Tuesday, November 26, 2024
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हिन्दुस्तान की आवश्यकता एक देश एक संविधान

26 जनवरी देश का गणतंत्र दिवस इस दिन अपने देश में अपना संविधान लागू हुआ था। इससे पूर्व हम अपनी व्यवस्थाओं को ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा स्थापित संविधान के अनुसार संचालित करते थे। जिसके लिए हमने ईस्ट इंडिया कंपनी के एक मुलाजिम माउंटबेटन को वर्षों तक किराये पर रखा हुआ था ताकि वह हमारा संविधान बनने तक हमें देश को चलाने का तरीका बताता रहे।
भारतीय संविधान को लिखने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था। भारतीय संविधान को तैयार करने में 2 वर्ष 11 महिने 18 दिन का समय लगा। जो 26 नवम्बर 1949 तक पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 भारत गणराज्य का यह संविधान देश में लागू हो गया।
भारतीय संविधान अन्य देशों की तुलना में दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद 22 भागों में विभाजित और जिसमें 8 अनुसूचियां थी। किन्तु विभिन्न संसोधनों के परिणाम स्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 448 अनुच्छेद 25 भागों में विभाजित है और 12 अनुसूचियां है। संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
भारतीय संविधान के कई हिस्से युनाइटेड किंगडम, अमेरिका, जर्मनी, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान के संविधानों से लिए गये। भारतीय संविधान में देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों, सरकार की भूमिका, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्रीयों की शक्ति का वर्णन किया गया है। संविधान में विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का कार्यो का उल्लेख किया गया है।
भारतीय संविधान की मूल प्रति 16 इंच चैड़ी 22 इंच लम्बे चर्मपत्र शीटों एवं 225 पृष्ठों पर लिखी गई है। संविधान की असली कॉपी प्रेम बिहारी नारायण राजजादा द्वारा हाथों से लिखी गयी। इसके प्रत्येक पन्नें को शान्ति निकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया है।यूँ तो हम अपने भारतीय संविधान पर गर्व करते है। लेकिन संविधान पर आज समीक्षा समिति का गठन कर संविधान पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। भरतीय संविधान की कमजोरियों का फायदा उठाकर जिस प्रकार धर्म निरपेक्ष व लोकतंत्र जैसे शब्दों को मौखोल उड़ाया जाता है यह देश के लिए चिन्ता का विषय है।
भारतीय संविधान को न्याय प्रिय बनाने के लिए इसमें बहुत कुछ संसोधन की आवश्यकता है। आज देश में जाति, धर्म, व्यक्ति के आधार पर आधारित संविधान की नहीं बल्कि हमें एक देश और एक संविधान की आवश्यकता है। आज हमें ऐसे संविधान की आवश्यकता है जहाँ वकीलों के दांवपेंच पर नहीं बल्कि सत्य और असत्य पर आधारित न्याय व सजा निश्चित की जाये। आज हमें ऐसे संविधान की आवश्यकता है जहाँ जनप्रतिनिधि को ताकत के आधार पर नहीं चरित्र के आधार पर चुना जायें।
भारतीय संविधान की रचना के लिए बनायी गयी संविधान सभा के सामने उस समय न जाने क्या परिस्थिति रही होगी जो जाति, धर्म, राज्यों पर आधारित संविधान लिखना पड़ा। शायद युनाइटेड किंगडम, अमेरिका, जर्मनी, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान के संविधानों से लिए गये हिस्से एवं भावनात्मक दृष्टिकोण से लिखे गये पृष्ठ हमारे संविधान की कमजोरी बन गये। भारतीय संविधान में हिन्दू-मुस्लिम लॉ, जम्बू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा और आवश्यकता से अधिक बोलने की स्वतंत्रता ने हमें कमजोर बना रखा है।
हिन्दुस्तान के शमशानों और कब्रिस्तानों के लिए आरक्षित सरकारी जगह पर सरकार का नहीं समुदायों का कब्जा है। आय के स्रोत मंदिरों, मदरसों, चर्च और मजारों को दिये जाने वाली दान राशि कर मुक्त है। एक व्यक्ति को कई लुगाई और एक को सिर्फ एक सगाई की अनुमति है। पेशेवर अपराधियों, बलात्कारियों को जनप्रतिनिधि बनकर देश चलाने का अधिकार है। निर्दयी आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति व उनकी सुरक्षा में करोड़ों रूपये खर्च करने वाले कानून सुरक्षित है। सर्कसों जंगली जानवरों से करतबों व साँप को पकडने पर प्रतिबंध और पशुओं के कत्लखानों की स्वीकृति व इंसान के कातिलों पर रहम जैसे अनेकों कानून संविधान पर प्रश्नचिन्ह है।
दुनिया के बहुत से देश जिन्हें हिन्दुस्तान के बाद स्वतंत्रता मिली आज वह दुनियाँ के विकसित राष्ट्र की श्रृंखला में शामिल है। हमारा संविधान दुनियाँ के सभी देशों के संविधान से बड़ा होने के बाद भी हम स्थितियों को नियन्त्रित करने में विफल हो जाते है।बहुत बार जीवन समाप्त होने पर भी न्याय नहीं मिलता फैसला सुनाया जाता है या समझोता होता है या फिर मृत्यु प्रमाण पत्र संलग्न करके फाईल बन्द कर दी जाती है।
इसीलिए आज हमें जाति, धर्म, व्यक्ति पर आधारित संविधान की नहीं बल्कि हमें एक देश एक संविधान की आवश्यकता है।
लेखक-समाजसेवी आर0 आर0 डी0 उपाध्याय