Tuesday, April 30, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » सरकारी मशीनरी की नकारा कार्यशैली के कारण नहीं सुधर रही यातायात व्यवस्था

सरकारी मशीनरी की नकारा कार्यशैली के कारण नहीं सुधर रही यातायात व्यवस्था

⇒करोड़ों की लागत से लगायी गईं सिग्नल लाईटें खा रहीं धूल।
⇒लाखों की लागत से रस्सी भी हो चुकी धड़ाम।
⇒यातायात जागरूकता अभियान भी असरकारक साबित नहीं हो पा रहे।
अर्पण कश्यप:कानपुर। महानगर की यातायात व्यवस्था को नियमानुसार चलाने व शहरियों को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए कई बार प्रयास किए जा चुके हैं। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद यातायात व्यवस्था में सुधार नहीं हो पा रहा है। एक दो चैराहों को अगर छोड़ दिया जाये तो लगभग सभी चैराहों पर सिग्नल लाईटें मात्र एक सिम्बल के अलावा कुछ नहीं साबित हो रहीं हैं। कई बार चैराहों पर लाइटें लगाई गईं लेकिन उनका उपयोग होने से पहले वो कबाड़ में तब्दील हो गई। शहर की यातायात व्यवस्था भले ही ना बदले लेकिन उन लोगों के दिन जरूर बदल गए जो लोग इन लाइटों को लगवाने का ठेका लेते है। यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए लगी लाइटों का नजारा देखकर वो हास्यास्पद नजारे याद आते हैं जब यातायात माह में लाउडस्पीकरों ने बकवासी प्रचार की ओर किसी का ना तो धन जाता है और ना ही उसका असर शहरियों पर होता दिखता है। हां इतना तो जरूर है कि प्रचार प्रसार में लाखों का वारान्यारा जरूर कर दिया जाता है। वहीं खास तथ्य यह भी है कि यातायात के नियम को कोई माने या ना माने लेकिन ट्रैफिक सिपाही हो या टी एस आई सभी चैराहों पर बाज की तरह सिर्फ शिकार खोजते रहते हैं और उनका मकसद सिर्फ वसूली करना ही दिखता है। हर बार महकमें में नये अधिकारी आते हैं और उपदेश देते हैं कि यातायात व्यवस्था में सुधार करना पहली प्राथमिकता है लेकिन उनका उपदेश सार्थक नहीं हो पाता है। इतना ही नहीं नये नये नियम कानून बना कर तब तक काम करते है जब विभाग से काम के लिये पैसा न पास हो जाये।
अगर यातायात व्यवस्था को सुधारने की पहलों पर बात करें तो हेलमेट बिना पेट्रोल ना मिलने की योजना भी असफल रही। चैराहों व पार्किग पर अतिक्रमण रोकने के लिए लगाई गई रस्सी योजना भी धड़ाम रही। साइकिल पथ भी कामयाब होता नहीं दिखा। चैराहों पर लाइटें लगाई तो गई लेकिन नियमानुसार उनमें चमक नहीं दिख पाई। सड़कों पर लगाए गए रिफलेक्टर भी असरकारक नहीं दिखते। ज्यादातर चैराहों पर ड्यूटी में लगे जवान ज्यादर बातचीत में ही मसगूल रहते हैं और भारी जाम लगने पर ही उन्हें ड्यूटी याद आती है।
कहने का मतलब यह है कि सरकारी मशीनरी की नकारा कार्यशैली के चलते यातायात व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाया सिर्फ खाऊकमाऊ अभियान ही सफल होता दिखा है।