नीति शलाका से अन्तरनैन में, नेह दुलार से आंजि के अंजन।
शिष्य का हो हर हाल भला और लक्ष्य सदा उर का तम भंजन।।
ऊपर से ये कठोर लगें और भीतर से मृदुता का समंजन।
ब्रह्माजी, विष्णुजी, शंकर रूप में, नित्य करूं गुरुदेव का वंदन।।
भावार्थ :-
एक शिक्षक नीति रूपी शलाका से शिष्य के अंतर नेत्र में ज्ञान रूपी अंजन लगाकर उसे दिव्य दृष्टि प्रदान करने का प्रयास करता है। उसके हृदय की अज्ञानता को दूर करने का प्रयास करता है और नित्य प्रति अपने शिष्य का भला ही चाहता है।उसे अनुशासित रखने के लिए ऊपर से तो कठोरता दिखलाता है किंतु अंदर से शिक्षक का स्वभाव पूरी तरह कोमलता से युक्त रहता है जैसे नारियल। ऐसे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के साक्षात स्वरूप गुरुदेव की मैं वंदना करता हूं।
✍️दुर्गेश चंद्र पांडेय “बेधड़क”
स्वतंत्र लेखन, पूर्व संपादक- साप्ताहिक समाचार पत्र, लखनऊ एवं मासिक पत्रिका -कला कुंज।
संप्रति- प्रवक्ता सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, एनटीपीसी ऊंचाहार, रायबरेली