कानपुर। कहा जाता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें दिनोंदिन गहराती ही जा रहीं हैं। लगभग हर विभाग में भ्रष्टाचार किसी ना किसी रूप में अपनी मौजूदगी बनाये रहा है। किसी में दिख जाता है तो किसी में विलुप्त परजीवी की तरह अपनी पकड़ बनाये हुए है। चाहे पूर्ववर्ती सरकारें रहीं हो या वर्तमान सरकार, कोई भी सरकार भ्रष्टाचार से अछूती नहीं रही लेकिन इस भ्रष्टाचार ने अब तमाम बेरोजगारों को रोजगार देने में अहम भूमिका अदा करना शुरू कर दिया है या यूं कहें कि ‘‘सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पैदाकर रहा है पत्रकार!’’
शहर के कई विभागों पर उपरोक्त शीर्षक सटीक बैठ रहा है लेकिन आज हम कानपुर विकास प्राधिकरण (के. डी. ए.) की बात कर रहे हैं। कहा जाता है कि कानपुर विकास प्राधिकरण में आवंटियों का कोई भी काम बिना लेनदेन के नहीं होता है, चाहे वह भूखण्ड/भवन की रजिस्ट्री का मामला हो या नक्शा पास कराने से लेकर निर्माण कार्य व कब्जा प्राप्त करने का, बिना चढ़ावे के कुछ भी कराना सम्भव नहीं, यहाँ तक कि किसी भी भवन या भूखण्ड की फाइल देखने, बकाया धनराशि का हिसाब बनवाने आदि सब का रेट तय है और वह प्राधिकरण के कर्मचारियों / अधिकारियों को चुकाने के बाद ही सभी कार्य कराये जा सकते हैं। यह प्रचलन एक संस्कृति का रूप ले चुका है एवं यह प्रचलन बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाते हुए सैकड़ों पत्रकार पैदा कर रहा है।
जी हां, कुछ वर्षों पहले की बात करें तो एक दो पत्रकार ही प्राधिकरण में दिखलाई पड़ते थे। लेकिन, इन दिनों दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में पत्रकार प्राधिकरण में चहलकदमी करते हर रोज देखे जा सकते हैं। उनकी रोजी-रोटी का बहुत ही आसान जरिया कानपुर विकास प्राधिकरण बन चुका है। दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, एवं न्यूज चैनलों में कार्यरत तमाम पत्रकार चाहे वो वैतनिक हों या अवैतनिक उनकी रोजी रोटी कानपुर विकास प्राधिकरण से चल रही थी और चल रही है, अब उनकी जमात में न्यूज पोर्टलों के ऐसे सैकड़ों पत्रकारों की भी मौजूदगी देखी जा सकती है जिनको वेतन के नाम पर कुछ भी नहीं बल्कि संस्थान खुद उनसे मासिक वसूली करते हैं। ऐसे सैकड़ों पत्रकारों की धमाचैकड़ी भी केडीए परिसर में खूब देखी जा सकती है।
सूत्रों की मानें तो कानपुर विकास प्राधिकरण में पत्रकारिता करने वाले ज्यादातर पत्रकार, फिर चाहे वो अवैतनिक हो या वैतनिक, उनकी नजर इन दिनों दिनों प्राधिकरण से सम्पन्न होने वाले कार्यों के अलावा महानगर में हो रहे अवैध निर्माणकार्यों की खोज में रहती है। सैकड़ों की संख्या में ये पत्रकार प्राधिकरण में चहलकदमी करते रहते हैं और आवंटियों के काम का ठेका लेकर प्राधिकरण के अधिकारियों से पत्रकारिता का रौब दिखा कर करवा लेते हैं। इसके साथ ही किसी भी जोन में किये जा रहे अवैध एवं मानक विहीन निर्माण कार्यों पर इन पत्रकारों की नजर जैसे ही पड़ती है फौरन उसकी फोटो खीचकर सम्बन्धित कर्मचारी अथवा अधिकारी को भेजते हैं। इसके बाद पत्रकार खबर चलाने की धमकी देकर वसूली कर रहे हैं और इसमें अपनी भलाई देखते हुए कर्मचारी व अधिकारी भी सहयोग कर रहे हैं क्योंकि वो भी फजीहत से किनारा करने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
वर्तमान में सैकड़ों ऐसे पत्रकार दिनोंदिन पैदा हो रहे हैं जिनका वेतन एक रुपया भी नहीं लेकिन हर रोज का खर्च हजारों में होता है। उनका मानना होता है कि केडीए में अगर किसी भी एक दो अधिकारी या कर्मचारी से सांठगांठ ठीक से हो गई तो समझो जेब भर जायेगी, वेतन की बात कौन करे बल्कि संस्थान को तयशुदा धनराशि का भुगतान भी आराम से हो जायेगा और वह रौबदार पत्रकार भी कहलायेगा।
पत्रकारों की आड़ में कर्मचारी व अधिकारी निकाल रहे आपसी खुन्नश!
कानपुर विकास प्राधिकरण का माहौल कुछ ऐसा बन चुका है कि पत्रकारों की आड़ में आपसी खुन्नश भी खूब निकाली जा रही है। सूत्रों की मानें तो कर्मचारियों में गुटबन्दी हो गई है और उन्होंने व्हाट्सअप व यू-ट्यूब यूनीवर्सिटी से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त पत्रकारों से अपनी नजदीकी बना रखी है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में कर्मचारी व अधिकारी विभागीय खामियों को अपने नजदीकी पत्रकारों को बता देते हैं। इसके बाद व्हाट्सअप व यू-ट्यूब पत्रकारिता से नये व पुराने मामलों को खूब खेला जा रहा है और उसके बदले में पत्रकारों की जेबों को गर्म किया जा रहा है। जेब गर्म होने की चर्चा के चलते देखा देखी तमाम पत्रकार पैदा हो रहे हैं। इन्हीं पत्रकारों के माध्यम से प्राधिकरण में किये गये भ्रष्टाचार के कई मामले तो इन दिनों उजागर हो ही रहे हैं साथ ही पत्रकारों की जेब भी भर रही है।
-श्याम सिंह पंवार।