Sunday, May 12, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 80)

लेख/विचार

भारतीय गणतंत्र के निर्माण में महिलाओं की भूमिका

गणतंत्र भारत के निवासी होने के कारण हमें कर्म और अभिव्यक्ति की आजादी प्राप्त है। पर इस आजादी के लिए हमारे पुरखों ने मूल्य चुकाया है। अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ ही महिलाओं ने भी सक्रिय भाग लिया और स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह उनके देश प्रेम का परिचायक तो था ही साथ ही उनकी सामाजिक-राजनीतिक चेतना का प्रखर स्वर भी था। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के गगन में अनेक महिलाओं के नाम देदीप्यमान हैं। आजाद हिन्द फौज की महिला पल्टन की सशस्त्र वीरांगनाएं हों, क्रान्किारियों की सतत् सहायता करने वाली वीर बालाएँ हों या फिर राजनीति के माध्यम से समाज जागरण का शंखनाद करने का महत्वपूर्ण काम, वह हर कहीं सफल रही है और अपनी छाप छोड़ी है। अपने शौर्य, मेधा, कर्मठता और चातुर्य से भारतीय गणतंत्र के निर्माण में महिलाओं का योगदान वरेण्य है।
‘मैं कित्तूर नहीं दूँगी‘ का उद्घोष करने वाली कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है। कर्नाटक के कित्तूर में सन् 1778 ई. में जन्मी चेन्नम्मा ने बचपन से युद्ध संचालन सीखा था। संस्कृत, मराठी और कन्नड में पारंगत चेन्नम्मा का विवाह दक्षिण भारत के समृद्ध राज्य कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ हुआ। राजा निःसंतान स्वर्ग सिधार गये। अंग्रेजों ने राज्य को हड़पने के लिए रानी को राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया। रानी नहीं मानीं। फलतः सितम्बर 1824 ई. में धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे ने 500 सिपाहियों के साथ किले को घेर लिया। भयंकर युद्ध में रानी पकड़ी गईं और जेल में डाल भीषण यातनाएं दी गईं और वहीं 21 फरवरी को 1825 ई. को रानी के प्राण-पखेरू उड़ गये। 19.11.1835 को जन्मी मनु को एक दिन इतिहास रानी लक्ष्मीबाई के रूप में याद रखेगा, कौन जानता था। झाँसी के राजा गंगाधर राव से विवाह हुआ पर वह लक्ष्मीबाई को निःसंतान अकेला छोडकर चल बसे। 1854 ई. को अंगेे्रज अधिकारियों के रानी को झाँसी छोड़ देने का हुक्म के जवाब में रानी ने दृढता से कहा, ‘‘मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।’’ अंग्रेजों को तो बहाना चाहिए था। युद्ध प्रारम्भ हुआ। रानी बड़ी वीरता से लड़ रहीं थीं। लेकिन एक सैनिक द्वारा लालचवश किले का द्वार खोल देने के कारण रानी को किला छोड़ना पड़ा। अंग्रेजी सेना ने रानी का पीछा किया। कालपी और ग्वालियर में आमने-सामने भयंकर युद्ध हुआ। घायल रानी अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बाँधे, घोड़े की लगाम मुँह में पकड़े, दोनों हाथों से तलवार चलाती अंगे्रज सैनिकों को मारती-चीरती रास्ता बनाती आगे बढ़ती जा रही थीं। घायल अवस्था में बाबा गंगादास की कुटी में आश्रय लिया और वहीं प्राण निकल गये। वह कुटी रानी की अन्त्येष्टि की समिधा बन जलकर देशप्रेमियों के लिए पावन हो गई। रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल 1830 ई. को जन्मी झलकारी का विवाह रानी लक्ष्मीबाई के तोपची पूरन सिंह के साथ हुआ था। प्रारम्भिक जीवन जंगल में बीता, इस कारण धीरता, वीरता और चपलता के गुण उसे प्रकृति के सान्निध्य में ही मिल गये थे।

Read More »

विद्यालय में अभिव्यक्ति के मायने

जनवरी 2015 की एक सुबह, सूरज अपनी आग को शनैः-शनैः धधकाने कोशिश में था। सूरज का ताप ओढ़े हुए मैं अपनी बीआरसी नरैनी अन्तर्गत पू0मा0वि0 बरेहण्डा गया। प्रार्थना सत्र पूरा हो चुका था और बच्चे कमरों में बैठें या बाहर, शिक्षक और बच्चे यह तय कर रहे थे। यहां पहले भी जाना होता रहा है तो बच्चे खूब परिचित थे। पहुँचते ही बच्चों ने घेर लिया। सबकी चाह थी कि पहले मैं उनकी कक्षा में चलूँ। कोई हाथ पकडे था तो कोई बैग। मैंने सभी कक्षाओं में आने की बात कही लेकिन असल लड़ाई तो बस यही थी कि मैं पहले किनकी कक्षा में चलूँगा। खैर, मेरी काफी मान-मनौव्वल के बाद कक्षा 8 से मेरी यात्रा प्रारम्भ हुई। बाहर धूप में ही बच्चे बैठे थे। बातचीत शुरु ही हुई थी कि कक्षा 7 के बच्चे भी वहीं आ डटे। त्योहार और शीत लहर के कारण लगभग एक पखवारे की लम्बी छुट्टियों के बाद हम लोग मिल रहे थे। पिछले एक-डेढ़ महीने के अपने अनुभव बच्चों ने साझा किए। परस्पर खेले गये विभिन्न प्रकार के खेलों की चर्चा, घर में बने पकवानों की चर्चा, खेत-खलिहान की बातें, मकर संक्रान्ति पर पड़ोस के गाँव ‘बल्लान’ में लगने वाले ‘चम्भू बाबा का मेला‘ की खटमिट्ठी बातें। गुड़ की जलेबी, नमकीन और मीठे सेव, गन्ना (ऊख), झूला मे झूलने की साहस और डर भरी बातों के साथ साथ नाते-रिश्तेदारों की बातें, दादी और नानी की किस्सा-कहानी की बातें, गोरसी में कण्डे की आग में मीठी शकरकन्द भूनकर खाने की स्वाद भरी बातें और न जाने क्या क्या, हां, थोडा बहुत पढ़ने की बातें भी। बातें पूरी हो चुकने के बाद (हालांकि बच्चों की बातें कभी पूरी होती नहीं) ‘‘चकमक‘‘ के दिसम्बर अंक में विद्यालय के कक्षा 8 के बच्चों के छपे गुब्बारे वाले प्रयोग पर विचार-विमर्श हुआ। आगामी मार्च अंक के ज्यामितीय प्रयोग पर अभ्यास हुआ। ‘‘खोजें और जानें‘‘ के पिछले अंक में कवर पर छपे यहाँ की ‘बाल संसद‘ के चित्र पर भी बच्चों ने अपने और अपने माता पिता के अनुभव बताये। स्कूल की दीवार पत्रिका के आगामी अंक के कलेवर पर संपादक मण्डल के साथ बातें करके मुद्दे तय हुए। यह भी निर्णय हुआ कि अब हर अंक पर एक साक्षात्कार अवश्य छापा जायेगा। मनोज और केशकली मिलकर अपने गांव के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले का साक्षात्कार लेंगे। साक्षात्कार क्या है और क्यों? साक्षात्कार कैसे लें, क्या और कैसे बातें करें किन मुद्दों पर किस-किस तरह से प्रश्न किया जा सकता है। मिल रहे उत्तर से प्रश्न कैसे पकड़ें आदि बिन्दुओं पर थोड़ी बातें हुईं। थोड़ी ही देर में वे दोनों बच्चे 10-12 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार कर लाये। वास्तव में प्रश्न चुटीले थे और उनसे कुम्हारगीरी का पूरा चित्र उभरने वाला था। मुझे बेहद खुशी हुई। कौन कहता कि सरकारी विद्यालयों में प्रतिभाएं नहीं है, कोई सोच नही है। उन्हें ऐसे बच्चों से मिलना चाहिए। अभ्यास के तौर पर कक्षा में ही दोनों बच्चों ने मेरा साक्षात्कार लिया।

Read More »

सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम

भारत की राजनीति का वो दुर्लभ दिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहते हुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए? कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेने की असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को पास नहीं करा सकती थी लेकिन सच्चाई यह है कि बाज़ी तो मोदी ही जीतकर ले गए है।
“आरक्षण”,  देश के राजनैतिक पटल पर वो शब्द,जो पहले एक सोच बना फिर उसकी सिफारिश की गई  जिसे,एक संविधान संशोधन बिल के रूप में प्रस्तुत किया गया, और अन्ततः  एक कानून बनाकर देश भर में लागू कर दिया गया।
आजाद भारत के राजनैतिक इतिहास में 1990 और 2019 ये दोनों ही साल बेहद अहम माने जाएंगे। क्योंकि जब 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने देश भर में भारी विरोध के बावजूद मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर  “जातिगत आरक्षण” को लागू किया था तो उनका यह कदम देश में एक नई राजनैतिक परंपरा की नींव बन कर उभरा था। समाज के बंटवारे पर आधारित जातीगत विभाजित वोट बैंक की राजनीति की नींव।

Read More »

क़र्ज़ माफ़ी सत्ता की चाबी

तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजों के परिणामस्वरूप कांग्रेस की सरकार क्या बनी, न सिर्फ एक मृतप्राय अवस्था में पहुंच चुकी पार्टी को संजीवनी मिल गई, बल्कि भविष्य की जीत का मंत्र भी मिल गया। जी हाँ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने इरादे स्पष्ट कर चुके हैं कि किसानों की कर्जमाफी के रूप में उन्हें जो सत्ता की चाबी हाथ लगी है उसे वो किसी भी कीमत पर अब छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दो राज्यों के मुख्यमंत्रियो ने शपथ लेने के कुछ घंटों के भीतर ही चुनावों के दौरान कांग्रेस की सरकार बनते ही किसानों के कर्जमाफ करने के राहुल गांधी के वादे को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। एक प्रकार से कांग्रेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2019 के चुनावी रण में उसका हथियार बदलने वाला नहीं है। लेकिन साथ ही कांग्रेस को अन्दर ही अंदर यह भी एहसास है कि इसका क्रियान्वयन आसान नहीं है। क्योंकि वो इतनी नासमझ भी नहीं है कि यह न समझ सके कि जब किसी भी प्रदेश में कर्जमाफी की घोषणा से उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है, तो जब पूरे देश में कर्जमाफी की बात होगी तो देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा। मध्यप्रदेश को ही लें, कर्जमाफी की घोषणा के साथ ही मध्यप्रदेश की जनता पर 34 से 38 हज़ार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आ जाएगा।

Read More »

अशफाक उल्ला खां मां भारती का अमर पुत्र-प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

स्वाधीनता संग्राम की कालावधि में भारत माता की पावन रज में लोट-लोट कर बड़े हुए युवकों ने मां की आराधना में निज जीवन के सुवासित पुष्प चढ़ाये हैं। हंसते हुए फांसी के फंदों को चूम कर स्वयं गले में धारण कंठहार बना लिया तो वहीें कालचक्र की छाती पर अपने वीरता की गाथा भी रुधिर से अंकित कर दी। इन वीरों में ही एक ऐसा नर-नाहर महनीय व्यक्तित्व है जिसे जिसे तीन फांसी और दो काले पानी की सजा हुई थी। वह थे मां भारती का अमर पुत्र अशफाक उल्ला खा जिसे सभी क्रान्तिकारी स्नेह से ‘कुवर जी’ कहा करते थे।
अशफाक जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक एक जमींदार परिवार में हुआ था। पिता मो0 शफीक उल्ला खां और माता मजहूरुन्निशा बेगम शिशु के जन्म पर फूले न समाये थे। अशफाक अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। इन्हे घर में सभी प्यार से ‘अच्छू’ बुलाते थे। बचपन से ही खेलने, तैरने, घुड़सवारी करने, बंदूक से निशाना साधने और शिकार करने का शौक था। मजबूत ऊंची कद-काठी और बड़ी आंखों वाले सुन्दर गौरवर्णी आकर्षक व्यक्तित्व के धनी अशफाक रामप्रसाद बिस्मिल की ही भांति उर्दू के अच्छे शायर थे। साथ ही हिन्दी और अंग्रेजी में भी कविताएं और लेख लिखते थे। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। एक बार शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ बैठे क्रान्तिकारी दल के बारे में गहन चर्चा कर रहे थे कि तभी मंदिर को नष्ट एवं अपवित्र करने की मंशा से आये दंगाईयों पर अशफाक ने अपनी पिस्तौल तान कर कहा था कि यदि कोई भी आगे बढ़ा और एक भी ईंट का नुकसान हुआ तो लाशें बिछा दूंगा। अशफाक का यह रौद्र रूप देख दंगाई उल्टे पांव भाग खड़े हुए।

Read More »

विद्यालय में अभिव्यक्ति के मायने-प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

जनवरी 2015 की एक सुबह, सूरज अपनी आग को शनैः-शनैः धधकाने कोशिश में था। सूरज का ताप ओढ़े हुए मैं अपनी बीआरसी नरैनी अन्तर्गत पू0मा0वि0 बरेहण्डा गया। प्रार्थना सत्र पूरा हो चुका था और बच्चे कमरों में बैठें या बाहर, शिक्षक और बच्चे यह तय कर रहे थे। यहां पहले भी जाना होता रहा है तो बच्चे खूब परिचित थे। पहुँचते ही बच्चों ने घेर लिया। सबकी चाह थी कि पहले मैं उनकी कक्षा में चलूँ। कोई हाथ पकडे था तो कोई बैग। मैंने सभी कक्षाओं में आने की बात कही लेकिन असल लड़ाई तो बस यही थी कि मैं पहले किनकी कक्षा में चलूँगा। खैर, मेरी काफी मान-मनौव्वल के बाद कक्षा 8 से मेरी यात्रा प्रारम्भ हुई। बाहर धूप में ही बच्चे बैठे थे। बातचीत शुरु ही हुई थी कि कक्षा 7 के बच्चे भी वहीं आ डटे। त्योहार और शीत लहर के कारण लगभग एक पखवारे की लम्बी छुट्टियों के बाद हम लोग मिल रहे थे। पिछले एक-डेढ़ महीने के अपने अनुभव बच्चों ने साझा किए। परस्पर खेले गये विभिन्न प्रकार के खेलों की चर्चा, घर में बने पकवानों की चर्चा, खेत-खलिहान की बातें, मकर संक्रान्ति पर पड़ोस के गाँव ‘बल्लान’ में लगने वाले ‘चम्भू बाबा का मेला‘ की खटमिट्ठी बातें। गुड़ की जलेबी, नमकीन और मीठे सेव, गन्ना (ऊख), झूला मे झूलने की साहस और डर भरी बातों के साथ साथ नाते-रिश्तेदारों की बातें, दादी और नानी की किस्सा-कहानी की बातें, गोरसी में कण्डे की आग में मीठी शकरकन्द भूनकर खाने की स्वाद भरी बातें और न जाने क्या क्या, हां, थोडा बहुत पढ़ने की बातें भी। बातें पूरी हो चुकने के बाद (हालांकि बच्चों की बातें कभी पूरी होती नहीं) ‘‘चकमक‘‘ के दिसम्बर अंक में विद्यालय के कक्षा 8 के बच्चों के छपे गुब्बारे वाले प्रयोग पर विचार-विमर्श हुआ।

Read More »

स्कूल जाने की खुशी में रात भर जागता रहा-प्रमोद दीक्षित ‘मलय‘

बात 1988 की है। मेरी इंटरमीडिएट की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं और मैं बेसब्री से रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था। जून के मध्य में परिणाम आ गया। उस जमाने में आज के जैसी नेट की कोई सुविधा नहीं हुआ करती थी। परीक्षा परिणाम अखबारों के विशेष संस्करण में छपा करते थे। और दूसरे दिन देखने को मिला करते थे। रिजल्ट देखा, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था, मुहल्ले के कुछ सहपाठी फेल हो गये थे और कालेज का रिजल्ट भी द्वितीय श्रेणी का था।। मुझे याद है, मेरी इस उपलब्धि पर भी घर और पास-पडोस में लड्डू बांटे गये थे। जुलाई आया और बी.ए. में स्थानीय महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया था। एक दिन बस ऐसे पिता जी ने पूछ लिया था कि मुझे आगे क्या करना है। मेरा उत्तर उन्हें खुश कर गया था क्योंकि मैंने परिवार की शिक्षकीय परम्परा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। मैंने कहा था,‘‘ मुझे सरकारी प्राईमरी स्कूल में शिक्षक बनना है। और अभी जल्दी बीटीसी प्रशिक्षण के लिए आवेदन हेतु विज्ञापन आने वाला है, मैं फाॅर्म डाल दूंगा।‘‘ ध्यान देना होगा कि उस समय प्राइमरी शिक्षक को बहुत कम वेतन मिलता था और बहुत कम बच्चे प्राथमिक शिक्षा में एक शिक्षक के रूप में जाना चाहते थे।

Read More »

देशद्रोहियों के लिए हर भारतवासी हो अदालत

भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतन्त्र है जिसमें सवा अरब से अधिक आबादी निवास करती है। एक हिम शैल, तीन सागर, छः ऋतुएँ, तीन दर्जन राज्य, दर्जनों धर्म/पंथ, सैकड़ों भाषायें, हजारों बोलियाँ, साठ डिग्री सेल्सियस के रेंज में तापमान, हजारों त्यौहार, संस्कृति, रहन-सहन तथा मरुस्थल व मेघालय यहाँ की विशेषतायें हैं। मतभेद एवं वैचारिक विविधता किसी व्यक्ति, क्षेत्र, सम्प्रदाय या विधान के लिए होना स्वाभाविक है। रोष तब पैदा हो जाता है जब मतभेद अपनी मातृभूमि भारत के लिए उत्पन्न होता है। जिन पाठशालाओं से विकास पुरुष निकलने की अपेक्षा की जाती है वहाँ से ’कन्हैया’ निकलता है। जहाँ बंदेमारम् गूँजना चाहिए वहाँ श्भारत तेरे टुकड़े होंगेश् गूँजता है। ’इन्कलाब जिंदाबाद’ की जगह ’हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ का नारा लगता है और आजादी के इकहत्तर साल बाद भी हम बेशर्म होकर यह तय करने में दशकों गुजार देते हैं कि ये सारे प्रायोजित नारे एवं कृत्य ’देशद्रोह’ के अन्तर्गत आते हैं या नहीं। हम उन कपूतों की तरह हैं जिनकी माँ को सरेआम-सरेराह गाली दी जाये और हम मन में मत्रोच्चार का अंदेशा पाले रहें।
जनमत से बनी हुई सरकारें सदैव जनमत के नफे-नुकसान की गणित में उलझी रहती हैं इसलिए सरकारों से ज्यादा उम्मीद करना खुद को छलने जैसा है। आजादी के आठवें दशक का दौर चल रहा है। जनता को अब तय करना ही होगा कि श्देशद्रोहश् क्या है! जिस तरह ’हत्या’ शब्द सुनते ही धारा 302 और फाँसी या आजीवन कारावास की सजा दिलो-दिमाग में तत्क्षण आ जाती है वैसे ही ’देशद्रोह’ से सम्बंधित धारणा शीशे की तरह साफ होनी चाहिए। देशद्रोह से सम्बंधित नारे, स्लोगन, तख्तियाँ या किसी भी तरह के मौखिक, सांकेतिक या भौतिक कृत्य इतना स्पष्ट होने चाहिए कि करने वाला, सुनने वाला या देखने वाला पूर्णतया परिचित हो। कहने का आशय यह है कि भारत की समस्त आबादी इसको जानती हो, समझती हो।

Read More »

और कब तक प्राण हरेगी गंगा…!

लखनऊ, प्रियंका वरमा माहेश्वरी। बनारस में पिछले हफ्ते गंगा के पानी में मालवाहक जहाज चलाकर प्रधानमंत्री ने देश को यह बताने की कोशिश की कि गंगा अब पूरी तरह साफ़ हो चुकी है और उसमें इतना अधिक और निर्मल जल है कि उसके जरिये नया व्यापारिक रास्ता खुल गया। प्रधानमंत्री ने इसे न्यू इण्डिया का जीता-जागता उदाहरण बताया और उनका गंगा सफाई का संकल्प पूरा होने को है जो उन्होंने चार साल पहले लिया था। उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को नाकारा बताते हुए बताया कि ’हमने गंदे पानी को गंगा में गिरने से रोका। जगह-जगह ट्रीटमेंट प्लांट लगवाये। आज अकेले 400 करोड़ की परियोजना बनारस में चल रही है।’ वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्रियों ने इसे काशी को क्योटो बनाने के प्रधानमंत्री के वायदे से जोड़ा। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश में यमुना नदी को गंगा से जोड़कर नोएडा से आगरा, प्रयागराज से वाराणसी के जलमार्ग हल्दिया से जोड़ने की कवायद करने में लगी है। मगर सवाल उठता है कि इससे पहले जो भी बयान संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों ने दिए हैं क्या वे गलत हैं या गंगा सफाई का काम समय से पूर्व कर लिया गया। या फिर यह सारा स्टंट चुनावी है और मालवाहक जहाज उधार के पानी पर तैर रहा है?
इस सबसे अलग गंगा सफाई का काम पिछले 30 वर्षों से चला आ रहा हैए लेकिन अभी तक कोई सुखद परिणाम या सफलता हासिल नहीं हुई है।

Read More »

भोजपुरी के नाम पर अश्लीलता जिम्मेदार कौन?

भोजपुरी गीत-संगीत के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता से जो लोग चिंतित हैं उनमें से एक नाम प्रेम शुक्ल का है। प्रेम शुक्ल पूर्व में पत्रकार रह चुके हैं और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे अब तक कई विश्व भोजपुरी सम्मेलन का भी आयोजन करवा चुके हैं। उनका कहना है कि भोजपुरी फिल्मों, गानों, आर्केस्ट्रा, म्यूजिक अलबम, आडियो वीडियो के जरिए एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि भोजपुरी एक ऐसी भाषा है जिसमें खूब अश्लीलता है। जो फूहड़ गानों की ही भाषा है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। भोजपुरी भाषा की अपनी अलग एक सुंदर सी पहचान है। इसका एक समृद्ध साहित्य और इतिहास है। भिखारी ठाकुर जैसे महान व्यक्तित्व की भाषा भोजपूरी अश्लीलता की ही वजह से बहुत बदनाम भी हो गई है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है।
प्रेम शुक्ल की बात सही है। यहां पर सवाल यह भी उठता है कि हम इन गानों को इतना ज्यादा क्यों बढ़ावा देते हैं, इनके कैसेट या वीडियो खरीदते क्यों हैं, किसी प्रोग्राम में अगर फूहड़ गाने पेश होने लगें तो हम वहां से उठ क्यों नहीं जाते? जिन दुकानों पर इस प्रकार के फूहड़ गानों के आडियो वीडियो मिलते हैंए हम उनका बहिष्कार क्यो नहीं करते?

Read More »