Friday, September 20, 2024
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सूखा हुआ गुलाब

काश कि कोई मुझे देखकर मेरी कसक, मेरी टीस और मेरी मोहब्बत को समझ पाता कि मेरे सूखने के बाद भी मेरा रंग और खूबसूरती अभी भी बाकी है, बिल्कुल उसी तरह जब तुमने मुझे अपने प्रेम के हवाले किया था। उस वक्त मुझे बस एक ही बात खटक गई थी कि तुम्हारा हाथ लगते ही एक पंखुड़ी मेरे तन से जुदा हो गई थी। मुझे दर्द हुआ था जुदाई का, टूटने का, तड़प का, मगर तुमने मुझे जिसके हवाले किया था उसने तुम्हारे प्रेम को संभाल लिया था। मैं अभी भी लिफाफे में बंद हूं तुम्हारी पुरानी मोहब्बत की तरह लेकिन मैं उसे सूखी हुई मोहब्बत नहीं कह सकती इसीलिए तो तुमसे कह रही कि तुम्हारा प्रेम अभी भी जिंदा है। मैं खुद भी न जाने कितने अर्से से तुम्हारी बाट जोह रही हूं, सिर्फ तुम्हें बताने के लिए कि तुम टूटना मत, तुम भरोसा मत खोना मेरी मौजूदगी प्रेम पर भरोसा साबित करती है।
नीलम:- “अरे तुम यह किससे बातें कर रहे हो? इस सूखे हुए गुलाब से बात कर रहे हो? पगला गए हो का?
(हंसने की आवाज)
राजन:- ” हां मोतरमा! कभी-कभी दार्शनिक बनने को दिल चाहता है। सोच रहा था इस गुलाब के बारे में जो कभी तुमने मुझे दिया था।”
नीलम:- (मुस्कुराकर) “तुमने अभी तक संभाल कर रखा है? अरे! कभी मेरी भी मदद कर दिया करो? मेरे फूल पर कविता कर रहे हो?”
राजन:- “ये पत्नियों वाली बातें मत किया करो! मैं रोमांटिक हो रहा हूं और तुम सारा मजा किरकिरा किये दे रही हो।”
नीलम:- ” ठीक है, चाय भिजवा रही हूं। अभी तो तुम्हें उसी की जरूरत है।”
(हाथ पकड़ कर नीलम को बैठाते हुए) अरे यार! जब देखो काम काम, कभी छोड़ भी दिया करो। देखो बारिश ने मौसम कितना खुशनुमा कर दिया है और मुझे पुराने दिन याद आने लगे हैं, जब तुम और मैं कॉलेज से बस स्टैंड तक भीगते हुए जाते थे और तुम्हें याद है कि नहीं पता नहीं लेकिन मुझे याद है मैंने रास्ते से मकई खरीदा था उस एक मकई को हम दोनों ने खाया था। याद है क्या तुम्हें ज्यादा भीगने की वजह से दूसरे दिन मुझे बुखार आ गया था।”
नीलम:- “हां याद है दो दिन बाद तुम्हारा जन्मदिन था और तुम कॉलेज नहीं आ रहे थे तो मैं परेशान हो गई थी तुमसे मिलने के लिए।
राजन:- (हंसते हुए) “अपन थे ही इतने हैंडसम”। नीलम:- “जाओ जाओ मेरे पीछे तो तुम शुरू से ही दीवानों की तरह पड़े हुए थे।”
राजन:- “तभी तो तुमने यह गुलाब मुझे दिया था सबके सामने।”
नीलम:- (मुस्कुराते हुए) “हां तुम्हें नहीं पता मैं दो दिन कितनी परेशान हो गई थी ये सुनकर कि तुम्हें निमोनिया हो गया है और इसलिए मैं घर पहुंच गई थी तुमसे मिलने। मम्मी जी समझ गई थी कि मामला कुछ गड़बड़ है तभी गुलाब दिया जा रहा है।”
राजन:- (हंसते हुए) “पता है! मम्मी ने पूछा था कि यह कौन है जो तुम्हें गुलाब दे रही है और मैंने टाल दिया था कि क्लासमेट है सभी की तरफ से दे रही है फूल, तुम ज्यादा मत सोचा करो।”
राजन:; “सुनो बीते हुए दिन वापस नहीं आ सकते क्या? वही कॉलेज, वही सलवार सूट में एक चोटी में तुम और तुम्हारे पीछे बावला मैं। हम दोनों बारिश में भीगते हुए।”
नीलम:- “सपनों में से बाहर आओ। अब अगर भीगे तो सीधे अस्पताल पहुंच जाएंगे और बच्चे मजाक करेंगे सो अलग कि बुढ़ापे में रोमांस कर रहे हैं। देखो उस फूल की भी उम्र हो चली है। सूख गया है न बस वैसे ही प्रेम में भी स्थायित्व आ गया है। बह तो रहा है लेकिन शांत अविरल धारा सा।”
राजन:- (मुस्कुराते हुये) “हां भई तुम सही! मेरा गुलाब तो अभी भी जवान है और एक कप चाय दे दो ना। ये बारिश के मौसम का तकाजा है।”
नीलम:- “पता था मुझे! भिजवा रही हूं गुलाब बाबू! (हंसते हुए)
राजन गुलाब को देखते हुए कहने लगे…
एक अरसा हुआ तुझे याद कीजिए किये हुए
ऐ मोहब्बत तूने बहुत इम्तिहान लिये…
गुलाब अपनी ही अदा से किताबों में फिर से कैद हो गया एक याद, एक कहानी बनकर…।

  • प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात