
फॉगिंग क्यों आवश्यक है-
शहर में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया सहित अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए सोमवार को वार्ड 82 के पार्षद सन्तोष साहू के नेतृत्व में जरौली फेज-1, जरौली फेज -2, वैष्णवी विहार आदि क्षेत्रों में फॉगिंग की गई। जोन 3 के सभी वार्डों के अधिकतर मुहल्लों में फॉगिंग का कार्य चल रहा है। इससे लोगों ने राहत की सांस ली है क्योंकि इस वर्ष प्रत्येक वर्ष की अपेक्षा मच्छरों का अधिक प्रकोप है। सोमवार को लंबे समय बाद लोगों को फॉगिंग की गाड़ियां और हैंड फॉगिंग मशीनें एक साथ वार्डों में घूमती दिखीं।
पार्षद ने फॉगिंग के लिये गठित की है कमेटी-
पार्षद सन्तोष साहू ने अपने वार्ड के कार्यों के समुचित संचालन के लिए कमेटी का गठन किया है। कमेटी में पवन दीक्षित को मंडल अध्यक्ष, सूरज दीक्षित को सेक्टर अध्यक्ष, दयाशंकर यादव को मंडल कार्यसमिति एवं कार्यकारिणी में आकाश द्विवेदी, सौरभ सविता व श्यामजी को विभिन्न कार्यों के सफल क्रियान्वयन हेतु नामित किया है।
कैसे होती है फॉगिंग-
फॉगिंग के लिए 1 लीटर डीजल में 5 एमएल डेल्टा मेट्रीन कैमिकल मिलाया जाता है और एक गाड़ी में 60 लीटर डीजल का इस्तेमाल होता है। इस दवा को गाड़ी में भरकर मशीन के जरिए धुएं से उड़ाया जाता है। इस धुएं में कैमिकल के पार्टिकल्स होते हैं। धुआं उड़ जाता है जबकि कैमिकल पार्टिकल्स इधर-उधर मच्छरों पर असर करते हैं। जानकारों का मानना है कि फॉगिंग का ज्यादा असर उसी जगह होता है जहां एंटी लार्वा का छिड़काव हुआ हो। फॉगिंग होने पर कई बार मच्छर इधर-उधर हो जाते हैं और तभी मरते है जब कैमिकल के पार्टिकल्स के सीधे सम्पर्क में आयें।