जनजातीय शिल्पकारों, कारीगरों और महिलाओं के उत्पादों के लिए पर्याप्त विपणन मार्ग तैयार करने रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी
भारत की संस्कृति को मज़बूत करने में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान – जनजातीय लोगों के प्राकृतिक कौशल को निखारने, उनके आय के स्रोतों में सुधार करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
भारतीय संस्कृति में शिल्पकारों, भाषा, रीति-रिवाजों, कारीगरों, प्रथाओं परंपराओं, व्यंजनों इत्यादि अनेकउपलब्धियों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जानकारों का कहना है कि यह संस्कृति 5 हज़ार ईसवी से भी पुरानी है। याने इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति सोलह सौ से भी अधिक वर्ष पुरानी है, जो कि आज की पीढ़ी के नवयुवक सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे। साथियों इस हमारी अणखुट संस्कृति, अनोखी परंपराओं मेंसे अनेक विलुप्त भी हो चुकी है और अनेक विलुप्तता की और भी हैं, जिन्हें हमें सभी को साथ मिलकर बचाना होगा। साथियों बात अगर हम जनजातीय समुदाय की करें तो भारतीय संस्कृति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
विविधा
रो लूं
दिल करे यूं आज तुमको
याद कर के रो लूं
एक भी बूंद अश्क़ के ना बचे आंखों
जी भर के रो लूं
ना सोचूं मैं ये
कोई कहेगा क्या
और मेरे साथ क्या होगा हादसा
यूं खुद को मैं तबाह कर के रो लूं
हौसला ना रहा रूह के
सिहरन को रोक लूं
‘’तुम सबकुछ हो जानते’’
सूर्य सनातन देव दृष्टि जो सृष्टि पर ठहरा है,
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
नीर कोई आँसू के लेकर लेख पीर का लिखता
अहंकार में उलझा कोई पाप पुण्य ना दिखता
उन्मत प्यास लिए जन्मों तक यूँ हीं आता जाता
कर्मों का उत्तरदायी फिर कैसे हुआ विधाता
खुला तथ्य है खुली कहानी रंच नहीं कोहरा है.
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
यहीं शेष है, यहीं अंत है, यहीं श्रांतहै सब कुछ
सपनों की टूटन भी, सुख भी, यहीं क्लांत है सब कुछ
लघु, अघन, सुक्ष्मोत्तर भी रह पाता ओट नहीं है
निरखे दृष्टा एक टुक सब कुछ गिरे पपोट नहीं है
तोल तराजू स्थिर पलक, फिर न्याय सतत झहरा है
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
अहोई अष्टमी व्रत संतान की मंगलकामना का पर्व
भारत में हिन्दू समुदाय में करवा चौथ के चार दिन पश्चात् और दीवाली से ठीक एक सप्ताह पहले एक प्रमुख त्यौहार ‘अहोई अष्टमी’ मनाया जाता है, जो प्रायः वही स्त्रियां करती हैं, जिनके संतान होती है किन्तु अब यह व्रत निसंतान महिलाएं भी संतान की कामना के लिए करती हैं। ‘अहोई अष्टमी’ व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। स्त्रियां दिनभर व्रत रखती हैं। सायंकाल से दीवार पर आठ कोष्ठक की पुतली लिखी जाती है। उसी के पास सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पृथ्वी पर चौक पूरकर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पूजन के बाद दीवार पर लिखी अष्टमी का पूजन किया जाता है।
Read More »अतल प्रणय का प्रतिबिंब : करवाचौथ
करवाचौथ की खूबसूरती को आज राधा मन ही मन महसूस करके हर्ष-उल्लास से झूम रही थी। दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्ते की सुंदरता का एहसास राधा को माधव से मिलने के बाद हुआ। सगाई के बाद से ही माधव ने राधा को समझने का प्रयास किया। उसकी कमजोरी, दु:ख-दर्द और मनोभाव सबको आत्मसात किया। माधव राधा से मिलने के बाद यह जान चुका था कि उसमे आत्मविश्वास की कमी है इसलिए कभी भी उसने अकेले होने का एहसास नहीं होने दिया। जब राधा शादी के बाद माधव के साथ नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गई तब भी माधव खिड़की के बाहर सबकुछ सुन रहा था। उसके डॉक्युमेंट्स अरैंज करने से लेकर तुम सब कुछ कर सकती हो यह सब तो राधा में एक नवीन उत्साह का संचार कर देता था।
Read More »चलो कुछ लम्हों को ताजा कर लेते हैं
चलो कुछ लम्हों को ताजा कर लेते हैं
बीती हुई शाम को गज़ल कर लेते हैं
ये माना कि नजर फेर कर वो इत्मीनान कर लेते हैं
मगर चोर नजर से दिल को बेचैन कर लेते हैं
बहुत लाजिम है तेरे “मैं” का साथ होना
मगर हम भी जरा सा गुमान रख लेते हैं
क्या ही मसला कि रूबरू ना हुये
फासलों से ताआल्लुक तो नहीं खत्म कर लेते है…
वजूद खोकर हमने किया एहतराम तेरा
गाफिल रहकर खुद से एतबार तुझ पर कर लेते हैं
प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात
उबटन से त्वचा की रक्षा
उबटन लगाने से किसी प्रकार का चर्मरोग नहीं होता तथा त्वचा स्वच्छ, कोमल और स्निग्ध बनी रहती है। उबटन का प्रयोग हर मौसम में किया जा सकता है। मगर सर्दी के मौसम में उबटन लगाने से त्वचा रुखी नहीं होती है, फटती नहीं, शरीर निरोगी और कांतिमय रहता है।
उबटन में महीन पिसी सरसों, चिरौंजी, पिस्ता, मूंग, हल्दी, बेसन, जौ का आटा आदि का उपयोग किया जाता है। उबटन के लिए इनका चूर्ण लेकर पानी में घोल तैयार कर शरीर पर मालिश करनी चाहिए। इसके बाद सरसों का तेल लगाकर छुड़ा लें और स्नान कर लें।
अन्तर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव: नयी पीढ़ी को प्राचीन संस्कृति से जोड़ने की पहल
श्रीराम का जीवन चरित्र भारतीय संस्कृति की सम्पूर्णता का द्योतक है| उनका राज्य सञ्चालन आदर्श शासन का सर्वोत्तम उदाहरण है| आजादी के बाद महात्मा गाँधी ने भारत में रामराज्य के ही आदर्शों से ओतप्रोत शासन की परिकल्पना की थी| जो कदाचित राजनीति के विभिन्न विद्रूपों के कारण आज तक साकार नहीं हो पायी| 15 अगस्त 1947 के बाद से हमारे नीति-नियन्ता रामराज्य लाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो करते रहे परन्तु नयी पीढ़ी को राम के आदर्शों से जोड़ने का सार्थक प्रयास शायद ही कभी हुआ हो| एक समय तो ऐसा भी आया जब राम को हिन्दुत्व की सीमा रेखा में समेटकर उनके चरित्र की शिक्षा को साम्प्रदायिक तक कहा गया|
Read More »दहलीज़ नीची बनवाओ
हर कला में माहिर, ज़ुबाँ से मुखर, जिसके एक-एक काम से बारीकियां झलक रही थी, रुप गुण की धनी बहू उमा को देखकर त्रिपाठी जी को आश्चर्य हुआ उमा से पूछा बेटी इतनी होनहार हो फिर सिर्फ़ दसवीं तक ही पढ़ाई करके छोड़ क्यूँ दिया? उमा बोली बाबूजी क्या बताऊँ, पितृसत्तात्मक समाज में लड़की की मर्ज़ी कहाँ मायने रखती है। बंदीशों और दायरों की दहलीज़ बड़ी ऊँची थी कैसे लाँघती। हम तो आगे खूब पढ़ना चाहते थे पर पिताजी और ताउजी ने कहा लड़कियों को ज़्यादा क्या पढ़ाना संभालना तो आख़िर चूल्हा चौका ही है। त्रिपाठी जी ने कहा आगे पढ़ना चाहोगी बेटी? हमारे घर की दहलीज़ तुम्हारे पैर लाँघ सके इतनी नीची है, कदम बढ़ाकर देखो दहलीज़ हम पार करवा देंगे।
Read More »धुंध भरी इस जिंदगी में भी हम
एक एक कदम बढ़ाते रहे
दिल बिखर सा गया हादसों में मगर
उम्मीद का दिया हम जलाते रहे
ग़म की आंधियों ने जब भी डराना चाहा
बेवजह मुसलसल मुस्कुराते रहे
चमन में कांटों की परवाह किए नहीं
फूलों से हम खिलखिलाते रहे
अब तो तन्हाइयों से है प्यार हो गया
अपनी मस्ती में हम गुनगुनाते रहे
यह हंसी तुम अदू छीन सकते नहीं
रायगां अपने दिल क्यों जलाते रहे
( अदू- दुश्मन, रायगां- फिजूल)
बीना राय, गाजीपुर