह भंग होने का सबसे बड़ा कारण है बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों को भी उनके समाज द्वारा वोट नहीं दिया जाना। बहनजी समझ गई हैं कि मुसलमानों चक्कर में वह अपने अन्य वोट बैंक पर ध्यान नहीं दे रही थीं, जिसका खामियाजा उन्हें लगातार चुनाव में भुगतना पड़ रहा है। इसी के चलते मायावती द्वारा अब दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के लिए बनी कमेटी के गठन में ब्राह्मणों और मुसलमानों को लगभग दूर रखा जा रहा है।

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यूपी बीजेपी में क्यों नहीं उभर रही है दलित लीडरशिप

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से जो झटका मिला है, उससे बीजेपी आलाकमान अभी तक उबर नहीं पाया है। हार की कई स्तरों पर लगातार समीक्षा हो रही है। बीजेपी प्रत्याशियों की हार और वोट प्रतिशत में गिरावट के लिये फिलहाल कई छोटे-छोटे के अलावा दो-तीन बढ़े कारण नजर आ रहे हैं। इसमें प्रत्याशियों के प्रति जनता की नाराजगी के अलावा ओबीसी और दलित वोट बैंक के खिसकने को सबसे बड़ी वजह समझा जा रहा है। इसी के चलते पार्टी के सजातीय मंत्रियों और पदाधिकारियों की लगाम कसने के साथ अब इस वोट बैंक को वापस भाजपा की तरफ लाने की जिम्मेदारी भी सजातीय नेताओं को सौंपी गई है।

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रथोत्सव-सा उत्सव दूसरा नहीं

भारत के चार प्रमुख धामों में श्री जगन्नाथपुरी एक परम पावन धाम है। चारों धामों का अपना पृथक-पृथक महत्व है, किंतु आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार प्रमुख तीर्थस्थलों को एक में जोड़कर पूरे भारत को एक सूत्र में आबद्ध कर दिया है और भारत के चारों प्रमुख तीर्थों में अपनी एक-एक पीठ भी स्थापित कर दी है। जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ स्वामी का मंदिर अपने-आप में पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही है।
यह मंदिर सन् 1199 ई. में स्थानीय नरेश अनंगभीम देव ने बनवाया और उसमें काष्ठ प्रतिमाओं को स्थापित किया। यह मंदिर 192 फुट ऊंचा है। मंदिर का घेरा 665 फुट लंबा और 615 फुट चौड़ा है। मंदिर के चारों दिशाओं में चार फाटक हैं। पूर्व दिशा का द्वार बहुत सुंदर बनाया गया है। इसे ‘सिंह द्वार’ कहते हैं। इस द्वार के दोनों ओर एक-एक सिंह की मूर्ति बनी है।

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धर्मनिरपेक्ष भारत को यूसीसी से नहीं शरिया से चलाने की जिद्द

मोदी सरकार द्वारा पहली जुलाई से देश में भारतीय न्याय संहिता लागू किये जाने के बाद अब समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का मुद्दा गरमाने लगा है, जिस तरह से मोदी सरकार के मंत्री और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूसीसी के पक्ष में बयानबाजी कर रहा हैं उससे यूसीसी विरोधियों के भी सुर मुखर होने लगे हैं। सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड तो पहले से ही यूसीसी का विरोध कर रहा था, अब शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसी क्रम में लखनऊ में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएसपीएलबी) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि समान नागरिक संहिता उन्हें किसी दशा में स्वीकार नहीं है। उनकी कौम देश के कानून से नहीं चलेगी, बल्कि शरीयत कानून को ही मानेगी। बोर्ड ने धमकी वाले अंदाज में कहा है कि मोदी सरकार यूसीसी बनाने की प्रक्रिया को रोक दे।

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बाबाओं के मायाजाल में फंसती भीड़

आजकल विभिन्न सामाजिक वर्गों में अलग-अलग किस्म के अंधविश्वास प्रचलित हैं। इतने जागरूकता अभियानों के बावजूद आज भी आपको गांव-कस्बों में भूत-प्रेत के कस्से सुनने को मिल जाएंगे। वहीं हायर क्लास के अंधविश्वास अलग हैं। इस क्लास में भी असुरक्षा की भावना कम नहीं है। इस वर्ग के लोग यूं तो अत्याधुनिक होने का दावा करते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे एयरकंडिशंड आश्रमों वाले गुरुओं के यहां लाखों का चढावा चढाने से लेकर अपनी सफलता/असफलता की वजह लकी चार्म को मानने से भी गुरेज नहीं करते। समाज में अतार्किक विचारधारा वाले इतने अधिक लोग कहां से आ गए? जवाब है, वह परवरिश और माहौल जो हम अपने बच्चों को देते हैं। शिक्षा व्यवस्था के तहत बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उतने प्रयास नहीं हो रहे जितने होने चाहिए। संयुक्त परिवारों का टूटना और नई जीवन शैली का एकाकीपन, यांत्रिकता, तनाव आदि से पिछले रसायन ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी जहां हर व्यक्ति परेशान और बेचौन हो चला है। इन्हीं सामाजिक-मनोवैज्ञनिक स्थितियों के बीच लोग जाने-अनजाने ऐसे बाबाओं की ओर उन्मुख होने लगते हैं जो लोगों को हर दुरूख-तनाव से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। -प्रियंका सौरभ

पिछले कुछ दशकों से उभरने वाले किस्म-किस्म के बाबाओं ने राष्ट्र के मुख पर कालिख पोतने का का किया है। अपनी अनुयायी स्त्रियों के शारीरिक शोषण, हत्या-अपहरण से लेकर अन्य जघन्य अपराध करने वाले बाबाओं का प्रभाव इस कदर बढ़ता जा रहा है कि आज जनता को तो छोड़िये, सदिच्छाओं वाले राजनेता, अभिनेता, अधिकारी, बुद्धिजीवी इत्यादि वर्ग भी उनसे घबराने लगा है। आखिर इन बाबाओं के महाजाल का समाजशास्त्र क्या है? इसी तरह सवाल यह भी है कि इनके पीछे जनता के भागने का क्या अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान है? आजकल विभिन्न सामाजिक वर्गों में अलग-अलग किस्म के अंधविश्वास प्रचलित हैं। इतने जागरूकता अभियानों के बावजूद आज भी आपको गांव-कस्बों में भूत-प्रेत के किस्से सुनने को मिल जाएंगे। वहीं हायर क्लास के अंधविश्वास अलग हैं। इस क्लास में भी असुरक्षा की भावना कम नहीं है। इस वर्ग के लोग यूं तो अत्याधुनिक होने का दावा करते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे एयरकंडिशंड आश्रमों वाले गुरुओं के यहां लाखों का चढावा चढाने से लेकर अपनी सफलता/असफलता की वजह लकी चार्म को मानने से भी गुरेज नहीं करते।
ऐसी मान्यताएं भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी देशों में पाई जाती हैं। सवाल यह उठता है कि समाज में अतार्किक विचारधारा वाले इतने अधिक लोग कहां से आ गए? जवाब है, वह परवरिश और माहौल जो हम अपने बच्चों को देते हैं। शिक्षा व्यवस्था के तहत बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उतने प्रयास नहीं हो रहे जितने होने चाहिए। संयुक्त परिवारों का टूटना और नई जीवन शैली का एकाकीपन, यांत्रिकता, तनाव आदि से पिछले रसायन ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी जहां हर व्यक्ति परेशान और बेचौन हो चला है। इन्हीं सामाजिक-मनोवैज्ञनिक स्थितियों के बीच लोग जाने-अनजाने ऐसे बाबाओं की ओर उन्मुख होने लगते हैं जो लोगों को हर दुरूख-तनाव से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। लोगों में वहम पैदाकर फायदा उठाने की कला बाजार ने भी सीख ली है। यही वजह है कि बाजार के जन्म दिए हुए बहुत सारे त्योहार आज परंपरा के नाम पर कुछ दूसरा ही रूप ले चुके हैं।

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अखिलेश जीत से अहंकार नहीं पालें, बीजेपी के हश्र से लें सबक

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के हौसले इस समय काफी बुलंद हैं। उनकी पार्टी ने यूपी की 80 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की है। इसी के बाद वह यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 और 2019 में 62 और अबकी 2024 में 33 सीटें एवं यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में 312 तथा 2022 में 273 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमलावर हैं। ऐसा होना स्वभाविक भी है, उन्हें (अखिलेश यादव) अपने नेतृत्व में पहली बार लोकसभा चुनाव में 37 सीटों पर जीत का स्वाद चखने को मिला है। इससे पहले अखिलेश की जीत रिकार्ड ना के बराबर था। वह समाजवादी पार्टी की बागडोर संभालने के बाद लगातार जीत के लिये तरस रहे थे। 2012 के विधान सभा चुनाव, जो समाजवादी पार्टी द्वारा मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़े गये थे गये थे, उसमें समाजवादी पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद मुलायम ने अपनी जगह बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था, जिसको लेकर पार्टी में मनमुटाव भी देखने को मिला था। तब से लेकर आज तक समाजवादी पार्टी यूपी से लेकर दिल्ली तक के चुनाव में अपनी पैठ नहीं बना पाई थी।

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विस. उप चुनाव जीतने के लिये योगी ने संभाला मोर्चा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव में मनमाफिक सीटें नहीं मिलने के दाग को धोने के लिये स्वयं मोर्चा संभाल लिया है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में बड़ी जीत हासिल करके योगी विपक्ष को एक बार फिर से बैकफुट पर ढकेलने की रणनीति बना रहे हैं। खासकर अखिलेश यादव द्वारा जीत के बाद छोड़ी गई करहल और अयोध्या लोकसभा से सांसद चुने गये सपा नेता अवधेश प्रसाद के मिल्कीपुर विधान सभा सीट त्यागपत्र देेने के बाद खाली हुई इन दोनों सीटों पर हुए चुनाव को गंभीरता से ले रही हैं। योगी ने इन 10 में से अपने हिस्से की पांच सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही शेष पांच सीटों को भी जीतने की रणनीति बनाई है। उप चुनाव की कमान खुद मुख्यमंत्री ने अपने हाथों में लिया है। उनके द्वारा सभी 10 सीटों पर 16 मंत्रियों की टीम तैनात कर उन्हें जीत पक्की करने की जिम्मेदारी दी गई है। इन सीटों के नतीजों से ही इन मंत्रियों की हैसियत भी घटे या बढ़ेगी।

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नीट परीक्षा विवाद… आखिर क्यों ?

UGC-NET परीक्षा की नई तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने बताया है कि UGC-NET की परीक्षा 21 अगस्त से 4 सितंबर के बीच में होने वाली है, इसके साथ-साथ ज्वाइंट CSIR-UCG NET की परीक्षा जुलाई 25 से 27 जुलाई के बीच में होने वाली है। इसी कड़ी में NCET परीक्षा 10 जुलाई को करवाई जाएगी। बड़ी बात यह है कि इन परीक्षाओं को इस बार ऑनलाइन करवाया जा रहा है क्योंकि पिछली बार UGC-NET की परीक्षा ऑफलाइन करवाई गई थी।
हर साल लाखों छात्र मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए NEET की परीक्षा देते हैं। NEET परीक्षा विवाद के बाद लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। 5 मई को देशभर से करीब 23 लाख स्टूडेंट्स ने यह परीक्षा दी थी, लेकिन पेपरों की बिक्री से लेकर अंकों के अवैध वितरण की ग्रेस पद्धति और परिणामों की घोषणा तक हर स्तर पर घोटाला हुआ।
नीट परीक्षा मानसिक योग्यता का परिक्षण होता है।
एक परीक्षा 23 लाख छात्र और बहुत से सवाल। 50 हजार रूपए की पुस्तकें, लाखों रुपए कोचिंग फीस के बाद 12-12 घंटे तक बच्चों की पढ़ाई और उसके बाद हजारों प्रश्नों में से 180 प्रश्न पूछे जाते हैं जिनके उत्तर छात्रों को देने होते हैं। फिर मेरिट लिस्ट बनने के बाद छात्रों को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलता है।
इन घोटालों के चलते इस साल नीट परीक्षा में टॉपर्स की संख्या 67 तक पहुंच गई जबकि पिछले साल टॉपर्स की यही संख्या सिर्फ दो थी।

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त्योहारों के मौसम और मुहर्रम पर शांति सरकार की बड़ी कसौटी

उत्तर प्रदेश में त्योहारों का सीजन शुरू होने वाला है। सावन का महीना भी लगने वाला है। वहीं इसी दौरान मुहर्रम का सिलसिला भी शुरू हो जायेगा। ऐसे में कानून व्यवस्था सरकार और पुलिस के लिये बढ़ी चुनौती होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि कांवड़ यात्रा हो या मुहर्रम सभी की आस्था का सम्मान किया जाए, लेकिन नई परंपरा की अनुमति नहीं दी जाएगी। 22 जुलाई से पवित्र श्रावण मास का प्रारंभ हो रहा है। इस अवधि में श्रावणी शिवरात्रि, नागपंचमी और रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। परंपरागत कांवड़ यात्रा निकलेगी। इसलिए सरकार ने आदेश दिया है कि पिछले वर्षों में हुई दुर्घटनाओं से सबक लेते हुए इस बार निर्धारित आवाज में ही डीजे बजाने की अनुमति दी जाए और उसकी ऊंचाई भी ज्यादा न हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि सात से नौ जुलाई तक जगन्नाथ रथ यात्रा, सात व आठ से 17-18 जुलाई तक मोहर्रम और 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पावन अवसर है। इसलिए सभी संबंधित विभाग इसकी तैयारियां समय से कर लें।
गौरतलब हो, कांवड़ यात्रा की दृष्टि से उत्तराखंड की सीमा से लगे जिलों के अलावा गाजियाबाद, मेरठ, अयोध्या, बरेली, प्रयागराज, वाराणसी, बाराबंकी व बस्ती जिले महत्वपूर्ण हैं। कावंड़ यात्रा आस्था के उत्साह का आयोजन है। योगी सरकार ने आदेश दिया है कि परंपरागत रूप से नृत्य, गीत, संगीत इसका हिस्सा रहे हैं। ऐसे में डीजे, गीत-संगीत आदि की आवाज निर्धारित मानकों के अनुरूप ही हो।

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अनुप्रिया की साख पर आई आंच तो बीजेपी की लगाई क्लास

अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की 2024 के लोकसभा चुनाव में सियासी जमीन क्या हिली,उन्हें दलित,कुर्मी पिछड़े सब याद आने लगे हैं। 2019 में मिर्जापुर लोकसभा सीट का चुनाव अनुप्रिया ने करीब दो लाख बत्तीस हजार वोटों के अंतर से जीता था, लेकिन 2024 में जीत का अंतर 37 हजार वोटों के करीब सिमट गया। ऐसा होते ही अनुप्रिया फिर से अपनी साख लौटाने के लिये उसी बीजेपी को घेर रही हैं जिसकी मोदी सरकार में वह और योगी सरकार में उनके पति मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। अपनी खोई हुई जमीन फिर से हासिल करने के लिये अनुप्रिया ने ओबीसी व एसटी के लिए आरक्षित पदों पर भर्ती को लेकर जो सवाल खड़े किये वह उनके सियासी सुर्खियां बटोरने का प्रयास के अलावा कुछ नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि इसके पीछे उनकी कुर्मी वोट बैंट के खिसकने की घबराहट को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि खुद को अपनी जाति का एकमात्र नेता मान चुकीं अनुप्रिया को इस बार लोकसभा चुनाव में कड़े संघर्ष में बमुश्किल जीत मिली थी, उससे वह काफी दबाव में हैं।
दरअसल, लोकसभा चुनाव में उन्हें अपनी परंपरागत सीट पर अनुप्रिया को बड़ी मशक्कत और कड़े संघर्ष में जीत मिली थी, वहीं, राबर्टगंज सीट उनके हाथ से निकल गई।

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