
कोरोना वैश्विक महामारी में फार्मासिस्टों को नियुक्त करे सरकार, शिक्षकों पर न करे अत्याचार

हाल ही में विज्ञान के अधिक उन्नतीकरण व आधुनिकीकरण का विभिन्न क्षेत्रों में मनुष्यता व पृथ्वी पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
यदि हमारे पूर्वज इस नए दौर के चमत्कारों को देखते तो वे अचंभित रह जाते और साथ ही मानते कि ये सदी इतनी बुरी भी नहीं है जितनी उनके समय में थीं। विज्ञान की देवी ने एक ओर हमें जीवन दान का आशीर्वाद दिया तो दूसरी ओर हमें जीवन की गुणवत्ता की कमी का अभिशाप दिया है। हम इक्कीसवीं सदी में एक प्राकृतिक बम पर सवार होकर प्रवेश कर चुके हैं जो कभी भी फट सकता है, क्योंकि दिन प्रतिदिन मनुष्य का असीमित लालच व धरती मां का शोषण हो रहा है। वो दिन दूर नहीं जब न केवल हम बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पीने का पानी व प्रकृति मां के कोमल सुंदर हरे-भरे वन-विपिन शुद्ध वायु बरसात के लिए तरसेंगे।
ये चिंता न जाने हमें कितने समय से थी, परन्तु हाल ही में कोरोना वाइरस ने हमें दिखा दिया कि हम प्रकृति के आगे कितने तुच्छ हैं। एक ओर मानव जाति कोरोना की लड़ाई में हारती जा रही है वहीं दूसरी ओर असंतुलित पृथ्वी का बहाल हो रहा है। इसका प्रमाण हमारे आसपास हुई घटनाओं में दिख रहा है। न जाने कितने सालों के शोध व वैज्ञानिकों के प्रयासों के बावजूद भी हमारी पृथ्वी की ओजोन परत में छिद्र कम नहीं हो रहे थे। जिस से सूर्य की हानिकारक यूवी किरणे पर्यावरण को नष्ट करतीं हैं। परंतु आज वे छेद न के बराबर है।
कोविड-19 के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई कि हमें अनिवार्य सैनिक सेवा के बजाय अनिवार्य चिकित्सीय सेवा पर बहस करना चाहिए। आज इस आपदा में सरकारी डॉक्टर अकेले लड़ते नजर आ रहे हैं और संसाधन से जुझता हुये सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं ने अपना पूरा दम लगा रखा है और यह सब इसलिए भी मुमकिन हो पा रहा है क्योंकि प्रशासनिक सेवाओं ने संक्रमण रोकने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी है। फिलहाल कोविड-19 जाँच मुख्य मुद्दा है और अब जाँच में वेटिंग चलने लगी है जो कि बेहद गंभीर बात है और इसका मुख्य कारण जाँच केंद्रों की कमी, टेस्टिंग प्रोब की निर्यात निर्भरता और लैब में मानव संसाधन की कमी है।
और अगर हम गैर कोरोना मरीजों की बात करें तो स्थिति और भी खराब है देश भर की ज्यादातर निजी चिकित्सालय या तो बंद पड़े हैं या तो उसमें से चिकित्सक गायब है। इसको लेकर सरकार अपील कर रही थी और कभी कभी आदेश भी दे रही थी। इसके बावजुद भी गैर कोरोना मरीजों को ईलाज नहीं मिल पा रहा है।
आज तक जितनी भी महामारियां संसार में फैली है उन सबने मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। एक तरफ वह भूखमरी और बेरोजगारी का संकट पैदा करती है तो दूसरी तरफ इंसानी जिंदगी की रूमानियत को भी प्रभावित करती है। कोरोना ने भी इंसान की रोमांटिक लाईफ को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
कोरोना जैसी महामारी पर अंकुश लगाने के लिए शासन-प्रशासन का तमाम तंत्र होम क्वारंटीन को ज्यादा से ज्यादा अपनाने के लिए सलाह दे रहा है या दबाव बना रहा है। हालाकि इसके फायदे हैं तो नुकसान भी है।
इस समय होम क्वारंटीन के चलते तमाम लोगों के बीच दूरी बनाएं रखने की बात की जा रही है। शादीशुदा महिला-पुरूष को भी एक दूसरे के बीच विशेष रूप से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बहुत सोच विचार के बाद सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का प्रयोग बंद कर दिया है और प्रेस कॉनफ्रेंस में भी सावधानी बरती जा रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द न बोला जाए।
कोरोनावायरस की महामारी के समय भारत में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द काफी प्रचलित हो रहा है। इसका प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी शब्द का इस्तेमाल अपने दस्तावेजों और निर्देशों में कर रहा है।
सोशल डिस्टेंसिंग को परिभाषित करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ‘ये संक्रामक बीमारियों को रोकने की एक अचिकित्सकीय विधि है जिसका मकसद संक्रमित और असंक्रमित लोगों के बीच संपर्क को रोकना या कम करना है ताकि बीमारी को फैलने से रोका जाए या संक्रमण की रफ्तार को कम किया जा सके. सोशल डिस्टेंसिंग से बीमारी के फैलने और उससे होने वाली मौतों को रोकने में मदद मिलती है.’।
इसका वर्तमान संदर्भ में अर्थ ये बताया जा रहा है कि लोगों को अनावश्यक एक दूसरे के संपर्क में या पास-पास नहीं रहना चाहिए, बिना वाजिब वजह के घर से नहीं निकलना चाहिए, हाथ मिलाने या गले मिलने से परहेज करना चाहिए, ताकि कोरोनावायरस फैल न सके।
एमपी में कोविड़-19 नहीं निशाने पर शिवराज
राजनीति का भी अपना एक अलग ही चरित्र होता है। इसमें कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम जो न चाहे वह भी मजबूरी में करना पड़ जाता है। ये बात विपक्ष के संबंध में नही कही जा रही है। ये बात पक्ष या सत्ता पर बैठे दलों या नेताओं के संदर्भ में कही जा रही है।
दरअसल मसला ये है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी व गृहमंत्री अमित शाह अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता व मध्यप्रदेश में चौथी बार बने नए नवेले मुख्यमंत्री को शिवराज सिंह चौहान को कोरोना महामारी के बहाने निपटाने की चाल चल रहे है। बता दे कि इस समय गुजरात में कोरोना की स्थिति एमपी से भी गंभीर स्थिति में है लेकिन वहां केन्द्रीय जांच दल को न भेज कर एमपी की घेराबंदी की है क्यों?
कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत धीरे धीरे लेकिन मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि देश मेंकोरोना मरीजों की संख्या में वृद्धि होने की गति कम हुई है। यह संख्या अब 7.5 दिनों में दुगुनी हो रही है। लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना से इस लड़ाई के दौरान निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात का मारकज़ सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ। और शायद इसी वजह से यह संगठन जिसके नाम और गतिविधियों से अब तक देश के अधिकतर लोग अनजान थे आज उसका नाम और उसकी करतूतें देश की सुरक्षा एजेंसियों से लेकर आम आदमी की जुबां पर है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकाला जाए कि तब्लीगी जमात के अस्तित्व से दुनिया अनजान थी। विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियों की नज़र काफी पहले से इन पर थीं। काफी पहले से ही इन पर विभिन्न देशों में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में परोक्ष रूप से शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं।