किसी भी देश के आर्थिक विकास को ही नहीं बल्कि समाज और राजनीति दोनों को वहाँ की शिक्षा का स्तर प्रभावित करता है शिक्षा के महत्व को लेकर कभी भी और कहीं भी कोई मतभेद नहीं रखा जाना चाहिये क्योंकि निजी तौर पर कोई भी व्यक्ति शिक्षा को रोजगार और व्यक्तिगत आर्थिक तरक्की से जोड़ता है। आज के दौर में किसी भी व्यक्ति की जीविका अथवा रोजगार काफी हद तक उसकी शिक्षा के स्तर पर ही निर्भर है। इसके अलावा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो शिक्षा का आर्थिक तौर के अलावा व्यक्ति के सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी अपना एक महत्व है। लेकिन इस समय सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक पाठशालाओं अथवा जूनियर हाई स्कूलों में शिक्षा का स्तर बहुत ही दयनीय है और यह स्तर ज्यादातर स्कूलों में देखा जा सकता है। इन स्कूल में जाकर कुछ सीखकर ये कहा जाये कि यह बच्चा भविष्य में एक अच्छी कमाई करेगा ऐसी उम्मीद ना के बराबर हो सकती है। हां इतना तो कह सकते हैं कि मिड-डे-मील योजना, बैग, पुस्तकें व ड्रेस आदि के वितरण होने के बाद सरकारी विद्यालयों में काफी बच्चे आने तो लगे हैं, पर वो कितनी पढ़ाई कर रहे हैं यह किसी से छुपा नहीं है। यह कटु किन्तु सत्य है कि सरकारी प्राथमिक व जूनियर पाठशालाओं में पंजीकरण दर और शिक्षा के स्तर में सुधार के बीच एक बड़ा सा अंतर दिखता है। अतएव सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और सर्वसुलभ बनाने पर जोर दिया जाना चाहिये। सरकारों को शिक्षा के स्तर में सुधार करने पर जोर दिया जाना चाहिये और सरकारी विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा रोजगारपरक हो इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।