Tuesday, May 7, 2024
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महाराष्ट्र की राजनीति में अभी भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे भारी

मुंबईः मंगलेश्वर (मुन्ना) त्रिपाठी। राजनीति में संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। आज की राजनीति कल किस स्वरूप में करवट लेगी, किसी को पता नहीं। खासकर महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर दौड़ाएं तो एक बात साफ नजर आती है कि यहां मौकापरस्त राजनीति चरम पर है। केंद्र सरकार के ईडी और सीबीआई के हंटरों से डरे विपक्ष में भगदड़ मच गई है। केंद्र सरकार ने भी वाशिंग मशीन का दरवाजा खोल रखा है। जांच के दायरे में आनेवाले विपक्षी दल के नेता दरवाजे से अंदर घुस कर, स्वच्छ और निर्मल होकर बाहर निकल रहे हैं।
सोची-समझी रणनीति के तहत, बाहर आते ही वे अपने पूर्व पार्टी प्रमुख पर भाषाई अटैक शुरू कर देते हैं। समझ में नहीं आता कि जिस पार्टी प्रमुख ने उनके कद को इतना बड़ा बनाया, देश की जनता ने कई बार उन्हें वोट देकर विजई बनाया, उसी पार्टी प्रमुख में उन्हें इतनी बुराई कैसे नजर आने लगती है ? पार्टी बदलने वाले नेताओं को जनता का कितना आशीर्वाद प्राप्त होता है, यह तो आने वाला चुनाव तय करता है। वैसे नेता हमारी सोच से कहीं ज्यादा चालाक होते हैं। पार्टी बदलने वाले नेता जानते हैं कि जनता की अदालत में उनका क्या हश्र होनेवाला है। इसमें संदेह नहीं कि पूरे देश के साथ-साथ महाराष्ट्र में भी बीजेपी की ताकत लगातार बढ़ रही है। आने वाले दिनों में बीजेपी अपनी ताकत पर महाराष्ट्र में सरकार बना ले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना और एनसीपी का महत्वपूर्ण रोल रहा है। दोनों की राजनीति का आधार महाराष्ट्र है। आज भी महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच टकराव होता है।
पिछले कुछ वर्षों में शरद पवार और ठाकरे परिवार के बीच जिस तरह से नज़दीकियां बढ़ी हैं, उससे साफ है कि बीजेपी के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए शरद पवार और उद्धव ठाकरे चुपचाप नहीं बैठ सकते। पाला बदलने के बावजूद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनका पूरा गुट शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे को अपना आदर्श और गुरु मानता है, उसी तरह अजित पवार और उनके साथ आए विधायक, शरद पवार को ही अपना मार्गदर्शक और गुरु मान रहे हैं। ऐसे में एक बात तय है कि पाला बदलने वाले विधायकों ने अभी तक अपनी धुरी छोड़ी नहीं है। उनको मालूम है कि आज नहीं तो कल उन्हें फिर घर वापसी करनी है। महापालिका के चुनाव लगातार आगे बढ़ाए जा रहे हैं। चुनाव होते तो सच्चाई सामने आ जाती। किसी तरह 2023 को पार करना है। 2024 के चुनाव में भाजपा को अपने इन नए साथियों का साथ मिलेगा, इस पर पूरा संदेह है। अप्रत्याशित झटकों के लिए असावधान बीजेपी क्या अकेले के दम पर महाराष्ट्र में कमल खिला पायेगी और मोदी को देश का फिर से प्रधानमंत्री बना पाएगी?