Monday, November 25, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

हाल ही में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केअर की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2011 से 2017 तक दुनिया भर में सेल्फी लेते समय 259 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 159 मौतें अकेले भारत में हुईं। जब 1876 में पहली बार फोन का आविष्कार हुआ था तब किसने सोचा था कि यह अविष्कार जो आज विज्ञान जगत में सूचना के क्षेत्र में क्रांति लेकर आया है कल मानव समाज की सभ्यता और संस्कारों में क्रांतिकारी बदलाव का कारण भी बनेगा। किसने कल्पना की थी जिस फोन से हम दूर बैठे अपने अपनों की आवाज़ सुनकर एक सुकून महसूस किया करते थे उनके प्रति अपनी फिक्र के जज्बातों पर काबू पाया करते थे एक समय ऐसा भी आएगा जब उनसे बात किए बिना ही बात हो जाएगी। जी हाँ आज का दौर फोन नहीं स्मार्ट फोन का है जिसने एक नई सभ्यता को जन्म दिया है। इसमें फेसबुक व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ट्विटर जैसे अनेक ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जहाँ बिन बात किए ही बात हो जाती है। आज के इस डिजिटल दौर में हम एक ऐसे रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ लाइक और कमेंट्स से जज्बात बयां होते हैं। दोस्ती और नाराज़गी ऑनलाइन निभाई जाती हैं। यह क्रांति नहीं तो क्या है कि आज ईंटरनेट से चलने वाला स्मार्टफोन बहुत से लोगों के लिए उनका पहला कंप्यूटर बन गया तो किसी के लिए उसकी प्राइवेट टीवी स्क्रीन, किसी के लिए पहला पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर तो किसी के लिए पहला कैमरा। वो लोग जो एक छोटे से कमरे में अनेक लोगों के साथ जीने के लिए विवश हैं उनके लिए उनके स्मार्टफोन की छोटी सी स्क्रीन ही उनकी पर्सनल दुनिया बन गई। जो बच्चे कल तक गली मोहल्लों और पार्कों में आज़ाद पंछी की तरह उछलते कूदते और चेहचहाते उनकी रौनक हुआ करते थे आज अपने अपने स्मार्टफोन के कैदी बनकर रह गए हैं। आज बच्चों का बचपन भी डिजिटल हो गया है क्योंकि जिन बच्चों का बचपना कल तक परिकथाओं और दादी नानी की कहानियों के साथ मासूमियत में बीतता था आज वो बचपन स्मार्टफोन की स्क्रीन पर विभिन्न विषयों की चाही अनचाही जानकारी के “ज्ञान” के साथ अपनी मासूमियत कब खो देता है पता ही नहीं चलता। लेकिन आज वो बचपन केवल मासूमियत ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य भी खो रहा है क्योंकि जिन हाथों में कल तक गुल्ली दंडा बैट बॉल जैसे खिलौने होते थे जिन्हें लेकर वो घंटों दौड़कर भी नहीं थकते थे आज वो हाथ स्मार्टफोन के कारण कम उम्र में ही आंखों में चश्मा और शरीर पर मोटापे एवं उससे होने वाली बीमारियों का बोझ उठाने के लिए विवश हैं।
दरसअल आज मोबाइल कनेक्टिविटी और डाटा के घटते दामों के चलते दुनिया भर में स्मार्टफोन और ईंटरनेट का प्रयोग आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है। भारत में ही लगभग 80% घरों में मोबाइल फोन उपयोग किया जाता है और लगभग 300 मिलियन भारतीय स्मार्टफोन का प्रयोग करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मोबाइल डाटा खपत 2022 तक पांच गुना बढ़कर 17.5 जी बी तक पहुंच जाएगी जो 2017 में 3.5 जी बी थी। एक जानकारी के अनुसार भारतीयों ने मोबाइल एप्स डाऊनलोड करने में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। 2017 में भारतीयों ने 12.1 बिलियन एप अपने मोबाइल फोन में डाउनलोड किए थे जबकि अमेरिका में 11.3 बिलियन एप। एक सर्वे में यह बात सामने आई कि 2015 से 2017 के बीच भारत में एप डाउनलोड करने में तीन गुना की बढ़ोतरी हुई जबकि अमेरिका में पाँच प्रतिशत की कमी।
ऐसे में जब स्मार्टफोन और इंटरनेट का प्रयोग हमारे समाज में लगातार बढ़ता ही जा रहा है तो यह आवश्यक हो गया है कि हम इससे होने वाले फायदे और नुकसान दोनों से वाकिफ हों और इस विषय में समाज में जागरूकता फैलाएं। क्योंकि हम किसी भी चीज का उपयोग तभी कर पाते हैं जब हमें उसकी अच्छाई और बुराई दोनों का ज्ञान हो अन्यथा वो वस्तु हमारा उपभोग कर लेती है। स्मार्टफोन के मामले में यही हो रहा है। यह जब उन हाथों में चला जाता है जिन्हें सही गलत की जानकारी नहीं होती तो अज्ञानतावश बहुत नुकसान पहुँचाता है। यही कारण है कि कभी सेल्फी लेने के चक्कर में किसी की मौत की खबर आती है तो कभी ब्लू व्हेल जैसे किसी खेल में किसी बच्चे की आत्महत्या करने की खबर आती है। अभी कुछ दिनों पहले एक बच्चा लगातार 15 दिनों तक पबजी खेलता रहा और उसमें इतना डूब गया कि खेलते खेलते ही उसकी मौत हो गई। इसके अतिरिक्त अपना अधिकांश समय फोन की आभासी दुनिया पर बिताने के कारण हम सभी खुद भी काफी हद तक कृत्रिम होते जा रहे हैं। तभी तो कभी किसी दुर्घटना की परिस्थिति में हम पीड़ित की मदद करने को प्राथमिकता देने के बजाए घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने को एहमियत दे बैठते हैं तो कभी चार पांच लोग मिलकर किसी गरीब को कुछ केले देते हुए अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर अपलोड करके दानवीर की कृत्रिम छवि बनाने की कोशिश करते नज़र आते हैं। इसके अलावा चूंकि इंटरनेट पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी डाल सकता है तो न सिर्फ कई प्रकार की अप्रामाणिक जानकारी पाई जाती है बल्कि अनेक प्रकार की अश्लीलता और नकारात्मता परोसने वाली साइट्स की भी भरमार है। ऐसे में छोटे बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन कितना खतरनाक हो सकता है यह साबित हो रहा है आए दिन छोटे छोटे बच्चों के द्वारा बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों में लिप्त होने की बढ़ती घटनाओं से।
यह बात सही है कि स्मार्टफोन और इनटरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है लेकिन यह भी सच है कि इसने इंसान को इंसान से दूर भी कर दिया है। आज इंसान परिवार और दोस्तों के साथ होटल में जाता है लेकिन वहाँ भी हर कोई अपने अपने फोन में डूबा दिखाई देता है। जाहिर है बच्चे हों या बढ़े हों, महिला हो या पुरूष हो मोबाइल ने सभी को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। लेकिन अब दुनिया भर की विभिन्न रिसर्च में स्मार्टफोन के अधिक प्रयोग के शारीरिक मानसिक और सामाजिक सभी प्रकार के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। इसलिए आवश्यक है कि समाज के स्वास्थ्य एवं परिवार के संस्कारों की रक्षा के लिए स्मार्टफोन के उपयोग और उसके दुरुपयोग के अंतर को समझा जाए और मानवता के बेहतर भविष्य की नींव रखी जाए।
डॉ नीलम महेंद्र