Monday, April 29, 2024
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गीता जयन्ती पर डिजीटल प्रदर्शनी का शुभारम्भ होगा

हाथरसः जन सामना ब्यूरो। गीता जयन्ती के अवसर पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के अलीगढ़ रोड स्थित आनन्दपुरी कालोनी के सहज राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र पर ‘‘गीता द्वारा नवयुग की स्थापना’’ डिजिटल प्रदर्शनी का शुभारम्भ किया जायेगा। जो बाद में चित्र प्रदर्शनी के रूप में जनमानस के मध्य प्रसारित की जायेगी ताकि लोगों को भगवान के सत्य स्वरूप और उनके द्वारा नवयुग सतयुग की स्थापना के लिए दिये गये परम सत्य ज्ञान का परिचय मिल सके। यह जानकारी राजयोग शिक्षिका शान्ता बहिन ने गीता जयन्ती की पूर्व सन्ध्या पर दी।
उन्होंने बताया कि गीता धर्म शास्त्र, कर्म शास्त्र है जो लोगों को अपने अन्दर के विकारों को निकालने के लिए मनोयुद्ध करने तथा सात्विक, राजसिक, तामसिक लोग और उनके भोजन आदि के बारे में व्याख्यान तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि मानवी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कराने के लिए प्रोत्साहित करने वाला, योग के विभिन्न आयामों का वर्णन करने वाला एक धर्मशास्त्र है न कि किसी को मारने की प्रेरणा देने वाला धर्मशास्त्र है।
दरअसल सामान्य लोगों ने भी यह समझ लिया है कि यह शस्त्र अर्जुन को हिंसक युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए दिया गया ज्ञान है। परन्तु भारत के अनेक विद्वान चाहे वह स्वामी विवेकानन्द हों या मोहनदास कर्मचन्द गाँधी, आचार्य विनोवा भावे हों या राधाकृष्णन, स्वामीपाद हों या सैकड़ों आध्यात्मिक पुस्तकों के विद्वान लेखक ब्रह्माकुमार जगदीशचन्द्र हसीजा हों सभी ने अपनी टीकाओं में सिर्फ एक ही निचोड़ साररूप में दिया है कि उपनिषद श्रीमद् भगवद गीता में दिया गया ज्ञान चाहे वह किसी के द्वारा भी लिखी गयी हो लेकिन यह किसी हिंसक युद्ध के लिए नहीं बल्कि मानव को अपने अन्दर छिपी हुई खराब मनोवृत्तियों को निकाल बाहर फेंकने के लिए और उन्हें निकालते समय होने वाले मनोयुद्ध करने की सबल प्रेरणा प्रदान करने के लिए कर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्र पर दिया गया है।
श्रीमद् भगवद् गीता को एक नजर डालने से ही मालूम पड़ जाता है कि यह ज्ञान किसी शस्त्रयुद्ध के लिए नहीं लेकिन मनुष्यों की विकारी मनोवृत्ति को निर्विकारी बनाने के लिए दिया गया है। गीता के तीसरे अध्याय का 39 व 43 वाँ श्लोक यह बताता है कि मनुष्य का दुर्जेय अर्थात् मुश्किल से जीता जाने योग्य शत्रु यह काम विकार है। इस शत्रु को वश में करके उसे मारने की प्रेरणा दी गयी।
मनोयुद्ध के लिए महानुभावों के उद्धरण देते हुए उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानन्द ने गीता पर टिप्पणी में कहा है कि ज्ञान, भक्ति, योग आदि विषयों पर इतनी चर्चा युद्ध भूमि में, जहाँ विशाल सेनायें लड़ने के लिए तैयार हों कैसे संभव हो सकता है? यह युद्ध रूपकमय दृष्टान्त है जिसका गुह्य अर्थ यह निकलता है कि मनुष्य के अन्दर बुरी वृत्तियों के विरूद्ध चल रहे संघर्ष की उपमा इस युद्ध से कर दी गयी है। महात्मा गाँधी ने ‘गीता माता’ में लिखा है कि जब गीता का प्रथम दर्शन हुआ तभी ऐसा लगा कि वह ऐतिहासिक ग्रन्थ नहीं है वरन इसमें भौतिक युद्ध के बहाने प्रत्येक मनुष्य के भीतर निरन्तर होते रहने वाले द्वन्द्व का ही वर्णन है। महाभारत में वर्णित हर यौद्धे को आज प्रैक्टीकल में देखा जा सकता है। अर्जुन उस व्यक्ति विशेष का पर्याय है जो ज्ञान को अर्जित करने वाला है। युधिष्ठिर उस वीर का पर्याय है जो विकारों के धर्मयुद्ध में अपने धर्म और श्रेष्ठ कर्म पर स्थिर रहते हैं। आज संसार में हो रहे महाभारत के बीच गीता के मर्म को समझने और जीवन में उतारने का समय है।