Thursday, May 16, 2024
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विविधा

संघर्ष

जब टूटे हर सपना
जब रूठे हर अपना ।
जब परिस्थिति हो विकट
जीवन परीक्षा हो निकट
जी जान लगा दे तू
तन मन अर्पण कर दे तू ।
बस ध्यान रहे
मंजिल पर
उठे हर पद तेरा
लक्ष्य पथ पर !
बाधाएं चाहे कितनी आये
परिस्थिति चाहे कितनी भटकाये

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’एक टुकड़ा आज’ से

शक से देखी गयी भूमिका हर कदम।
ढूँढते जो रहे फायदा हर कदम।
बावफा से रखो राबिता हर कदम।
बेवफा को करो अनसुना हर कदम।
साथ उसके रहो साथ उसके चलो,
जो रहे हम कदम आपका हर कदम।
जिन्दगी के लिये जिन्दगी भर करो,
खूब हालात का सामना हर कदम।
हर कदम पर मिली कामयाबी उसे,
जो बना कर चला योजना हर कदम।
पा सका वो नहीं अपनी मंजिल कभी,
ठिठकता जो रहा काफिला हर कदम।
इस कदर डर गया आज हालात से,
ढूंढता फिर रहा आसरा हर कदम।
दिग्विजय हम उसे किस तरह से कहें,
है जिसे संघ का फोबिया हर कदम।
हमीद कानपुरी

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मेरे कृष्ण कन्हाई

काली अंधियारी रात को जन्म है जिसने पाया,
भादो कृष्ण अष्टमी को उस दिन रोहिणी नक्षत्र आया।
मोर मुकुट सिर धारण किया है कटि पे सुंदर लंगोट लिया है,
कानों में कुंडल विराजे है हाथ में मुरली साजे है।
माखन मिश्री चुराके जो खा जाता है,
ब्रज की हर बाला को फिर दीवाना कर जाता है।
गोपियों के संग जिसने मधुर किया है रास,
गोकुल में हुआ था अद्भूत जिसका निवास।
देवकी यशोदा जैसी पाई है जिसने दो-दो मैया,
नंदकिशोर नटवर नागर ऐसे हैं मेरे कन्हैया।
सबके दुख को हरने वाला ग्वालो संग धूम मचाने वाला,
बंसी की धुन पर नचाने वाला मुरली मनोहर है नंदलाला।
आओ मिलकर मनाएं जन्माष्टमी का त्योहार,
सजकर सुंदर दही हांडीयाँ भी है तैयार।
राधा की भक्ति और कृष्णा की शक्ति से आए खुशियों की बहार,
मुरली मनोहर की कृपा से मिले सफलता अपार।
।। जय श्री कृष्णा ।।

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आपसी झगड़ा खत्म करने के लिए हार मान लेना अच्छा है …

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दूत से सम्मानित दादी डाॅ0 प्रकाशमणि जी का 11वाँ स्मृति दिवस 25 अगस्त को
विश्व सद्भावना दिवस के रूप में मनाया जायेगा
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईष्वरीय विष्व विद्यालय की पूर्व मुख्य प्रशासिका एवं संयुक्त राश्ट्र संघ द्वारा ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दूत से सम्मानित दादी डाॅ0 प्रकाशमणि जी का 11वाँ स्मृति दिवस 25 अगस्त को संगठन के अलीगढ रोड स्थित, आनन्दपुरी कालोनी के सहज राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र पर मनाया जायेगा। यह जानकारी केन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी शांता बहिन ने दी।
दादी डाॅ0 प्रकाषमणी जी के व्यक्तित्व की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि स्वभाव से सरल दादीजी ने निमित्त भाव , निर्मल वाणी और निर्मानभाव से ही संसार को परमपिता परमात्मा षिव का संदेष दिया। वे कहती थीं कि संसार के आपसी झगडों का कारण ही अहंकार है। परिवार में रहते हुए यदि एक व्यक्ति अपनी हार मान ले तो झगडा खत्म हो सकता है। जीवन मूल्य एवं अध्यात्म की उनकी सेवाओं को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय ने डाॅक्ट्रेट की उपाधि से सम्मानित किया। संगठन को 5 देषों से संसार के 136 देषों तक पहुँचाने वाली दादी डाॅ0 प्रकाशमणि जी का स्मृति दिवस 25 अगस्त को ब्रह्माकुमारीज संगठन द्वारा सारे संसार में ‘‘विश्व सदभावना दिवस’’ के रूप में मनाया जायेगा। आनन्दपुरी केन्द्र पर प्रातःकाल उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला जायेगा तथा शृद्धासुमन अर्पित किये जायेंगे।

 

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लघुकथा – रक्षाबंधन पर भाई-बहन दोनों विवश

राहुल आज बहुत खुश था आखिर उसे रक्षाबंधन के त्यौहार का हमेशा से इंतजार रहता है। क्योंकि आज उसकी बहन साक्षी घर आने वाली है, दोनों भाई बहन बचपन से साथ पले-बढ़े। लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि राहुल आज एक करोड़पति और बहुत पैसे वाला व्यक्ति है, किंतु साक्षी जो शादी के बाद काफी दुखी रही और किसी कारणवश पति इतने पैसे नहीं कमाता कि उनका लालन-पालन अच्छी तरह कर सके। साक्षी गरीब होने के बावजूद भी एक स्वाभिमानी लड़की है और वह कभी भी नहीं चाहती कि उसका भाई उसकी कोई ज्यादा पैसों से मदद करें हमेशा की तरह साक्षी रक्षाबंधन वाले दिन राहुल के घर पहुंचती है और बड़ी खुशियों से राखी बांधने की तैयारी करती है। राहुल भी बहुत खुश है राहुल जानता है कि उसकी बहन उससे कभी कुछ भी फालतू पैसे नहीं लेगी तो इसीलिए उसे इस त्यौहार की हमेशा प्रतीक्षा रहती है। राखी बांधने के बाद राहुल ने एक लिफाफे में एक अच्छी रकम अपनी बहन साक्षी को दी। दोनों भाई और बहनों की आँखो में आँशु थे, बहन की आँखो में इसलिए आँशु थे कि उसका भाई उसकी गरीबी को बिना कहे समझ गया और भाई की आँखो में इसलिए आँशु थे कि पूरी तरह सक्षम होने के बावजूद भी वह अपनी बहन साक्षी की पूरी तरीके से मदद नहीं कर पा रहा था। बस इसी तरह हर साल का यह त्यौहार ऐसे ही चलता रहता है और दोनों भाई बहन की आँखों में नमी ऐसे ही विवशता से बनी रहती है।

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आत्ममंथन

यूँहि बेवक्त कभी बारिश में भीग कर देखो
वक्त की जेब से खुशियां चुरा कर देखो!
कब तक सिकुड़ के जीते रहोगे
कभी तो बाहों को फैला कर देखो!
हमेशा शिकायत रहती है लोगों से
कभी खुद की गलती सुधार कर देखो!
यूँहि जिये जा रहे हो खुद के लिये
थोड़ा वक्त जरूरतमंदों को देकर देखो!
सभी को जाना है यहां कोई अमर नही
जानते तो हो पर मानकर भी देखो!!
हर तरफ भ्रष्टाचार व्यभिचार दिख रहा
एक बार चुप्पी को तोड़ कर देखो!!
हमेशा लिखते हो दुनियादारी पर
कभी आत्ममंथन को लिख कर देखो!!

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नटखट तू गोपाल जैसा

नटखट तू गोपाल जैसा
प्रिय तू मुझको न कोई वैसा।
है हवाओं सी तुझमें चंचलता
चांद सी तुझमें है शीतलता।।
प्रखर सूरज सा ओज है मुख में
बादलों सा पानी है।
गंगा की निर्मलता तुझमें
तू प्यार की रवानी है।।
निश्छल तेरी यह मुस्कान
जग में है सबसे छविमान।
अटक अटक कर तेरा बोलना
सात सुरों की अद्भुत तान।।

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ग़ज़ल आग में मुफलिसी….

आग में मुफलिसी की हम जलते रहे
और दर्दे जिगर से बिलखते रहे
चाक दामन किए जो थे अपने सभी
रोज उनकी जो नजरों में खलते रहे
जिन्दगी का भयानक बुरा वक्त था
बेबसी में फिसलते सँभलते रहे
बेवफा है जमाना नहीं काम का
जो थे अपने वो नजरें बदलते रहे
गैर से है गिला और शिकवा नहीं
क्या कहें रोज अपने ही छलते रहे
वक्त की आँधियाँ ले उड़ी सब खुशी
गम की राहों में हम रोज चलते रहे
आँसुओं की नदी मेरी आँखों में थी
खार चुभते रहे फूल हँसते रहे
मुश्किलें जिन्दगी की नहीं कम हुईं
शम्अ की तरहा श्ऐनुलश् पिघलते रहे
ऐनुल बरौलवी

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मौन भी आवाज़ है

मौन भी संगीत है
मौन भी सुगंध है
मौन भी तौल है
मौन भी जोड़ है
मौन भी योग है
मौन भी प्रेम है
मौन भी इलाज है
मौन भी तपस्या है
मौन भी आनंद है
मौन भी आगाज़ है
मौन भी तलवार है
मौन भी आवाज़ है
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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पहली बार मंच पर कविता पढ़ता कवि

पहली बार कविता का पाठन करना है।
नीर का मन आज बहुत घबराया है।।
अपनी लिखी हुई कविता के शब्द जैसे दिख नही रहे।
सारे के सारे शब्द जैसे पन्ने से फुर हो गए।।
उसपे बड़े बड़े कवियों ने बड़ा अच्छा मंच सजाया है।
देख देख कर मंच की सज्जा नीर का मन घबराया है।।
ऐसा लग रहा था आज बस दम निकल जायेगा।
इतने बड़े नामो के बीच मे सब खो जाएगा।।
जैसे तैसे कविता का उच्चारण शुरू किया।
होठ लड़खड़ा गए और पैर भी अंदर तक कांप गए।।
लगता था आज अपनी ही कविता मैं कह नही पाऊंगा।
पता नही आज अपनी जान कैसे बचाऊँगा।।
पढ़ते पढ़ते आँखो से आँशु बहने लगे ।
शीर्षक माँ ने आज फिर मुझे बचाया है।।
बचपन से आज तक माँ ही काम आयी है।
कविता पाठन में भी मेरी लाज माँ ने बचाई है ।।

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