Thursday, November 28, 2024
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कोरोना से भी ख़तरनाक वायरस पल रहे है हमारे भीतर

क्यूँ सब कोरोना को कोसते हो घ् ये तो महज़ छोटा सा वायरस है। कोरोना वायरस ने सिर्फ़ इंसानों की दुनिया ही तो हिला दी है। शरीर के भीतर घुसते ही सर से पैर तक हर अवयव को खोखला कर देता है और ये वायरस जान तक ले लेता है इतना ही तो ख़तरनाक है बस।
पर सोचा है। कभी समाज को और देश को खोखला करने वाले और धरती से इंसानियत को जड़ से ख़त्म करने वाले कोरोना से भी भयंकर और बर्बाद करने वाले कई वायरसों को हम अपने भीतर बड़े प्यार से गर्व के साथ पालते रहते है।लालच, स्वार्थ, इर्ष्या, किसीके प्रति वैमनस्य, धर्मांधता, छोटी सोच, कपट और षडयंत्र जैसे वायरसों को ख़त्म करने वाली वैक्सीन कब कोई विकसित करेगा। दिमागी कारखानों में हम पालते है इन सारे वायरसों को बड़े नाज़ों से, जो अपनेपन को, मानवता को, भाईचारे को और इंसानियत को निगल रहे है। देश में अराजकता और समाज में बैर भाव का ज़हर फैला रहे है। परिवारों को विभक्त कर रहे है।
क्यूँ कोई कभी ये नहीं सोचता कि निम्न सोच एक तरह का वायरस ही है। दिमाग से निकलकर शब्दों का रुप लेकर जुबाँ तक पहुँचते ही ये वायरस बवंडर जितने ख़तरनाक बन जाते है। हल्की सोच और ज़हरीले शब्द बहुत कुछ तहस.नहस कर सकते है।
कुछ लोग सोच से अपाहिज होते हैए वह हर छोटी बड़ी बात पर विद्रोही बन जाते है। बिना सोचे समझे जानमाल को नुकसान पहुंचाने और देश को जलाने हाथ में नफ़रत की मशाल लेकर निकल पड़ते है। परिवारों में छोटी सी बात पर अहं का वायरस दंगल खड़ा कर देता है। अपने ही दुश्मन लगने लगते है। ये सारी चीज़ें किसकी उपज है घटिया सोच वाले दिमागी वायरस की ही न।
लालच और स्वार्थ जैसे वायरस अपनों के बीच दरारें खड़ी करता हैए धर्मांधता और जात.पात वाले वायरस देश को हिस्सों में बांटता हैए कपट और षडयंत्र के वायरस परिवारों को तोड़ता है। ऐसे असंख्य वायरसों की वैक्सीन हमें खुद के भीतर तलाशनी होगी। ज़िंदगी बहुत छोटी है तो क्यूँ न प्यार केए भाईचारे केए अपनेपन के और सद्भाव के कैमिकलों से खुद के अंदर एक वैक्सीन तैयार करें और इन सारे वायरसों का इलाज करके खुद कीए समाज की और देश की बुनियाद को मजबूत करें। नहीं लगता कि, अगर ये वैक्सीन बन गई तो कुदरत भी राज़ी होगी। ईश्वर भी खुश होंगे और सभ्य और सुंदर समाज का निर्माण होगा।
भावना ठाकर, बेंगुलूरु# भावु