कानपुर: अखिलेश सिंह। उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक शहर और स्मार्ट सिटी परियोजना का हिस्सा, आजकल एक गम्भीर समस्या से जूझ रहा है। स्मार्ट सिटी के तमगे के बावजूद, शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं का आतंक बढ़ता जा रहा है। कानपुर नगर निगम इस समस्या से निपटने में पूरी तरह नकारा साबित हो रहा है। आवारा कुत्ते, सांड, गाय और बंदर न केवल नागरिकों के लिए खतरा बन गए हैं, बल्कि सड़क सुरक्षा, स्वच्छता और शहर की छवि को भी प्रभावित कर रहे हैं।
कानपुर में आवारा पशुओं की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह स्थिति और भी भयावह हो गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, शहर में करीब ढाई लाख आवारा जानवर मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश कुत्ते और गोवंश शामिल हैं। ये जानवर सड़कों, गलियों, बाजारों और यहाँ तक कि स्कूलों व अस्पतालों के आसपास भी देखे जा सकते हैं।
शहर में लगभग एक लाख से अधिक आवारा कुत्ते होने का अनुमान है। ये कुत्ते राहगीरों, साइकिल सवारों और वाहन चालकों पर हमला कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कुत्तों के काटने की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं। सड़कों पर घूमते आवारा सांड भी कम खतरनाक नहीं हैं। खबरों के अनुसार, सांडों की वजह से पिछले कुछ समय में अनेक सड़क हादसे हुए, जिनमें 1 दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। ये घटनाएँ बताती हैं कि आवारा पशु शहर की सड़क सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा बन गए हैं।
कानपुर नगर निगम पर आवारा पशुओं की समस्या से निपटने की जिम्मेदारी है, लेकिन इस दिशा में उसकी कोशिशें नाकाफी साबित हुई हैं। नगर निगम ने समय-समय पर अभियान चलाने और गोशालाएँ बनाने की बात की, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस परिणाम नहीं दिखा।
कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए बंध्याकरण (स्टरलाइजेशन) अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इसकी गति बेहद धीमी है। ऐसे तो समस्या का समाधान होने में दशकों लग जाएँगे।
शहर में गोशालाओं की क्षमता सीमित है। वहीं अनेक पशुपालक दूध निकालने के बाद अपनी गायों को सड़कों पर छोड़ देते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। नगर निगम ने ऐसे पशुपालकों पर जुर्माना लगाने की बात कही, लेकिन इस पर जीमनी स्तर पर अमल नहीं हो रहा।
आवारा पशुओं के आतंक से कानपुर के नागरिकों का जीना मुहाल हो गया है। सड़कों पर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है, बच्चे और बुजुर्ग सुरक्षित नहीं हैं, और रात में कुत्तों के झुंड के कारण लोग घरों से निकलने में डरते हैं। इसके अलावा, ये जानवर खुले में मलत्याग करते हैं, जिससे स्वच्छता पर भी असर पड़ रहा है।
कानपुर को स्मार्ट सिटी बनाने का दावा तब तक अधूरा है, जब तक आवारा पशुओं की समस्या का समाधान नहीं होता। नगर निगम की निष्क्रियता और लचर प्रबंधन ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह आतंक और बढ़ेगा, जिसका खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ेगा। सवाल यह है कि क्या नगर निगम कभी जागेगा और अपनी जिम्मेदारी निभाएगा ?