Tuesday, November 26, 2024
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आधुनिकता का दास आदमी…

परिवर्तन संसार का नियम है- सामाजिक ढांचा बदलते रहता है और साथ ही परिवेश भी। सोचती हूं कि वो दौर ज्यादा अच्छा था जब मशीनों के हम बंदी नहीं थे। हम स्वतंत्र थे इस मायने में कि हम मशीनों पर निर्भर नहीं थे। हमारी अपनी ऊर्जा और समझ महफूज थी। आदमी के विकास की गति धीमी जरूर थी मगर इंसान का वजूद जरूर दिख जाता था। आर्थिक जरूरतों और विकास के मद्देनजर हमें मशीनों की प्रभुता स्वीकार करनी पड़ी है और इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता, मगर जब रोजमर्रा का जीवन मशीनीकरण होते जा रहा हो तो मशीनीयुग या मशीनों द्वारा बंदी कहा जाना ज्यादा सही होगा। आज हर छोटी बड़ी चीज के लिए हम मशीनों पर निर्भर है। घर की सफाई से लेकर खरीदी, लेन देन, व्यापार, पढ़ाई और रिश्ते भी मशीनी युग के हवाले हो गए हैं। अक्सर मजाक में ही सही मगर एक तस्वीर वायरल होते रहती है कि घर के सदस्य एक ही कमरे में बैठे हैं मगर हर व्यक्ति अपने मोबाइल में बिजी है। जहां हंसी ठिठोली की आवाजें या आपसी बातचीत होनी चाहिए वहां एक सन्नाटा पसरा रहता है। ये सही है कि वक्त, जरूरत और परिस्थिति के हिसाब से संसाधनों में बदलाव आना जरूरी है मगर इन संसाधनों का उपयोग कैसे और कितना किया जाये इसका मापदंड भी तय किया जाना चाहिए।आज इतना ज्यादा आधुनिकीकरण हो गया है कि हर छोटी से लेकर बड़ी चीज तक के लिए मशीन उपलब्ध है। किचेन से लेकर बाजार तक आप हर जगह मशीनों से दो-चार होते हैं। एक छोटा सा उदाहरण कि हम मार्केट में खरीद-फरोख्त के लिए केलकुलेटर के इस्तेमाल पर निर्भर है। पहले जहां लोग मुंहजबानी हिसाब किताब कर लेते थे आज केलकुलेटर पर निर्भर हैं। पहाड़ों का याद होना और प्लस माइनस भी जुबानी ही कर कर लेते थे। अब आज के वक्त में ऐसा जल्दी कहीं देखने को नहीं मिलता। आज ज्यादातर लोग केलकुलेटर पर निर्भर है। अब आनलाइन सुविधा ज्यादा हो गई है। ऑनलाइन खरीदी, ऑनलाइन पेमेंट, बैंकिंग, टिकट बुकिंग जैसी सुविधा घर बैठे व्यक्ति को अकर्मण्य बना रही है। जहां पहले लोग दुकानों पर जाकर चीजों को देख परखकर लेते थे आज घर बैठे इस सुविधा का इस्तेमाल करते हैं। एक हद तक इन मशीनों ने लोगों को गुलाम बना दिया है। देखा जाए तो इस सुविधा ने खुदरा व्यापार पर बहुत असर डाला है।
मैं यह नहीं कहती कि आधुनिकीकरण गलत है या उसे अपनाया नहीं जाना चाहिए। मगर उसके महत्व को समझकर उपयोग में लाया जाना चाहिए लेकिन हो इसके विपरीत रहा है और समय की बचत के नाम पर व्यक्ति जिम्मेदारियों से भागने लगा है। व्हाट्सएप और वीडियो कॉलिंग से रिश्ते जुड़ने और बनने लगे हैं। अब उनमें भाव और मधुरता दिखाई नहीं देती है। जब कभी हम एक लंबे समय के बाद घर जाते थे तो हमारे आने की खुशी हमारे घर वालों के चेहरे पर झलकती थी जो अब दिखाई नहीं देती है। आज हम अपने ही घर में एक दूसरे से कटे हुए रहते हैं। मोबाइल हाथ में लिये कोई किसी से बात कर रहा है, तो कोई गेम खेल रहा है, तो कोई मूवी देख रहा है, तो कोई लैपटॉप में बिजी है। एक ही परिवार के सदस्य अलग अलग व्यस्त हैं। आपस में एक साथ बैठकर बातें या गपशप करने के बजाय उन्होंने अपनी एक अलग ही दुनिया बना ली है।  अगर जबरदस्ती उन्हें बिठा भी लिया जाता है तो कितनी जल्दी बातचीत खत्म हो उन्हें इसका इंतजार होता है। बदलता वक्त, आधुनिकीकरण और मशीनी युग में दौड़ते हुए हम हमारी पीढ़ी को कहां ले जाएंगे? मशीनों का गुलाम बनाकर कितना अपनों से दूर कर देंगे?
प्रियंका वरमा माहेश्वरी गुजरात।