वाराणसी। हमारे देश में बालिकाओं का स्थान महत्वपूर्ण है। बालिकाएं आने वाले कल का भविष्य हैं। ऐसे में बालिकाओं के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ करने की जरूरत है। इसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत आरंभ ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि वाराणसी परिक्षेत्र के डाकघरों में अब तक 2.72 लाख बालिकाओं के सुकन्या समृद्धि खाते खोले जा चुके हैं। यही नहीं, वहीं 804 गाँवों को सम्पूर्ण सुकन्या समृद्धि ग्राम बनाया जा चुका है। इन गाँवों में 10 साल तक की सभी योग्य बालिकाओं के सुकन्या खाते खोले जा चुके हैं। आज भी इन गाँवों में किसी के घर बेटियों के जन्म की किलकारी गूंजती है तो डाकिया बाबू बधाई के साथ नवजात बालिका का सुकन्या खाता खुलवाना नहीं भूलते।
महिला जगत
कानपुर की बेटी निधि ने नाम किया रोशन
कानपुर। अन्तरराष्ट्रीय काव्य संग्रह के विश्व रिकार्ड में कवयित्री निधि विश्वकर्मा ने भागीदारी कर नाम रोशन किया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जर्मनी निवासी इंदु नंदल की पहल पर 72 रचनाकारों की देशभक्ति से परिपूर्ण 154 कविताओं का संकलन अन्तर राष्ट्रीय काव्य संग्रह ‘वंदे मातरम्’ विगत दिवस प्रकाशित किया गया है। जिससे इन्टरनेशनल बुक ऑफ रिकार्ड ने इसे प्रकाशन का विश्व रिकार्ड दर्ज किया है।
बताते चलें कि शहर के नौबस्ता निवासी राधे श्याम विश्वकर्मा की बेटी निधि विश्वकर्मा की रचना भी इसमें प्रकाशित की गई है और निधि को इसका प्रमाणपत्र मिला है। निधि को अनेक लोगों ने बधाई देते हुए उत्तरोत्तर उन्नति व स्वर्णिम भविष्य की कामना की है।
लेट नाइट पार्टियाँ कितनी सुरक्षित ?
माना कि ज़िंदगी जश्न है, एक-एक पल को मस्ती से जीना चाहिए। पर मस्ती कहीं ज़िंदगी के उपर भारी न पड़ जाए इसलिए एक दायरा तय करते हर कदम बढ़ाना चाहिए। बिंदास जीवन का मतलब छिछोरापन हरगिज़ नहीं।
आजकल युवा लड़के-लड़कियां ज़िंदगी के मजे लेने के मूड़ में होते है। और अब तो बड़े शहरों के साथ छोटे शहरों के लड़के-लड़कियां भी पीछे नहीं। ऐसे में लेट नाइट पार्टी का क्रेज़ बहुत देखने को मिल रहा है। पर ऐसी पार्टियां कितनी सेफ़ है ये सोचे बगैर लड़कियां अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ निकल पड़ती है, जिसका परिणाम कभी-कभी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। ऐसी कई पार्टियों में शराब, सिगरेट, चरस, गांजा भी सरेआम परोसा जाता है। और हम सुनते भी हैं पढ़ते भी हैं कि ऐसी पार्टियों में लड़कियों के साथ जबरदस्ती भी होती है। लड़कियों को किसी भी अनजान लड़के पर भरोसा करके उसके हाथ से कोई भी खाने पीने की चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए।
लेटनाइट पार्टियों में युवाओं को एकदूसरे से खुल कर मिलने का मौका मिलता है। ऐसे में कई बार युवाओं के बहकने का खतरा भी होता है। यह उन पर भारी भी पड़ सकता है। जवानी का शुरुर ही ऐसा नशीला होता है। खासकर लड़कियों के लिए ऐसी पार्टियां खतरे से खाली नहीं होतीं। छेड़छाड़, बलात्कार और किडनैपिंग की संभावना भी नकारी नहीं जाती।
इसलिए जरूरत इस बात की है कि लेटनाइट पार्टी में लड़कियां ब्वॉयफ्रेंड के साथ समझदारी के साथ मौजमस्ती करें। पार्टी में मौजमस्ती बुरी नहीं होती पर मौजमस्ती किसी समस्या का कारण न बन जाए इस बात का ख़याल रखना जरूरी होता है और माँ-बाप का भी फ़र्ज़ बनता है कि अगर आपकी बेटी लेट नाइट पार्टी में जा रही है तो वहाँ के माहौल की जाँच पड़ताल कर लें, जगह कौन सी है, वहाँ का स्टाफ़ कैसा है और किसके साथ जा रही है। पब्स, होटल्स या कहीं भी हो शहर से बाहर ना हो इस बात का भी ध्यान रखें।
अलविदा 2022 के उपलक्ष्य में पार्टी का भव्य आयोजन किया
कानपुरः स्वप्निल तिवारी। ड्रीमगर्ल्स ने द याच क्लब में शानदार मास्करैड थीम पार्टी के साथ साल को अलविदा कहते हुए पार्टी का आयोजन धूमधाम से मनाया गया। संस्था के सदस्यों ने ट्रेजर हंट के साथ डिस्को पार्टी का भी आनंद उठाया। संचालक डिंपल अग्रवाल, सुखविंदर कौर और रश्मि जैन ने साल भर अदबुध सहयोग के लिए सदस्य एकता ओमर, लवीना आहुजा, निधि सिंह,सारिका चावला, माया अग्रवाल, वैदेही बाजपाई, शर्मिष्ठा राठौर, स्मृति टंडन, रंजना मेहरोत्रा, अंशु ओमर को सम्मानित किया गया। अध्यक्ष आंचल सिंह ने आगामी वर्ष में होने वाले नए कार्यक्रमों के बारे में मेंबर्स को सूचित करा मेंबर्स ने हाउसी, गेम और लजीज व्यंजनों का लुफ्त उठाया।कार्यकरिणी सदस्यों प्रिया गर्ग शिल्पी शर्मा और वंदना सिंह को उनके सहयोग के लिए प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
विरोध पाखंड का हो न कि रंगों का
आजकल पठान फ़िल्म सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है। खासकर दीपिका के भगवा रंग के आउटफ़ीट को लेकर बवाल मचा हुआ है। सनातन हिन्दू धर्म में भगवा रंग को पवित्र माना जाता है, जो मंदिरों की ध्वजा से लेकर साधु संतों के द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों का रंग होता है। इसका मतलब ये तो नहीं की केसरी रंग और कोई पहन ही नहीं सकता या किसी और चीज़ों के लिए उपयोग में नहीं लिया जाना चाहिए।
मुद्दा यहाँ दीपिका ने भगवा रंग पहनकर डांस किया उसका नहीं, मुद्दा ये है कि क्या हर भगवे रंग के भीतर बैठा इंसान पवित्र है? निर्माेही है? साफ़ दिल और असल में साधू संतों वाला जीवन जी रहा होता है?
हमने पुराणों में एक कथा सुनी है कि, सीता जी जब बारह साल की बालिका थे तब शिवजी का धनुष आराम से उठाकर खेला करते थे। वही धनुष बलशाली रावण रत्ती भर हिला भी नहीं पाया था और सीता जी को वनवास के दौरान वही रावण फूल की तरह कँधे पर उठाकर ले गया था। रावण भी भगवा धारण करके साधु के भेष में आया था न? तो कहाँ उस रंग का सम्मान हुआ? इस मुद्दे पर तो आज तक कोई बहस कहीं नहीं सुनी।
हमारे यहाँ सदियों से भगवा के सामने झुकने की परंपरा चली आ रही है। जिस परंपरा को निभाने से सीता जी भी नहीं चुके और रावण की फैलाई जाल का शिकार हो गए। कहने का मतलब ये है की भगवा रंगधारी हर चीज़ हर इंसान की नीयत साफ़ नहीं होती। न हर भगवाधारी गलत या राक्षस होता है।
हमारे देश में कई भगवाधारीओं के कांड आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते है, रंग मायने नहीं रखता इंसान की नीयत और पवित्रता पूज्य होती है। बहुत सारे संत भगवा धारण करके असल में साधु सा जीवन जीते भी है।
उफ़्फ ये स्त्रियाँ भी ना
क्या स्त्रियों के उपर हुए शारीरिक अत्याचार ही घरेलू हिंसा कहलाता है? मानसिक प्रताड़ना का क्या? जो एक होनहार महिला को अवसाद का भोग बना देता है। लगता है कुछ स्त्रियाँ प्रताड़ना सहने के लिए ही पैदा हुई होती है। ऐसी स्त्रियों को पता भी नहीं होता घरेलू हिंसा और प्रताड़ना के बहुत सारे प्रकार होते है।
शारीरिक अत्याचार को ही हिंसा समझने वाली स्त्रियों को मौखिक अत्याचार, लैंगिक अत्याचार और आर्थिक अत्याचारों के बारे में जानकारी ही नहीं होती। नां हि स्त्रियों के हक में कायदे कानून के बारे में पता होता है। कोई-कोई स्त्रीयाँ तो स्वीकार कर लेती है आधिपत्य भाव! कि पति है तो उसका हक बनता है हमारे साथ अत्याचार करने का।
साथ ही जरूरी नहीं की शादी के बाद पति जो अत्याचार करे उसे ही घरेलू हिंसा मानी जाए। पिता या बड़े भाई द्वारा लड़की को पढ़ने से रोकना, पहनावे पर रोकटोक करना, बाहर आने जाने पर रोक लगाना या उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी करवा देना भी प्रताड़ना का ही हिस्सा कहलाता है। लड़की ज़ात सहने का भाव लेकर ही पैदा होती है।
पत्नी को बात-बात पर कम अक्कल कहना, ताने मारना, दोस्तों-रिश्तेदारों के सामने ज़लिल करना और बेइज़्जती के साथ लात, थप्पड़ या घूसा मारना हिंसा ही है और धमकी देना या घर से निकाल देना अत्याचार ही है।
लघुकथाः स्त्री बनना है जरूरी
जब रमा का विवाह एक प्रतिष्ठित और सम्पन्न परिवार में तय हुआ तब मन में अजीब सी कशमकश थी कि मेरी उम्र तो छोटी है। इतना बड़ा संयुक्त परिवार है। मैं कैसे सामंजस्य बैठा पाऊँगी। अभी तो किसी भी कार्य में दक्षता नहीं है। पारिवारिक रिश्ते-नाते, रीति-रिवाजों की पर्याप्त समझ आने में तो बहुत समय लगेगा। उसके मन भी बड़ी उलझन थी, पर विवाह उपरांत जब घर में गई तो सारी स्त्रियाँ केवल स्त्रियाँ ही थी। वे धौंस, रोब और अकड़ से परे थी। उन्होंने रमा से कहा कि सारे रिश्ते बाद में आते है, हम सबसे पहले स्त्री है; तुम्हारी सास, जैठानी और ननंद बाद में। तुम सबसे पहले इस घर में सहज हो जाओ। यहाँ पर कोई भी तुम्हें किसी तराजू में नहीं तौलने वाला है। वह अपनी हर छोटी से छोटी समस्या परिवार में रहने वाली स्त्रियों को बताती और सभी मिलजुलकर उस समस्या का समाधान करते। वहाँ पर सभी का सबसे बड़ा गुण माफ करना था। पुरानी बातों को छोड़कर कुछ नया सोचना था। सभी अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे।
रमा अपनी माँ से कहती है कि मेरे ससुराल में सुंदरता, गुणों और अवगुणों को तौलने के लिए कोई तराजू नहीं है। सास अपनी पुरानी कहानियाँ नहीं सुनाती कि मेरे जमाने में ऐसा होता था, मैंने यह किया था, मैंने वह किया था। जेठानी अपनी श्रेष्ठता नहीं सिद्ध करती कि मैंने इस घर को संभालने में इतने वर्ष झोंक दिए। ननंद हर समय मान-सम्मान की दुहाई नहीं देती। हर कोई मुझे सहज महसूस कराने में लगा रहता है। माँ यदि हर परिवार में ऐसी ही परम्परा स्थापित हो जाए तो हर लड़की अपने परिवार को आसानी से अपना लेगी। माँ वहाँ की एक और विशेषता है कि वहाँ पर दोषों पर चर्चा करना स्वीकार नहीं है। दोषों पर ध्यान केन्द्रित करने से उन्नति रुक सकती है, पर समाधान और चिंतन करने से हमारी दृष्टि विकसित होती है। वहाँ पर अपनी गलती को स्वीकार करके हल्का महसूस करने पर भी बल दिया जाता है। माँ मैं भी अब अपने ससुराल के सहयोग के साथ आगे बढ़ना चाहती हूँ। अपनी सोच को उदार बनाना चाहती हूँ। माँ रमा के वाक्य सुनकर मन-ही-मन उस परिवार के प्रति धन्यवाद और मन से दुआएँ दे रही थी, जिस परिवार ने उसकी बेटी की जिंदगी आसान कर दी।
करवा चौथ व्रत के बाद माता अहोई अष्टमी का व्रत
करवा चौथ व्रत के बाद माता अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में माताएं निर्जल व्रत रखते हुए उदय होते तारों को देखकर व्रत का समापन करती हैं। जिस तरह करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा का महत्व है, उसी तरह अहोई अष्टमी व्रत में तारों का विशेष महत्व होता है।
अहोई अष्टमी करवा चौथ के समान ही है। यह एक सख्त उपवास का दिन है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं पूरे दिन पानी पीने से भी परहेज करती हैं। वे केवल शाम को तारों को देखने और उनकी पूजा करने के बाद ही उपवास तोड़ सकतीं हैं।
यह व्रत माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। सुबह उठकर स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें फिर दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाएं या लगाएं। रोली, चावल और फूलों से माता अहोई की पूजा करें। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा सुनें। माता अहोई को हलवा पूरी या फिर किसी मिठाई का भोग लगाएं।
अहोई अष्टमी व्रत से संबंधित दो कथाएं प्रचलित हैं,
पहली कथा-
एक समय एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात-सात बेटे- बहुएं और एक बेटी थीं। दीपावाली से कुछ दिन पहले उसकी बेटी अपनी भाभियों संग घर की लिपाई के लिए जंगल से साफ मिट्टी लेने गई। जंगल में मिट्टी निकालते वक्त खुरपी से एक स्याहू का बच्चा मर गया। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की माता ने साहूकार की बेटी को कभी भी मां न बनने का शाप दे दिया। उस शाप के प्रभाव से साहूकार की बेटी का कोख बंध गया। इस शाप से साहूकार की बेटी दुखी हो गई और उसने अपनी भाभियों से कहा कि उनमें से कोई भी एघ्क भाभी अपनी कोख बांध ले। ननद की बात सुनकर सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई। उस शाप के दुष्प्रभाव से उसकी संतान केवल सात दिन ही जिंदा रहती थी। जब भी वह कोई बच्चे को जन्म देती, वह सात दिन में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। वह परेशान होकर एक पंडित से मिली और उपाय पूछा।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: अब हमारा समय है – हमारे अधिकार हमारा भविष्य
आदिअनादि काल से भारतीय संस्कृति में महिलाओं का बहुत सम्मान किया जाता रहा है। उन्हें देवियों का अवतार माना जाता रहा है, परंतु बड़े बुजुर्गों की कहावत सत्य ही है कि, समय कभी एक सा नहीं रहता परंतु उनकी वह भी शिक्षा है कि वह अपनी सकारात्मक सोच सच्चाई नारी सम्मान परमार्थ बुरी नजर से बचना सहित अनेक गुणों को समय के साथ न बदलते हुए स्थाई रखना मानवीय स्वभाव में समाहित करना जरूरी है। परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया इनकी स्थिति में काफी बदलाव आया, लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने लगी, बालविवाह प्रथा, सती प्रथा, दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि रुढ़िवादी प्रथायें काफी प्रचलित हुआ करती थी, इसी कारण लड़कियों को शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार और चिकित्सा जैसे अधिकारों से वंचित रखा जाने लगा था, लेकिन अब इस आधुनिक युग में लड़कियों को उनके अधिकार देने और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। भारतीय सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है और कई योजनायें लागू कर रही है। चूंकि 11 अक्टूबर 2022 को हम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहे हैं जिसकी थी। अब हमारा समय है-हमारे अधिकार हमारा भविष्य, इसलिए आज हम मीडिया के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से दुनिया को बदलने के लिए सही साधनों के साथ बालिकाओं को सुरक्षित शिक्षित सशक्त और स्वस्थ जीवन शैली सुनिश्चित करना समय की मांग है इसपर चर्चा करेंगे।
करवाचौथ के उपलक्ष्य में भव्य कार्यक्रम आयोजित किये
ग्वालियरः जन सामना डेस्क। माहौर क्षत्रिय स्वर्णकार महिला मंडल का करवाचौथ के उपलक्ष्य में बहुत ही मनमोहक कार्यक्रम आयोजित किये गये। मुख्य अतिथि के रुप में बंदना भूपेंद्र प्रेमी को बुलाया गया। करवा चौथ आरती और कन्या पूजन के बाद कार्यक्रम की शुरुआत हुई। सभी महिलाओं ने करवा चौथ कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस मौके पर महिलाओं के लिए गेम्स हाउजी, करवा चौथ की क्वीन सहित अनेक मनोरंजक कार्यक्रम रखे गए।