Tuesday, November 26, 2024
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कोरोना वायरस पर मोमबत्ती और दिये के तापमान का प्रभाव

प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे उन डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों, एयर इंडिया, सफाई कर्मचारियों नर्सों के हौसले को बढ़ाने के लिए उनका ताली या थाली बजाकर स्वागत और हौसला अफजाई करें। लेकिन भारत देश के अंदर थाली और घण्टा पीटने की बातों में अवैज्ञानिक एवं पाखण्डवाद के कारण उसको वायरस के संबंध से पूरी दुनिया हमारी इन हरकतो पर हंसती है।
अब दिनांक 3 अप्रैल को माननीय प्रधानमंत्री जी ने फिर से 5 अप्रैल की रात को बिजली बंद करके कैंडल और दिए जलाकर वायरस को मारने की अवैज्ञानिक अफ़वाहों मुहिम शुरू कर दी।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके कई लोग अलग अलग तरीके से संदेशों को पाखण्ड विज्ञान से जोड़कर अफवाहों का बाजार गर्म कर रहे हैं। जबकि मोदी जी का बिजली बंद करने का कारण एक ऊर्जा के क्षेत्र में आर्थिक मजबूती हो सकता है लेकिन वायरस को मारने में सिर्फ एक अफवाह। -डॉ अजय कुमार पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च फेलो भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान, दिल्ली
वायरस और लोगों का भ्रम
विषाणु (virus) अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है।
यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है।
इसलिए इस गंभीर चुनौती के बीच हम सभी को कोरोना वायरस को हल्के में न लें तो और इस समय बिल्कुल भी घर से बाहर न निकलें क्योंकि आपको नही पता आप जिस रास्ते से गुजर रहे हैं उस रास्ते से कोई कोरोना का मरीज गया हो और उसने खाँसा हो या थूंककर गया हो। इसलिए सावधानी बरतें और अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद करें।
विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन 1796 में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन 1886 में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी 1892 में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा।
विषाणु, लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं।
COVID-19_का_नामकरण
चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला 2019 नोवेल कोरोनावायरस इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण सन् 2019-20 काल में तेज़ी से उभरकर 2019–20 वुहान कोरोना वायरस प्रकोप के रूप में फैलता जा रहा है। हाल ही में WHO ने इसका नाम COVID-19 रखा।
लैटिन भाषा में “कोरोना” का अर्थ “मुकुट” होता है और इस वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढाँचों से इलेक्ट्रान सूक्षमदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इसका नाम रखा गया था।
COVID-19 की संरचना
कोरोनावायरस COVID-19 की सतह का त्रि-आयामी (3D) मॉडल विकसित किया गया है। फ्यूजन एनिमेशन द्वारा बनाया गया, नया मॉडल वैज्ञानिकों के लिए मुफ्त में उपलब्ध है ताकि वे इस स्थिति से निपटने के लिए उपचार के विकास में उपयोग कर सकें।
सार्वजनिक डेटाबेस में उपलब्ध संबंधित COVID-19 कोरोनावायरस संरचनाओं से 3 डी भागों को एक साथ जोड़कर मॉडल बनाया गया था। डेवलपर्स द्वारा उपयोग किए जाने वाले घटकों में शामिल हैं:
• स्पाइक (एस) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 6CRV)
• लिफाफा (ई) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 5X29)
• झिल्ली (एम) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 3I6G)
वे ध्यान दें कि दिखाया गया एम प्रोटीन एचएलए-ए * 02 (मानव ल्यूकोसाइट एंटीजन सेरोटाइप) के साथ जटिल है।
शोधकर्ताओं के लिए जारी COVID-19 सतह का 3 डी दृश्य
कोरोनावायरस COVID-19 की सतह का एक नया 3 डी मॉडल जारी किया गया है, जिससे शोधकर्ताओं को उपचार के विकास में सहायता मिल सके।
सार्वजनिक डेटाबेस में उपलब्ध संबंधित COVID-19 कोरोनावायरस संरचनाओं से 3 डी भागों को एक साथ जोड़कर मॉडल बनाया गया था। डेवलपर्स द्वारा उपयोग किए जाने वाले घटकों में शामिल हैं:
• स्पाइक (एस) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 6CRV)
• लिफाफा (ई) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 5X29)
• झिल्ली (एम) प्रोटीन (पीडीबी कोड – 3I6G)
वायरस की सतह पर इन प्रोटीनों का वितरण एक यादृच्छिक एल्गोरिदम द्वारा संरेखित किया गया था। एस, ई और एम प्रोटीन दिखाने में मदद करने के लिए समग्र प्रतिनिधित्व सतह प्रोटीन घनत्व कम हो गया है। एम लिपिड ही एक यादृच्छिक और जैविक परिणाम का उत्पादन करने के लिए एक कण प्रणाली का उपयोग कर उत्पन्न किया गया था।
मॉडल कॉर्किन लैब, यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) और वॉर्सेस्टर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूपीआई), यूएस से जानकारी के साथ क्रॉस-रेफर किए गए थे। WPI के वैज्ञानिकों ने जैव प्रौद्योगिकी सूचना के लिए राष्ट्रीय केंद्र में उपलब्ध कोरोनवायरस के हाल ही में प्रकाशित वायरल जीनोम का उपयोग किया। उन्होंने तब प्रमुख वायरल प्रोटीनों की 3 डी संरचना और मानव प्रोटीन के साथ उनकी बातचीत को फिर से संगठित करने के लिए आणविक मॉडलिंग का उपयोग किया। उनके COVID-19 संरचनात्मक जीनोमिक्स का नक्शा शोधकर्ताओं और दुनिया भर में किसी के लिए भी उपलब्ध है।
ध्वनि तरंगों या विकिरण का वायरस पर प्रभाव
जैसा कि धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा गया है कि शंख, घण्टा और अज़ान से वायरस खत्म हो जाता है तो ऐसा सिर्फ कोरी अफवाह है। क्योंकि अभी तक किसी वैज्ञानिक ने इस तरह दावों पर कोई पुष्टि नही की है।
इतना आप जरूर जानते है कि कोई ध्वनि तरंगे हवा में 343 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलती हैं जो दूर किसी जानवर को भगाने या किसी को सचेत करने के लिए की जा सकती हैं।
लेकिन यह बात सच है कि उच्च ऊर्जा या उच्च संचरण वाले विकिरण जैसे लेजर, क्ष-किरणें (एक्स रे) अल्ट्रासाउंड आदि से वायरस की संरचना में परिवर्तन हो जाता। चूंकि सौर विकिरण में कम तरंगधैर्य वाले विकिरण से ये वायरस पूरी तरह मरने की संभावना तो नही है लेकिन उनके स्वरूप में परिवर्तन हो सकता है।
मोमबत्ती और दिया से उत्पन्न ऊर्जा
“पदार्थ के जलने के कारण तापमान में परिवर्तन की गणना सूत्र, q = nmCDT, जहाँ q ऊष्मा ऊर्जा है, n मोमबत्ती की संख्या है, m द्रव्यमान है, c मोमबत्ती की विशिष्ट ऊष्मा है और dt तापमान में परिवर्तन है। इस मामले में, ये सभी आयाम ज्ञात नहीं हैं क्योंकि प्रत्येक मोमबत्ती वजन और आकार में भिन्न होगी। इसलिए मोमबत्ती या दिया से इतना तापमान उत्पन्न नही किया जा सकता। इसलिए, आदर्श परिस्थितियों में भी, दावे का कोई आधार नहीं है।
मोमबत्ती लौ (Flame) की बाहरी सतह का तापमान लगभग 1400 डिग्री सेंटीग्रेड होता लेकिन इसका मतलब यह नही कि यह आपके आसपास के वातावरण को गर्म कर सके।
WHO और ICMR की नजर में मोमबत्ती दिया के प्रकाश का प्रभाव
इसके अलावा, यह दावा कि उच्च तापमान कोरोनोवायरस को मार देगा, अपने आप में संदिग्ध है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई भी मौसम कितना भी तेज या गर्म क्यों न हो, कोई व्यक्ति कोरोनावायरस को पकड़ सकता है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक महामारीविद ने इंडिया स्पेंड से बात करते हुए कहा कि अतीत में तापमान को लेकर अन्य वायरस कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, यह उपन्यास कोरोनावायरस के लिए सही नहीं है।
पीएचएफआई (पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष प्रोफेसर के। श्रीनाथ रेड्डी के पास पहुंची, जिन्होंने कहा कि कोरोनोवायरस तापमान में भिन्नता से प्रभावित होता है, लेकिन यह व्यवहार केवल सूक्ष्मजीव के कुछ तनावों तक ही सीमित है।
प्रकाश_के_प्रकार और उसका वायरस पर असर
प्रकाश विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का हिस्सा है, जो रेडियो तरंगों से लेकर गामा किरणों तक होता है। विद्युत चुम्बकीय विकिरण तरंगें, जैसा कि उनके नाम से पता चलता है कि विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र के उतार-चढ़ाव हैं, जो ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा सकते हैं।
यह विकिरण फोटॉन या क्वांटा के रूप में चलते हैं। जो निम्नलिखित प्रकारों में अध्ययन किये जाते हैं।
जिनमे धरती के वातावरण यानी ओजोन परत द्वारा पृथ्वी पर सिर्फ रेडियो (सिग्नल), अवरक्त (गर्मी का एहसास), दृश्य (देखने हेतु), कुछ मटर में माइक्रोवेब और पराबैगनी की मात्रा पहुंचती हैं। अन्य कम तरंगधैर्य वाले विकिरणों को ओजोन परत अवशोषित कर लेती है। नीचे कुछ विकिरण उनकी तरंगधैर्य के साथ दिए गए है।
1. गामा तरंगे (10-12 m)
2. एक्स रे (1 nm – 1 pm)
3. पराबैगनी तरंगे (400 nm – 1 nm)
4. दृश्य तरंगे (750 nm – 400 nm)
5. अवरक्त तरंगे (25 μm – 2.5 μm)
6. माइक्रोवेब तरंगे (1 mm – 25 μm)
7. रेडियो तरंगे (> 1 mm)
निष्कर्ष
चूंकि वैज्ञानिकों को यह दशकों पहले पता है कि बैक्टीरिया और वायरस को मारने के लिए 400-700 नैनोमीटर की रेंज के विकिरण की जरूरत होती है जो उनके DNA को नुकसान पहुंचा देता है। लेकिन मोमबत्ती और दिया की तरंगदैर्ध्य उपरोक्त रेंज में नही आती है। यहां विकिरण से मतलब है जब आप कोई प्रकाश पुंज यानी विकिरण को किसी वायरस की कोशिका के ऊपर डालते हैं तो हैम मानवों की कोशिकाओं पर इन विकिरण का असर भी होता है। वायरस कम तरंगधैर्य वाले विकिरण से मर सकता है जो पराबैगनी तरंगों से ऊपर वाले होते। यह विकिरण उच्च ऊर्जा वाले होते हैं। किसी भी वायरस को मारने की क्षमता रखते हैं और यह इंसानो की त्वचा के लिए काफी खतरनाक होते हैं। यह इंसानों पर सीधे प्रभाव पर उन्हें कैंसर जैसी बीमारी से ग्रसित कर देते हैं। लेकिन इस तरह के विकिरण किसी मोमबत्ती या तेल के दिया से नही मिल सकते।
#सरकार_से_उम्मीद
इस गंभीर समस्या में सरकार से हर काम की उम्मीद नही कर सकते है न बल्कि कुछ जिम्मेदारी हम सब आम नागरिकों की भी हैं कि अपने अपने स्तर पर लोगों में जागरूकता और मदद करते रहे ।
फिर भी सरकार से मांग करते हैं कि निम्न लिखित बातों पर गौर करे और देश जनता की भलाई के लिए कुछ कदम उठाएं।
1. सेनेटाइजर और मास्क को जरूरी वस्तु घोषित करके उसे GST से मुक्त कर दें और जगह जगह छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को खोल दें।
2. हर नगरपालिका को उसके क्षेत्र को सेनेटाइज करने के लिए काम चलता रहे।
3. सरकार को बड़े स्तर पर वेंटिलेटर की खरीददारी करके पूंजीपतियों की खाली पड़ी जमीन को क्वारंटाइन आश्रय खोलें।
4. दिहाड़ी गरीब मजदूरों की बस्तियों में जरूरी सामान, खाना और डॉक्टर्स की एक स्पेशल टीम तैयार रखें।
5. बाहर से आये हुए लोगों को थर्मल चेकिंग की वजाय उनके खून की जांच की जाए
6. व्यापारियों से कालाबाज़ारी से रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं
7. मीडिया और टीवी चैनल पर किसी धर्म के आचार्य, बाबा, मौलाना, फादर को डिबेट में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगाया जाए। डिबेट में इस समय सरकार के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े प्रतिनिधि, डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों और लोगों की समस्याओं को लेकर आने वाले जनप्रतिनिधियो को ही जगह दी जाए।
8. गांवों और ब्लॉक् स्तर पर कोरोना टेस्ट किट, क्वारंटाइन आश्रय खोलने की जरूरत है।
9. सबसे ज्यादा खतरा कोरोना की जंग लड़ रहे हमारे देश के डॉक्टर्स को हैं जिनके पास जरूरी सुरक्षा इक्विपमेंट (PPE) की जरूरत है। जिसकी कमी के चलते हमारे डॉक्टर्स के बीच कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ता ही जा रहा हैं।