Sunday, September 29, 2024
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मानव जीवन के लिए आत्मज्ञान ही उत्कृष्ट-तीर्थ: आचार्य विशुद्ध सागर

बागपत। जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी मुनिराज ने बड़ौत स्थित ऋषभ सभागार में धर्म प्रवचन करते हुए कहा कि जब-जब हमारा चित्त दूसरों में जाता है, तब-तब अशांति का वेदन होता है। जितना जितना चित्त बाह्य में जाएगा, उतना उतना आनन्द भंग होगा। बाह्य में अशांति ही है, अन्तर्मुखी दृष्टि ही सर्व-श्रेष्ठ है। आत्मिक-गुणों के चिन्तन से ही सुख-शांति, आनन्द सम्भव है। आत्म जागृति के अभाव में उत्कर्ष सम्भव नहीं। जैन मुनि ने कहा कि चिंतनशील मनुष्य ही आत्म विकास को प्राप्त करता है। धर्म की महत्ता बताते हुए कहा कि धर्म ही श्रेष्ठ, मंगल, उत्तम, मित्र व कल्याणकारी है। धर्माेपदेश ही परम-अमृत है। उन्होंने कहा कि मानवता के लिए आत्मज्ञान ही उत्कृष्ट तीर्थ है। आत्मज्ञानी मनुष्य ही सिद्धि, सुख, शांति, आनन्द को प्राप्त करता है। संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। धर्मसभा में विनोद जैन एडवोकेट, पिंटी जैन, प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, मनोज जैन, राकेश जैन, सुरेश जैन, अशोक जैन, दिनेश जैन, राजेश जैन आदि उपस्थित थे।