कोरोना की महामारी के चलते आज पूरा संसार दहशत में है। आमजन को एक तरफ इससे होने वाली मौत का डऱ सता रहा है तो दूसरी तरफ भूखमरी की चिंता भी परेशान करने लगी है। इन सबके अलावा इसकी दवा न होना सबसे बड़ी परेशानी का सबब बन गई है। मतलब यह भी कह सकते है कि इसकी दवा का न होना आज विश्व के सामने बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। अब वक्त रहते इसके उपचार के लिए दवा और इलाज के सही तरीके खोजना बेहद जरूरी हो गया है। हालाकि कई देश इसकी दवा खोजने के काम में जुटे है।
भारत में भी केरल ऐसा पहला राज्य हो गया है जो प्लाज्मा थेरैपी पर ट्रायल शुरू करने जा रहा है। इसके तहत कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद ठीक हो चुके व्यक्ति से कुछ खून निकाल कर उसका प्लाज्मा बीमार व्यक्ति में इंजेक्ट कर दिया जाता है। देखा गया है कि रोगी का इम्यून सिस्टम इंजेक्टेड प्लाज्मा में मौजूद ऐंटिबॉडीज की मदद से इनके जैसी और ऐंटिबॉडीज बनाना शुरू कर देता है। ऐंटिबॉडीज किसी व्यक्ति के शरीर में तब बननी शुरू होती हैं, जब वायरस उस पर अटैक करता है। लेकिन कोविड-19 में वायरस की ग्रोथ इतनी तेज होती है कि हर किसी में उसे परास्त करने लायक ऐंटिबॉडीज नहीं बन पाती है। हां, जो रोगी कोरोना वायरस से लडक़र ठीक हो जाते हैं, उनके खून में ये लंबे समय तक प्रवाहित होती रहती हैं और उनका शरीर बीमारी के वायरस को पहचान कर उससे लडऩे के लिए तैयार रहता है। ऐसे मरीज बाकी बीमारों के लिए भी आशा लेकर आ सकते हैं।
बहरहाल इस महामारी पर विजय पाने के लिए अनेक मोर्चों पर संघर्ष जारी है। जैसे इसके इलाज का उचित तरीका खोजना, इसके लिए कोई कारगर दवा या वैक्सीन बनाना। हालाकि इस समय इसके इलाज को लेकर अंधेरे में रोशनी की एक किरण अभी चिकित्सा शास्त्रियों को प्लाज्मा थेरैपी या फिर मलेरिया की एक पुरानी दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन में नजर आई है। लेकिन अभी तक कोई प्रापर दवा ईजाद नही हुई है। दवा ईजाद होने का दावा तो कितने ही कर रहे है पर उसमें सच कितना है यह बड़ा सवाल है।
सनद रहे कि दुनिया भर में मेडिसिन क्षेत्र के वैज्ञानिक इसकी कारगर दवा बनाने में जुटे है। लेकिन सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों में ऐसी खबरें चल रही हैं कि अमेरीकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने इस वायरस की दवा बनाए जाने का दावा किया है। 21 मार्च को डोनॉल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया-हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन और एजिथ्रोमाइसिन का कॉम्बिनेशन मेडिसिन की दुनिया में बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकती है। एफडीए ने ये बड़ा काम कर दिखाया है- थैंक्यू। इन दोनों एजेंट को तत्काल प्रभाव से इस्तेमाल में लाना चाहिए, लोगों की जान जा रही है।
सनद रहे कि ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने कोरोना वायरस की दवा खोज ली है। ट्रंप ने इसको लेकर व्हाइट हाउस की मीडिया ब्रीफिंग में बयान दिया कि- हम इस दवा को तत्काल प्रभाव से उपलब्ध कराने जा रहे हैं। एफडीए ने काफी काबिलेतारीफ काम किया है। ये दवा स्वीकृत हो चुकी है।
हालाकि सवाल तो यह है कि ट्रंप के इस दावे में सच्चाई कितनी है। टं्रप के इस दावे के साथ ही इस दवा की प्रामाणिकता पर काम होने लगा। ईटी की फैक्ट चेक टीम ने इस बात की पड़ताल की कि क्या इन दो दवाओं का कॉम्बिनेशन कोरोना वायरस की औपचारिक दवाई है। साथ ही क्या अमेरिका के स्वास्थ विभाग की ओर से इसे स्वीकृत किया जा चुका है। ट्रंप के इस बयान के बाद 21 मार्च को ही अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में सीडीसी ने बताया कि कोविड-19 के मरीजों के लिए एफडीए ने कोई दवा अब तक अप्रूव नहीं की है। इस रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया कि अमेरिका सहित कई देशों में कोविड-19 के मरीजों के लिए हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
बता दे कि अमेरिका के साथ ही दूसरे देशों के विशेषज्ञों को भी हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन में काफी संभावनाएं दिखी है। विशेषज्ञों के इतर कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन को लेकर अपना सकारात्मक पक्ष रखा है। ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो ने तो एक वीडियो में यहां तक दावा कर दिया कि यह हर मरीज पर सही काम कर रही है। हालांकि फेसबुक ने उनकी इस टिप्पणी को गलत जानकारी फैलाने की श्रेणी में लेकर इसे हटा दिया। इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टी. ए. गेब्रेयेसस ने एक पत्रकारवार्ता के दौरान कहा कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कोरोना के इलाज में कितनी प्रभावी है, इसे लेकर कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है। इसके साथ ही वे बोले कि कोविड-19 के उपचार में बिना परीक्षण वाली दवाओं का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। इससे झूठी उम्मीदें जग सकती हैं। यह लाभ के बजाए ज्यादा नुकसान कर सकती हैं और आवश्यक दवाओं की कमी हो सकती है, जिनकी जरूरत अन्य बीमारियों के उपचार में होती है।
दरअसल सच तो यह है कि अभी तक कोई भी देश इस महामारी की दवा को ईजात नही कर पाया है। बतौर प्रमाण हम यह कह सकते है कि इस महामारी के फैलने का सबसे बड़ा कारण ही ये है कि अब तक इसकी कोई दवा इजाद नहीं हो सकी है।
बेशक, इस समय हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन को कारगर दवा के रूप में देखा जा रहा है लेकिन दुनिया भर में कोरोना वायरस की अब तक कोई दवा नहीं बनी है। हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन तो मलेरिया के इलाज में काम आती है। अब सवाल ये भी खड़ा होता है कि जब ये दवा मलेरिया पर काम आती है तो कोविड़-19 के उपचार में कितनी कारगर साबित होगी। एक अध्ययन के मुताबिक हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन के साथ एजिथ्रोमाइसिन का कॉम्बिनेशन कोरोना के असर को कम कर सकता है। इस रिपोर्ट में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन के साथ एजिथ्रोमाइसिन के इस्तेमाल को अनकंट्रोल बेसिस बताया गया है। मतलब साफ है कि इस कॉम्बिनेशन को औपचारिक इलाज ना माना जाए।
इस दवा के संबंध में भारत की शीर्ष मेडिकल रिसर्च संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने 23 मार्च को बताया कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन का इस्तेमाल सिर्फ हास्पिटल वर्कर करेंगे जो कोविड-19 के मरीजों की देखभाल कर रहे है। या फिर अगर किसी के घर में कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी देखभाल करने वाला ही इस दवा का सेवन करे। ये दवा मान्यता प्राप्त डॉक्टर की सलाह पर ही दी जाएगी, लेकिन अगर इस दवा को लेने वाले व्यक्ति को कोरोना के लक्षणों के अलावा कोई और परेशानी होती है तो उसे तुरंत अपने डॉक्टर को संपर्क करना होगा। हालांकि, एजिथ्रोमाइसिन के साथ इस दवा के कॉम्बिनेशन पर भारत में कोई बात नहीं कही गई है।
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भी कोरोना वायरस का इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। हालाकि हमारे देश में एक होम्योपैथिक दवा की फोटो और दवा का नाम खूब वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि यह दवा कोरोना वायरस के इलाज में कारगर है। इस दवा का नाम आर्सेनिक एलबम 30 है। सोशल मीडिया में चल रहे मैसेज में कहा गया है कि कोरोना वायरस एक तरह का वायरल इंफेक्शन है, जिसको होम्योपैथिक दवा आर्सेनिक एलबम 30 से नियंत्रित किया जा सकता है। मैसेज में यह भी कहा गया है कि कोरोना वायरस का होम्योपैथिक इलाज इससे बीमारी से काफी हद तक बचा सकता है। इस बारे में ईटी के रिसर्च करने पर यह पाया गया कि आयुष मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर इस महीने इस तरह की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए कोई दवा खाने की सलाह भी नहीं दी है। मतलब साफ है कि बिना परीक्षण वाली दवाओं का इस्तेमाल करना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
अब सब तरफ से एक ही सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर कब तक इसकी दवा या टीका बनेगा। हालाकि इसके लिए रिसर्च पूरे जोर शोर से चल रही है। वैज्ञानिक अभी जानवरों पर रिसर्च की स्टेज पर है। इस साल के अंत तक इंसानों को इससे फायदा मिलने की उम्मीद कर सकते है। वैज्ञानिकों का दावा है कि वैक्सीन आने में कम से कम एक साल का वक्त तो लग ही सकता है। वैज्ञानिकों ने इस साल कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन बना भी ली, तो भी इसका बड़ी संख्या में उत्पादन होने में वक्त लगेगा। मतलब स्पष्ट है कि कम से कम एक साल तो कारगर दवा की कोई उम्मीद नही है।
लेखक- द इंडिय़ानामा पत्रिका का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक मुद्दों पर देश भर के समाचार पत्र पक्षिकाओं में स्वतंत्र लेखन करते है।