Tuesday, April 23, 2024
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लेख/विचार

विशेष लेख: अंतरिक्ष में इसरो के बढ़ते कदम

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) अंतरिक्ष की दुनिया में निरन्तर नए-नए इतिहास रच रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में कई बड़े मुकाम हासिल किए हैं और अब इसरो ने पिछले दिनों कुल 5805 किलोग्राम वजनी 36 उपग्रह एक साथ लांच कर एक बार फिर नया इतिहास रच दिया। इसरो के बाहुबली कहे जाने वाले सबसे भारी भरकम प्रक्षेपण यान ‘एलएमवी3’ (लांच व्हीकल मार्क-3) ने ब्रिटिश कम्पनी के इन उपग्रहों को लेकर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरी और इन उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) पर लांच कर दिया। इसरो द्वारा इस रॉकेट मिशन कोड का नाम एलएमवी3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन रखा गया था। रॉकेट लांच होने के 19 मिनट बाद ही उपग्रहों के अलग होने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और सभी 36 उपग्रह अलग-अलग चरणों में पृथक हो गए। लो अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा होती है और ब्रिटेन (यूके) स्थित नेटवर्क एक्सेस एसोसिएटेड लिमिटेड (वनवेब) के 36 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के बाद अब पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों के समूह की पहली पीढ़ी पूरी हो गई है। इस सफल अभियान से दुनिया के प्रत्येक हिस्से में स्पेस आधार ब्रॉडबैंड इंटरनेट योजना में मदद मिलेगी। इस वर्ष फरवरी माह में एसएसएलवी-डी2/ईओएस07 मिशन के सफल लांच के बाद इसरो का यह दूसरा सफल लांच था।

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बदलाव जरूरी है

सालभर देश में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं और चुनावी सरगर्मियां तेज करने के लिए कोई न कोई घटनाएं घटती रहती हैं। घटती हुई घटनाएं और बदलते हुए परिप्रेक्ष्य 2024 की आहट देते महसूस हो रहे हैं।
देश में घटनाएं कितनी तेजी से घट रही हैं साथ ही घटनाओं पर प्रतिक्रियाएं भी। कोई भी घटना स्थिर नहीं रह पाती है। उस पर विवाद, टिप्पणियां चलती रहती हैं और जैसे ही नियम कानून के फैसले की बात आती है तब तक एक दूसरी घटना घट चुकी होती है। लोग पुरानी घटना को भुलाकर नई घटना पर अपना ध्यान केंद्रित कर लेते हैं। नोटबंदी, काला धन, बैंक घोटाले, नेताओं की मनमर्जियां, अभद्र टिप्पणियां, चुनावी हमले, अभद्र बयानबाजी, धर्मांधता, संसद में हंगामा, अडाणी मामला इन पर लगातार घटनाएं घट रही हैं और प्रतिक्रिया स्वरुप अन्य घटना घट जा रही है। एक घटना पर फैसला लंबित रहता है कि दूसरी अचंभित कर देती है। इन सारे मुद्दों में अभी तक कोई हल नहीं निकला है बस दबा दी गई है जैसे सरकारी दफ्तरों में फाइलें एक टेबल से दूसरे टेबल पर सरकती रहती है और धूल खाती रहती है और मीडिया भी सवाल पूछने से ज्यादा मामले को ढकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाती है।
और यदि आज के मौजूदा हालात पर नजर डालें तो विपक्ष ने जो सवाल पूछा वो गलत नहीं था और सवाल पूछने का हक तो सांसद के साथ-साथ जनता को भी है लेकिन सवाल पूछने का खामियाजा संसद की सदस्यता समाप्ति और पंद्रह हजार जुर्माना मिला।

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2025 तक भारत में जलसंकट बहुत बढ़ जाएगा ?

संयुक्त राष्ट्र की संस्‍था यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक भारत में जलसंकट बहुत बढ़ जाएगा। अनुमान है कि ऐसे संकट से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। आशंका जताई गई है कि यहां पर ग्लेशियर पिघलने के कारण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा। न्छम्ैब्व् के डायरेक्‍टर आंड्रे एजोले ने कहा कि वैश्विक जल संकट से बाहर निकलने से पहले अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर पर तत्काल एक व्यवस्था करने की जरुरत है।
अब सवाल इस बात का है कि जल संकट के इस तरह के डरवाने रिपोर्ट को पढ़ने और देखने के बाद भी भारतीयों को चिंता क्यों नही हो रही है। क्या भारत के प्रत्येक नागरिक को यह विश्वास है कि देश में पानी की कमी नही होगा या फिर यह जानते हुए कि आने वाले दिनों में भारत के कई क्षेत्रों में पानी के लिए त्राहिमाम मचेगा उसके बाद भी लोग अभी से नही चेत रहे हैं।
इस समय भारत की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं, वहीं गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी जैसी बड़ी नदियों के जल संग्रहण में भारी कमी आई है एवं बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है। इसके अलावा जिन कुओं से पीने एवं सिंचाई के लिए पानी मिलता था आज वह भी लुप्त हो रहे हैं जिसका परिणाम है कि आज से ही पानी के लिए देश में संकट दिखाई देने लगा है।

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गंधर्व विवाह

पता नहीं यह मंदिर मुझे क्यों अच्छा लगता था मुझे और यह भी नहीं जानती थी कि यहां बैठकर मुझे शांति क्यों मिलती है? यहीं पर गीत गुनगुनाते हुए भगवान के लिए फूलों की माला बनाना मुझे अच्छा लगता है। मां बाबूजी सुबह – सुबह आकर मंदिर की साफ सफाई में लग जाते हैं। आंगन साफ करना, पौधों में पानी डालना, फूलों का कचरा समेटना उनका यही काम था। मैं भी मां के साथ-साथ मंदिर चली आती थी। पहले पहल तो यूं ही साथ में आ जाती थी लेकिन अब यह बोलकर साथ आती हूं कि तुम्हारे काम में हाथ बंटा दूंगी तो काम जल्दी निपट जाएगा। यहीं पर काम करते-करते मैं छोटी से बड़ी हो गई थी। सभी से मेरी अच्छी जान पहचान हो गई थी। मंदिर में पुजारी मेरे हाथ की बनी माला सामने से मुझसे मांग कर चढ़ाते थे क्योंकि मैं माला बहुत सुंदर बनाती थी। मैं माला की टोकरी मंदिर के सीढ़ियों के पास रख देती थी। पंडित जी पानी के छींटे मारकर टोकरी अंदर ले लेते थे और भगवान को चढ़ा देते थे। यह मंदिर मुझे अब अपना घर जैसा ही लगने लगा था। एक दिन ना आऊं तो कुछ अधूरा सा लगता था।

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होली पर असावधानियां न दें जिंदगी भर का दर्द

रंगों के त्यौहार होली पर भला कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो आपसी द्वेषभाव भुलाकर रंग-बिरंगे रंगों में रंग जाना नहीं चाहेगा। लोग एक-दूसरे पर रंग डालकर, गुलाल लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं लेकिन होली के दिन प्राकृतिक रंगों के बजाय चटकीले रासायनिक रंगों का बढ़ता उपयोग चिन्ता का सबब बनने लगा है। ज्यादातर रंग अम्लीय अथवा क्षारीय होते हैं, जो व्यावसायिक उद्देश्य से ही तैयार किए जाते हैं और थोड़ी सी मात्रा में पानी में मिलाने पर भी बहुत चटक रंग देते हैं, जिससे होली पर इनका उपयोग अंधाधुंध होता है। ऐसे रंगों का त्वचा पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। शुष्क त्वचा वाले लोगों और खासकर महिलाओं व बच्चों की कोमल त्वचा पर तो इन रंगों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। अम्ल तथा क्षार के प्रभाव से त्वचा पर खुजलाहट होने लगती है और कुछ समय बाद छोटे-छोटे सफेद रंग के दाने त्वचा पर उभरने शुरू हो जाते हैं, जिनमें मवाद भरा होता है। यदि तुरंत इसका सही उपचार कर लिया जाए तो ठीक, अन्यथा त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियां भी पनप सकती हैं। घटिया क्वालिटी के बाजारू रंगों से एलर्जी, चर्म रोग, जलन, आंखों को नुकसान, सिरदर्द इत्यादि विभिन्न हानियां हो सकती हैं। कई बार होली पर बरती जाने वाली छोटी-छोटी असावधानियां भी जिंदगी भर का दर्द दे जाती हैं।

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महामारी अंत की पहली होली में रखें स्वास्थ्य का खास ख्याल

कोरोना महामारी का अंत हो गया है और यह पूरे पूरे 3 वर्ष तक चला। 2019 के बाद 2023 में खूब हर्षाेल्लास के साथ और बिना किसी रोक-टोक के होली मनाएंगे ऐसे में स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है क्योंकि अक्सर हम जोश में होश खो बैठते हैं।
होली में मौसम में तेजी से बदलने लगता है सर्दी की विदाई और एकदम से तेजी से गर्मी आने लगती है ऐसे में अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारा शरीर मौसम के बदलाव से अपने आप में संतुलन बनाने में लगा रहता है।
आइए जानते हैं कैसे खेले हैप्पी हेल्दी होली-
सबसे पहले तो अपने शरीर को अच्छे से हाइड्रेट रखें पानी का शरीर में बहुत अहम भूमिका है।
शरीर में पानी 60 प्रतिशत से भी ऊपर है, मस्तिष्क में 85 प्रतिशत, खून में 79 प्रतिशत, और फेफड़ों में 80 प्रतिशत है।यह हमारे शरीर से टॉक्सिंस बाहर निकालता है और थकान को भी दूर भगाता है यदि आप ज्यादा पानी पी नहीं पाते क्योंकि आपका पेट फूलने लगता है या जी मिचलाने लगता है या पानी पसंद नहीं ऐसे में आप पानी के अन्य स्रोत जैसे ग्रीन टी ,फ्रेश फ्रूट जूस, नारियल पानी, जूसी फल जैसे संतरा, अंगूर ,खरबूजा ,तरबूज आदि का सेवन कर खुद को हाइड्रेट रख सकते हैं। शरीर में 60 प्रतिशत से भी अधिक पानी है ।

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चीतों से गुलजार होती भारत की धरती

करीब 70 वर्षों के बेहद अंतराल के पश्चात् लंबे प्रयासों के बाद भारत में पिछले साल 17 सितम्बर को चीतों की वापसी हुई थी, जब चीते की शक्ल में तैयार हुए बोइंग 747 के विशेष विमान के जरिये नामीबिया की राजधानी विंडहोक से ग्वालियर लाए गए 8 चीतों को प्रधानमंत्री द्वारा मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में बाड़े में छोड़ा गया था। ये सभी चीते यहां के माहौल में पूरी तरह ढ़ल चुके हैं। चीतों के पुनर्वास की चल रही योजना के तहत 18 फरवरी को भी दक्षिण अफ्रीका से 7 नर और 5 मादा चीते कूनो नेशनल पार्क में लाए जाने के बाद अब भारत में चीतों की संख्या 20 हो गई है। हालांकि ऐसा नहीं है कि चीतों को अचानक ही भारत लाए जाने की योजना बनी बल्कि करीब 50 वर्ष पहले चीतों को भारत लाने के प्रयास शुरू हो गए थे। सबसे पहले 1970 में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीता भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई थी लेकिन वहां शासक बदलने के बाद चीते भारत नहीं लाए जा सके, जिसके बाद इन प्रयासों की रफ्तार धीमी पड़ गई।
21वीं सदी के इन दो दशकों में चीतों की वापसी के प्रयासों में तेजी आई और उनके संरक्षण के लिए गलियारों की पहचान और उन्हें सुदृढ़ करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया। 2009 में राजस्थान के अजमेर में हुई बैठक में चीतों को भारत लाने की चर्चा पुनर्जीवित हुई और आनुवंशिक समानता तथा जीनोम विश्लेषण के आधार पर अफ्रीका से चीते लाकर भारत में बसाने की योजना को उपयुक्त पाया गया। चीतों की पुनर्स्थापना के संबंध में पर्याप्त अध्ययन नहीं होने के कारण 2013 में सर्वाच्च न्यायालय ने चीतों को भारत लाए जाने पर रोक लगा दी थी। अदालत द्वारा 28 जनवरी 2020 को चीतों के पुनर्स्थापना हेतु अनुमति मिलने के बाद चीता परियोजना हेतु माॅनीटरिंग के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ दल का गठन किया गया और उसके बाद चीतों को भारत लाए जाने की इजाजत देने के पश्चात् ही चीतों की भारत वापसी का रास्ता साफ होने से इन प्रयासों में तेजी आई। चीतों को भारत लाने के लिए भारत सरकार ने 2010 में नामीबिया से बातचीत शुरु की थी लेकिन नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का समझौता जुलाई 2022 में हुआ। 2021-22 से 2025-26 के बीच ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत ‘चीता इंट्रोडक्शन परियोजना’ के लिए भारत सरकार द्वारा 38.7 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है।

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क्या यही प्यार है ???

आजकल राखी सावंत और आदिल का रिश्ता सोशल मीडिया पर जमकर सुर्खियां बटोर रहा है। उनके रिश्ते को साल भर भी पूरा नहीं हुआ और दोनों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे है। अभी कुछ महीनों पहले एक दूसरे को जान से ज्यादा अज़ीज मानने वाले राखी और आदिल, आज एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन बैठे है। कहाँ गया वो प्यार, वो शिद्दत, वो चाहत? क्या सच्चा प्यार इतनी जल्दी दम तोड़ देता है? स्वार्थ की नींव पर बँधे रिश्तों का अंजाम यही होता है। ऐसे छिछोरे लोगों ने आजकल रिश्तों की गरिमा का कत्ले-आम कर दिया है और शादी जैसे पवित्र बंधन को मजाक बना कर रख दिया है।
कोई मेल नहीं था दोनों का, फिर क्यूँ जुड़े एक दूसरे के साथ। हो सकता है शायद राखी की पोप्युलारिटी को ज़रिया बनाकर आदिल आगे बढ़ना चाहता हो, और अपने से छोटे हेंडशम दिखने वाले आदिल से राखी आकर्षित हुई हो। कारण जो भी हो पर सस्ती पब्लिसिटी के चक्कर में लड़कियाँ खुद को बर्बाद कर लेती है, राखी उस बात का जीता जागता उदाहरण है।
राखी सावंत जो इन दिनों अपने निजी रिश्तों की वजह से खबरों में छाई हुई है, उन्होंने बीते दिनों अपने ही पति आदिल को जेल भिजवा दिया और उनके खिलाफ़ कोर्ट में केस भी लड़ रही है। हर दिन राखी सावंत मीडिया में आकर केस का अपडेट सुनाती है। राखी को लोग ड्रामा क्वीन के नाम से भी जानते है। माना कि वो भी दूध की धुली नहीं, हर कुछ दिन बाद पब्लिसिटी स्टंट करती रहती है। आज उसे अपनी ही बेवकूफ़ी भारी पड़ रही है। किसीको बिना जाने पहचाने अपनी सारी प्रॉपर्टी दे देना अक्कलमंदी हरगिज़ नहीं।

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मानसिक प्रदूषणः सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग?

बहुत तरह के प्रदूषण की चर्चाएं होती हैं जैसे ध्वनि जल थल वायु आदि किंतु सबसे खतरनाक प्रदूषण का कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता यह मानसिक प्रदूषण है।
हर मानव ही मानसिक प्रदूषण से पीड़ित है और समाज में तेजी से इसे फैलाने का योगदान भी निभा रहा है किंतु अनजाने में इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है और इसीलिए यह चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता है।
मानसिक प्रदूषण प्राचीन काल से मौजूद है ।मानसिक प्रदूषण पूरी मानव जाति के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह अन्य प्रदूषण का जनक है और इसके दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए मनुष्य को बहुत संयम से काम लेना पड़ेगा, मानसिक प्रदूषण का जन्म होता है इस वाक्य से-
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ?
क्या कहेंगे लोग इस चक्कर में इंसान इतना मानसिक प्रदूषित हो रहा है और समाज में फैला रहा है।
यह विनाशकारी भावनाएं मनुष्य में मानसिक प्रदूषण का जन्म देती हैं। मानसिक प्रदूषण मानव मन और व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने वाली प्रक्रिया को बाधित करता है मन प्रदूषित तो तन,पर्यावरण ,समाज सब धीरे-धीरे प्रदूषित हो जाता है यह विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होता है जैसे उदाहरण -अत्याचार, क्रोध, काम, लोभ, ईर्ष्या आदि ।

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तुर्किये-सीरिया के भूकम्प से सबक सीखने की जरूरत

6 फरवरी को 7.8 की तीव्रता के शक्तिशाली भूकम्प से तुर्किये और सीरिया में हुए महाविनाश में 20 हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तुर्किये की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां अक्सर भूकम्प आते रहते हैं। 1999 में तो यहां भूकम्प से 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। तुर्किये और सीरिया में भूकम्प से हुई भयानक तबाही को देखने के बाद कुछ समय से भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार लग रहे भूकम्प के झटकों को लेकर भी चिंता गहराने लगी है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भारत में भी तुर्किये तैसे ही तेज भूकम्प की आशंका जता रहे हैं। उनके मुताबिक आगामी एक-दो वर्षों में या एक-दो दशक में कभी भी भारत के कुछ हिस्सों में 7.5 से भी ज्यादा तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश का करीब 59 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न तीव्रताओं वाले भूकम्प के जोखिम पर है। खासकर दिल्ली-एनसीआर तथा निकटवर्ती राज्यों में तो बार-बार भूकम्प के झटके लग रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में 3 फरवरी की रात 3.2 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। 24 जनवरी की दोपहर को तो दिल्ली-एनसीआर सहित कुछ राज्यों में रिक्टर स्केल पर 5.8 तीव्रता के भूकम्प के तेज झटके लगे थे। 5 जनवरी की रात दिल्ली-एनसीआर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में 5.9 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। उससे पहले दिल्ली एनसीआर में नए साल की शुरूआत भी 3.8 तीव्रता के भूकम्प के झटकों के साथ ही हुई थी। नवम्बर माह में तो दिल्ली-एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकम्प भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिक्टर स्केल पर 6.3 तीव्रता का था, जिसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था।

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