Tuesday, November 26, 2024
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फार्मासिस्ट की गैरमौजूदगी में मेडिकल स्टोर संचालक बने डॉक्टर

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। कोविड-19 के  संक्रमण के बचाओ एवं नियंत्रण किए जाने के उद्देश्य से जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह ने जनपद के समस्त मेडिकल स्टोरों के दवा विक्रेताओं को निर्देशित किया है कि जनपद में खांसी,जुकाम,बुखार आदि की दवा लेने वाले मरीजों के नाम, पते एवं मोबाइल नंबर को एक रजिस्टर में भी दर्ज करें और प्रतिदिन की रिपोर्ट औषधि निरीक्षक कानपुर देहात को उपलब्ध करायेंगे। जानकारी न देने पर मेडिकल स्टोर संचालकों के विरुद्ध कठोरतम कार्यवाही की जायेगी।
अब देखना यह है कि यह क्या सम्भव है। सरकार ऐसे आदेश तो कर देती है लेकिन इसका पालन कभी नहीं किया जाता है। आइये इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी लेते हैं ड्रग काउंसलर दीपक त्रिपाठी व फार्मासिस्ट राजेश बाबू कटियार (पूर्व छात्र जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानुपर) की कलम से।सर्वविदित है कि कोरोना वायरस के कारण लागू हुये लॉकडाउन के दौरान प्रशासन की ओर से मेडिकल स्टोर खोलने की छूट दी गई है, ताकि लोगों को किसी बीमारी के चलते आपात स्थिति में कोई दिक्कत न हो। ऐसे में कुछ मेडिकल स्टोर संचालक इसका गलत फायदा उठाकर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं मेडिकल स्टोर संचालक बिना बिल, बिना डॉक्टर के पर्चे व बिना फार्मासिस्ट के खुद ही डॉक्टर बनकर खुलेआम दवाइयां बेच रहे हैं। दरअसल लॉकडाउन के कारण अधिकांश बड़े अस्पताल व डाक्टरों ने ओपीडी बंद कर रखी है जिस वजह से बीमार लोगों के लिए मुश्किल होने लगी है। जिन डाक्टरों ने ओपीडी चालू  कर रखी है वहां पुलिस के पहरे के कारण मरीजों का जाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में लोग हल्की-फुल्की बीमारी व कोरोना वायरस के संभावित लक्षणों को देखकर स्वयं ही मेडिकल स्टोर से दवाइयां ले आते हैं। मेडिकल स्टोर संचालक भी ग्राहक को बीमारी पूछने के बाद तुरंत दवा दे देते हैं जबकि उन्हें स्वयं ही उस दवा की पूर्णतया जानकारी नहीं होती है। कुछ ही ऐसे मेडिकल स्टोर हैं जहां पर स्वयं फार्मासिस्ट बैठते हैं या फार्मासिस्टों के स्वयं के मेडिकल स्टोर हैं। ऐसी दशा में तो मरीजों को सही दवा मिलती है किंतु अधिकांश मेडिकल स्टोर बिना फार्मासिस्ट की मौजूदगी के ही चल रहे हैं ऐसी स्थिति में मरीजों को सही दवा मिल पाना संभव नहीं है।
बिना फार्मासिस्ट व बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के आम जनता को खुले आम दवा वितरण कर इलाज करना कोई नई बात नही है। जिला स्तर, प्रदेश स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर आला अधिकारियों व केमिस्ट नेताओं की मिलीभगत से ही यह गोरखधंधा गैर कानूनी तरीके से चल रहा है।
आज देश भर में 80 फीसद मेडिकल स्टोर/संचालक फार्मासिस्ट का लाइसेंस किराये पर खरीदकर यह गैरकानूनी तरीके से दवा का व्यापार कर रहे हैं और मासूम जनता के स्वास्थ्य से भारी खिलवाड़ किया जा रहा है। अनेकों बार देखने व सुनने को मिला है कि फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में  मेडिकल संचालक द्वारा मरीज को दवा देकर इलाज करने से मौत हो गई लेकिन इसके बावजूद भी यह फर्जी/झोलाछाप मेडिकल स्टोर संचालक जो बिना फार्मासिस्ट गैरकानूनी तरीके से जनता का इलाज खुले आम कर रहे हैं इनको नियम-कानून व फार्मेसी एक्ट 1948 के उल्लंघन करने का जरा सा भी डर नहीं है। एक्ट व नियमानुसार कोई भी मेडिकल स्टोर बिना फार्मासिस्ट की उपस्थिति के नहीं चल सकता है और न ही फार्मासिस्ट के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति द्वारा डॉक्टर की प्रेस्क्रिप्शन पर दवाई वितरण व कॉउंसलिंग की जा सकती है। इसके बावजूद यदि कोई व्यक्ति बिना फार्मासिस्ट के मरीज या आम जनता को दवाई वितरण कर इलाज करते हुऐ पाया जाता है तो उस व्यक्ति पर फॉर्मेसी एक्ट 1948 ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 नियम 1945 व पीपीआर 2015 के तहत सख्त कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है।
आज देश की दुर्दशा यह है कि इतना सख्त कानून होने के बाद भी बिना फार्मासिस्ट अयोग्य व्यक्ति द्वारा दवाई वितरण कर आम जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का यह गोरखधंधा फल-फूल व पनप रहा है।
इससे सवाल खड़े होते हैं हमारे देश की प्रशासनिक व कानूनी व्यवस्था पर जो इस तरह का गैरकानूनी तरीके से चलने वाला जानलेवा खेल देश भर में होने दे रही है ।
देश का ड्रग विभाग इस फार्मेसी एक्ट 1948 का पालन ही नहीं करवा पा रहा है बल्कि दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि देश भर में
बिना फार्मासिस्ट दवा बेचने व वितरण करने का यह गोरखधंधा कुछ एक केमिस्ट नेताओं व भ्रस्ट ड्रग अधिकारियों की मिलीभगत से ही सम्भव है। हमारी सरकार सविंधान कानून व नियमों का सख्ती से पालन करने को लेकर बड़ी-बड़ी बात कहते थकती नहीं है जबकि कानून व एक्ट के रक्षक ही भक्षक बने बैठे हैं। सबकुछ जानने, देखने व सुनने के बाद भी फॉर्मेसी एक्ट 1948 के उल्लंघन पर कोई कानूनी कार्यवाही नही करते हैं।
एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जुर्म करने से ज्यादा गुनहगार जुर्म को करवाने वाला और उससे ज्यादा उस जुर्म को बढ़ावा देने वाला होता है। यह सभी कड़ी एक दूसरे से जुड़ी हैं।
1. मेडिकल संचालक जो बिना फार्मासिस्ट दवाई बेचता है।
2. फार्मासिस्ट जो अपना रेजिस्ट्रेशन/लाइसेन्स किराये पर मेडिकल संचालक को बेचता है।
3. ड्रग अधिकारी/फार्मेसी कौंसिल अधिकारी जो न तो बिना
फार्मासिस्ट दवा वितरण करने वाले व्यक्ति पर कोई सख्त कानूनी कार्यवाही करते हैं और न ही उस फार्मासिस्ट पर जो अपना लाइसेंस किराये पर देता है।
हर एक राज्य में अगर गिनकर 10 रेंटिंग फार्मासिस्ट पर भी यह फार्मेसी कौंसिल/ड्रग अधिकारी कानूनी कार्यवाही या उनके लाइसेन्स निलंबित कर दें तो मैं यह भविष्यवाणी करता हूँ कि यह गोरखधंधा पूरी तरह से बन्द हो जायेगा और अयोग्य व्यक्ति/मेडिकल संचालक बिना फार्मासिस्ट दवाई वितरण करने से डरेंगे।
वर्तमान समय में कानून व नियमों का उल्लंघन करने को लेकर कोई डर नहीं है और इसके जिम्मेदार हमारे अधिकारीगण व सरकार है जो यह होने देना नहीं चाहते।
कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति-
आजकल कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। देश भर मे फार्मेसी एक्ट 1948 धारा 42 के उल्लंघन पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हो रही है।
यह सभी स्तंभ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और सबकुछ भलीभांति जानते भी हैं और इसीलिए ये फार्मासिस्ट लाइसेन्स रेंटिंग व बिना फार्मासिस्ट दवा वितरण करने का गोरखधंधा देश मे सफल हो रहा है। अगर इनमें से एक भी अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करे और कानून व नियम का पालन करें/करवायें तो यह सिस्टम खत्म हो सकता है, लेकिन इन भ्रष्ट ड्रग अधिकारियों को सालाना करोड़ों अरबों बैठे बिठाए सरकारी तनख्वाह से अलग जो अवैध कमाई हो जाती है तो भला यह लोग यह सिस्टम/कमाई का जरिया बन्द क्यों होने देंगे। इसमें भी कोई शक नहीं कि इस अवैध कमाई का कुछ हिस्सा सरकार के जनप्रतिनिधियों/विभागीय मंत्रियों को भी न पहुंचता हो। जनता के स्वास्थ्य की किसी को कोई चिंता नहीं है, सिर्फ कागजों पर ही नियम कानून दौड़ता हुआ दिख रहा है।