Saturday, April 19, 2025
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डॉ. रवि गुप्ता को मिला कम लागत वाले बायोप्लास्टिक के लिए 20 वर्षों का पेटेंट, गाय के गोबर और बैक्टीरिया के उपयोग से हुआ विकास

लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के एन्वॉयरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. रवि गुप्ता को एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा 20 वर्षों का पेटेंट प्रदान किया गया है। यह पेटेंट उन्होंने गाय के गोबर और विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का उपयोग करके कम लागत वाला बायोप्लास्टिक विकसित करने के लिए प्राप्त किया है। इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने डॉ. गुप्ता और उनकी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह खोज विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय है। उन्होंने बायोप्लास्टिक के व्यावसायीकरण की दिशा में आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। इस अवसर पर पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के संकायाध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार भी उपस्थित रहे।
डॉ. रवि गुप्ता ने बताया कि वर्तमान में प्रयुक्त पेट्रोलियम आधारित सिंथेटिक प्लास्टिक पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। यह अपघटनीय होता है और वर्षों तक पर्यावरण में बना रहता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। सतत विकास के लिए बायोडिग्रेडेबल विकल्पों की आवश्यकता है, जो प्राकृतिक रूप से अपघटित हो सकें।
उन्होंने बताया कि पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट (PHB) नामक बायोपॉलिमर प्लास्टिक के जैसे गुण रखता है और यह सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित होता है। हालांकि, अब तक इसका उत्पादन उच्च लागत और महंगे कच्चे माल के कारण सीमित रहा है। इस चुनौती को दूर करते हुए डॉ. गुप्ता और उनकी टीम ने गाय के गोबर पर आधारित एक संशोधित माध्यम तैयार किया है, जिससे PHB का उत्पादन लगभग 200 गुना सस्ता हो गया है।
2023 में इस तकनीक के लिए भारतीय पेटेंट दायर किया गया था, जिसे पेटेंट कार्यालय द्वारा विस्तृत जांच के बाद स्वीकृति मिली और अब इसे 20 वर्षों के लिए पेटेंट प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है।
डॉ. गुप्ता और उनके पीएचडी शोधार्थी देशराज दीपक कपूर बीते चार वर्षों से इस परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। टीम ने इस बायोप्लास्टिक से बायोडिग्रेडेबल और गैर-विषाक्त घाव भरने वाले ड्रेसिंग पैच, ऊतक और हड्डियों के उत्थान में उपयोगी नैनोशीट्स तथा दवा यौगिकों की नैनो-डिलीवरी जैसे अनेक जैव-चिकित्सीय अनुप्रयोग भी विकसित किए हैं।
अब टीम इस अध्ययन को आगे बढ़ाने और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए फंडिंग की तलाश कर रही है। डॉ. गुप्ता का मानना है कि खाद्य उद्योग, नैनो प्रौद्योगिकी और बायोमेडिकल जैसे क्षेत्रों में इस बायोप्लास्टिक के अपार संभावित उपयोग हैं। उन्होंने कहा कि टीम का उद्देश्य सतत विकास को बढ़ावा देना और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना है, जिससे मानव और पशु स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।