भ्रष्टाचार का सामान्य अर्थ किसी व्यक्ति के द्वारा किसी प्रतिष्ठित पद पर रहते हुए अपनी ताकत का अनुचित रूप से प्रयोग है। वैसे, भ्रष्टाचार शब्द से ऐसा प्रतीत होता है कि यह शब्द एक चोरी, अनैतिक या गलत व्यवहार का आशय है। शाब्दिक रूप में भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट-आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो।
जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरू( जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें बहुत तेजी से फैला चुका है। जीवन के हर क्षेत्र में यह बुराई यानी बीमारी मौजूद है। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे सभी भली भांति परिचित है। यह किसी भी व्यक्ति की मनोदशा पर हावी होकर उसे दुष्प्रभावित कर सकता है।
भ्रष्टाचार के कई प्रकार होते है। यह प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से संमाज पर दुष्प्रभाव डालता हैं। खेल जगत, शिक्षा जगत, राजनीति एवं विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार ने अपनी बुरी छाप को छोड़कर हित में बाधा पहुंचाई है। जैसे रिश्वत, काला- बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि।
आज के आधुनिक परिवेश में हर पाचँ में से कम से कम चार व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।जिससे सार्वजनिक संपत्ति की बर्बादी, व्यक्ति बिशेष का शोषण, अनैतिक आचरण अपने पांव दिन रात फैलाए जा रहा है। आज व्यक्ति पैसों के लालच में आकर अपने साथ साथ देश का भी पतन कर रहा है।
भ्रष्टाचार के कई कारण होते हैं। जैसे जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है। असमानता, आर्थिक, सामाजिक या सम्मान, पद -प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। हीनता और ईर्ष्या की भावना से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए विवश हो जाता है। साथ ही रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं।
भ्रष्टाचार एक लाइलाज बीमारी की तरह है। भारत में कुछ आतताई लोग फूट डालो और राज्य करो कि मानसिकता रखते चले आ रहे हैं। चाहे वह बात देश स्तर की हो या घर परिवार की। हमारे देश में भ्रष्टाचार को बहुत बढ़ावा मिल रहा है। भ्रष्टाचार को हम और आप समयाभाव में अपना कार्य जल्दी करने के लिये रिश्वत देकर बढ़ावा देते हैं।रोजगार पाने के लिए भी रिश्वत देते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। चुनावी प्रक्रिया में भी भ्रष्टाचार से वोट खरीद कर अछम उम्मीदवार चुन लेते हैं जिससे देश को भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलता है। यह एक संक्रामक रोग की तरह है। समाज में विभिन्न स्तरों पर फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड-व्यवस्था की जानी चाहिए। आज भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि व्यक्ति रिश्वत के मामले में पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है।
जब तक इस अपराध के लिए को कड़ा दंड नहीं दिया जाएगा तब तक यह बीमारी दीमक की तरह पूरे देश को खा जाएगी। लोगों को स्वयं में ईमानदारी विकसित करना होगी। आने वाली पीढ़ी तक सुआचरण के फायदे पहुंचाने होंगे। भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिये हमें समय पर वस्तु कर देना चाहिए। कालाबाजारी का खात्मा रिश्वतखोरी का अंत करने के लिए हर सम्भव प्रयास करना होगा।