Thursday, May 2, 2024
Breaking News
Home » सम्पादकीय » आसान नहीं होगी कामगारों की वापसी

आसान नहीं होगी कामगारों की वापसी

कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर जहां कई देशों में अपना असर दिखा रहा है और हजारों लोगों की जान जाने का कारक बन चुका है तो वहीं भारत भी अछूता नहीं दिख रहा है और इसका कहर यहां भी देखने को मिल रहा है। सरकारें भी अपने अपने स्तर से जनहानि रोकने के लिये हर सम्भव प्रयास करतीं दिख रहीं है लेकिन कोरोना से देश का उद्योग जगत भी प्रभावित हो चुका है और कारखानों में काम करने वाले कामगारों के पलायन की तस्वीरें इसका खासा उदाहरण हैं। सरकारों द्वारा लोकलुभावन की गई घोषणों के वावजूद महानगरों से कामगारों का पलायन नहीं रूका और देखने को मिल रहा है कि लाखों की तादात में मजदूर वर्ग अथवा कामगार अपने अपने घर को चले गये। मजदूरों, कामगारों की वापसी के दौरान आवागमन के समुचित संशाधन ना मिलने के बावजूद कामागार अपनी हिम्मत नहीं हारे और अपने घरों की सैकड़ों मीलों की दूरी को तय करने में पैदल ही जाते दिखे और इसका कारण कोरोना से बचाव हेतु किया गया लाॅकडाउन कहा जा सकता है।
यह चर्चा चहुंओर है कि लाॅकडाउन का समय पता नहीं है और लाॅकडाउन के दौरान कामकाज व ज्यादातर कारखाने बन्द रहेंगे। ऐसे में रोज कमाने खाने वाले लोग अपने-अपने घरों की ओर जाने में अपनी भलाई समझते दिखे हैं, उन्होंने रास्ते में किसी तरह की भूख-प्यास की परवाह नहीं की और ना ही उनमें कोरोना के संक्रमण का भय दिखा। बल्कि उन्हें कर्मभूमि की अपेक्षा अपनी जन्मभूमि ज्यादा सुरक्षित दिखी। चिलचिलाती धूप में सड़कों के बीच जो भी मिला उसने यही कहा कि साहब भूखों मरने से अच्छा है कि अपनी जन्मभूमि में जाकर अपनों के बीच मरें क्योंकि लाॅकडाउन के चलते दो वक्त की रोटी की लाले पड़ गये हैं, ऐसे में कुछ नहीं सूझ रहा है।
सड़कों पर पैदल सैकड़ों मीलों की दूरी तय करते कामगारों के झुरमुटों को देखकर और उनकी समस्याओं व मजबूरियों को सुनकर यह तो अन्दाजा लगता ही है कि अब कामगारों की महानगरों में वापसी आसान नहीं होगी।