Tuesday, May 14, 2024
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लेख/विचार

अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नहीं ?

फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं ।ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..!
व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते- चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है।

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अफगानिस्तान: भारत की अध्यक्षता में पास हुआ प्रस्ताव 13 देशों का समर्थन 2 अनुपस्थित

अफ़ग़ानिस्तान तालिबान संकट मामले में भारत की अध्यक्षता में यूएनएससी का अभूतपूर्व प्रस्ताव पारित – एड किशन भावनानी
अफ़ग़ानिस्तान तालिबान के कब्जे और 31 अगस्त 2021 को अमेरिकन सेना द्वारा काबुल एयरपोर्ट परिछेत्र छोड़ने की डेडलाइन, काबुल एयरपोर्ट पर 26 अगस्त 2021 को जबरदस्त धमाकों में 169 लोगों और 13 अमेरिकन सैनिकों की शहादत सहित अनेक वर्तमान परिस्थितिकी तंत्र जनक स्थितियों में भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अध्यक्षता रूपी उपस्थिति एक जवाबदारी और महत्वपूर्ण रोल अदा करने का जज़बा भारत के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति से कम नहीं था, परंतु भारत ने अपने सुकौशलता पूर्ण और सफलतापूर्ण संचालन कार्यवाही में यूएनएससी में सोमवार – मंगलवार 31 अगस्त 2021 की बैठक में अफ़ग़ानस्तान संकट मामले के संबंध में लाया गया प्रस्ताव क्रमांक 2593 पर कार्रवाई की अध्यक्षता कर प्रस्ताव को 13/0 मतों से पारित किया गया।

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है ये कैसा सफ़र

ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं, है ये कैसी ड़गर चलते है सब मगर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं” इस गाने के बोल को समझे तो बहुत कुछ समझाता है हम इंसानों को।
सफ़र सिर्फ़ ट्रेन या बस में एक जगह से दूसरी जगह जाने का नाम नहीं। जन्म से लेकर मृत्यु तक उम्र काटकर पहुँचना भी एक सफ़र है। स्वाच्छोश्वास का आवागमन मुसाफ़िर जैसा ही है एक श्वास आती है, एक विदा लेती है। इस अविरत बहती क्रिया के सफ़र में देखने लायक और अनुभव करने लायक कई पड़ाव आते है। चुनौतियां, संघर्ष, सुख-दु:ख और सबसे बड़ा पड़ाव रिश्तों की चौसर।

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श्रीकृष्ण का जीवन दर्शन एवं अलौकिक लीलाएं

जन्माष्टमी का त्यौहार प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का भारतीय संस्कृति में इतना महत्व इसीलिए माना गया है क्योंकि श्रीकृष्ण को भारतीय संस्कृति का विलक्षण महानायक माना गया है। उनके व्यक्तित्व को जानने के लिए उनके जीवन दर्शन और अलौकिक लीलाओं को समझना जरूरी है। द्वापर युग के अंत में मथुरा में अग्रसेन नामक राजा का शासन था। उनका पुत्र था कंस, जिसने बलपूर्वक अपने पिता से सिंहासन छीन लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव के साथ हुआ।

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कृषि जैव विविधता को मजबूत करने उसके तकनीकी संरक्षण पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करना जरूरी

मानवीय जीवन यापन में ज़रूरी खाद्य और पोषण क्षमता विकास पर अंतरराष्ट्रीय मंथन एक सकारात्मक कदम – एड किशन भावनानी
भारत एक कृषि व गांव प्रधान देश है जहां अधिकतम जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। भारतमाता की मिट्टी में जीवन यापन में ज़रूरी खाद्य पोषक के उत्पादन की अपार क्षमताएं हैं, जिसके कारण यहां पोषक अनाज की भरपूर मात्रा उत्पन्न होती है, जिसमें बासमती चावल में भारत का स्थान भी शुमार होता है। हमारा देश खाद्य और पोषकके उत्पादन, कृषि कार्यों के लिए जंग प्रसिद्ध है। यही कारण है कि, भारत की पहल और प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीयपोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है व वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष मनाने के लिए तैयारियां की जा रही है।

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हॉकी के जादूगर थे मेजर ध्यानचंद

भारत में प्रतिवर्ष हॉकी के पूर्व कप्तान मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 29 अगस्त 1905 को जन्मे ध्यानचंद हॉकी के ऐसे महान् खिलाड़ी और देशभक्त थे कि उनके करिश्माई खेल से प्रभावित होकर जब एक बार जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपने देश जर्मनी की ओर से खेलने का न्यौता दिया तो ध्यानचंद ने उसे विनम्रतापूर्वक ठुकराकर सदा अपने देश के लिए खेलने का प्रण लिया। हालांकि उन्हें बचपन में खेलने का कोई शौक नहीं था और साधारण शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे सोलह साल की आयु में दिल्ली में सेना की प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए थे।

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स्वतंत्र बनो स्वच्छंद नहीं

वृंदा खुद खुले खयालात वाली इक्कीसवीं सदी की माँ है, उसने अपने बच्चों को हर तरह की आज़ादी देते हुए बिंदास तौर तरीकों से पाल पोष कर बड़ा किया। किसी बात पर रोकटोक नहीं बच्चों को पूरी आज़ादी दी, पर भीतर से वृंदा कहीं न कहीं अपनी संस्कृति और कुछ उसूलों के साथ जुड़ी हुई थी तो आज जब अपनी बेटी ग्रेसी ने ये कहा की मोम मैं अक्षय के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती हूँ, देखना चाहती हूँ हम दोनों के विचार और ज़िंदगी जीने के टेस्ट मिलते है की नहीं।

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गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाक के नापाक इरादे

भारत के बार-बार विरोध जताने के बावजूद पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर अपने नापाक इरादों से बाज नहीं आ रहा है। सामरिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण वाले इस इलाके को अस्थायी प्रान्त का दर्जा देने के लिए पाकिस्तान नें कानून की रूपरेखा तैयार कर ली है। भारत ने इसका सख्त विरोध करते हुए इस्लामाबाद से साफतौर पर कहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान समेत जम्मू-कश्मीर व लद्दाख का पूरा केन्द्रशासित इलाका भारत का अखण्ड हिस्सा है। भारत का कहना है कि पाक सरकार या उसकी न्यायपालिका का अवैध रूप से या जबरन कब्जा किए गए स्थानों पर कोई अधिकार नहीं है।
पाकिस्तान की इस नई योजना के मुताबिक कानून व न्याय मंत्रालय के प्रस्तावित कानून के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान की सर्वोच्च अपीलीय अदालत समाप्त की जा सकती है। 26 वें संवैधानिक संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया गया है और इसे प्रधानमंत्री इमरान खान को सौंप दिया गया है। प्रस्तावित कानून में सुझाव दिया गया है कि इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रान्तों और क्षेत्रों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद-1 में संशोधन करके उसे अस्थायी प्रान्त का दर्जा दिया जा सकता है। गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकारों समेत विभिन्न पक्षकारों से इस विचार विमर्श भी कर लिया गया है।
दर असल पाकिस्तान का मकसद इस सामरिक क्षेत्र में 46 अरब अमेरिकी डाॅलर की लागत से बनाए जाने वाले आर्थिक काॅरीडोर पर चीन की चिन्ताएं दूर करना है। पाकिस्तान ने यह काॅरीडोर बनाने के लिए कुछ समय पहले चीन से करार किया था जिसके तहत तीन हजार किलोमीटर लम्बे इस आर्थिक गलियारे का लगभग 634 किलोमीटर का हिस्सा गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर गुजरेगा। इसी कारण जम्मू-कश्मीर के उत्तर में स्थित यह क्षेत्र चीन के साथ महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जाना जाता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक काॅरीडोर ;सीपीईसीद्ध के प्रमुख मार्ग पर स्थित है। यह सड़कों, राजमार्गों, रेलवे और निवेश पार्कों के नेटवर्क के जरिए दक्षिणी पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह से पश्चिमी चीन के काशगर को जोड़ता है।
गुलाम कश्मीर के रास्ते सीपीईसी बनाए जाने को लेकर भारत कई बार आपत्ति जता चुका है। इसके बाद से ही चीन इस क्षेत्र में निवेश को लेकर चिंतित है क्योंकि विवादित क्षेत्र होने के कारण इस इलाके निवेश सुरक्षित नहीं हैं। चीन की इसी चिन्ता को दूर करने के लिए पाकिस्तान अपनी इस योजना में इस क्षेत्र को प्रांतीय दर्जा देना चाहती है लेकिन यह दर्जा सामान्य प्रान्त की तुलना में छोटा होगा। अभी तक पाक अधिकृत कश्मीर, आजाद कश्मीर व गिलगित- बाल्टिस्तान नामक दो भागों में बंटा है। दोनों क्षेत्रों की अपनी-अपनी विधान सभाएं हैं जो अन्दरूनी तौर पर स्वायत्त हैं। एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के जरिए पाकिस्तान यहां पर शासन करता है।

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मंज़िल को पाना है तो मुखर बनों

खुद पर कमान मजबूत शख़्सीयत की नींव होती है, शांत मन इंसान की दक्षता और कुनेह है, मन को शांत रखो और दिमाग को तेज़। जब किसी की गलत बात या गलत विषय वस्तु पर आप निरर्थक दिमाग नहीं चलाते तो अपनी ज़िंदगी की दिशा निर्देश की कमान भी किसी और के हाथों में मत दो। विरोध करना भी एक हुनर है सीख जाओ, ना कहना गलत नहीं। जिस बात को करने की अनुमति अपना मन और हृदय ना दें वो करने की जुर्रत मूर्खता है, कमज़ोरी है और डर का दूसरा नाम है।
भावनाओं को कुशाग्र बुद्धि पर हावी होने का अधिकार कभी मत दो, अपने वजूद की तलाश खुद के अंदर करो और प्रभुत्व पाकर बेहतरीन शख़्सीयत का प्रमाण दो। आत्मबल का स्त्रोत बहता है हमारे भीतर डर को जड़ से काटने पर फूट पड़ेगा सकारात्मकता का झरना, जो डर और जिजक की असंख्य परतों के पीछे बंदी पड़ा है।

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आरक्षण क्यो, और कब तक

आरक्षण का मतलब किसी काबिल व्यक्ति का हक मारना, अपने बलबुते पर नहीं बल्कि जात-पात का सहारा लेकर जिस कुर्सी के हकदार नहीं उस पर बैठ जाना। आज आरक्षण की वजह से होनहार लड़के 95/96 % के साथ भी नौकरी के लिए भटक रहे है और 40/60 % वाले उनका हक छीन कर ले जाते है। जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए आरक्षण को, दम है तो आगे बढ़ो। दुनिया में काम की कमी नहीं।
आरक्षण सिर्फ़ शारिरीक तौर पर अपाहिज या अति पिछड़े वर्ग के लिए होना चाहिए, वो भी काबिलियत पर। आरक्षण के नाम पर बनें डाॅक्टर, इन्जीनियर या नेता देश और समाज का क्या भला करेंगे। आज स्थिति यह है कि यदि आप केवल इतना ही पूछ लें कि आरक्षण कब खत्म होगा, तो तुरंत आपको दलित-विरोधी की उपाधि से नवाज़ दिया जाएगा। कोई ये नहीं सोचता कि आरक्षण एक ऐसा दीमक है जो देश की होनहार शख़्सीयतों को खा रहा है। क्या केवल कुछ उपजातियां ही अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पदों पर कब्जा जमा रही हैं? क्या जातियों को पिछडे वर्ग की सूची में इसलिए शामिल किया जा रहा है कि वे सचमुच पिछड़ी और वंचित हैं? या इसलिए कि उनकी शक्ति और प्रभावशीलता को देखते हुए राजनेताओं को ऐसा करना पड़ रहा है?

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