Friday, November 29, 2024
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अब न करो अज्ञानता की भूल, हर बच्चे को भेजो सरकारी स्कूल

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। लॉकडाउन के कारण अधिकांश उच्च, निम्न एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति चरमरा रही है और आगे भी सुधार की गुंजाइश कम नजर आ रही है। अभिभावक निजी स्कूलों की फीस भरने में असमर्थ हैं और वे फीस माफी चाहते हैं। निजी स्कूल वाले मान नहीं रहे हैं। सरकार ने निजी स्कूल वालों से कहा भी है कि वे फीस न बढ़ाएं तथा एकमुश्त शुल्क भरने का दबाव न बनाएं। जरूरी नहीं कि सभी निजी स्कूल वाले सरकार का कहा मानेंगे। उनकी भी अलग मजबूरियां हैं, हो सकता है कि वे मान भी जाये या नहीं भी माने। मेरा ऐसे अभिभावकों से अनुरोध है कि वे सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को प्रवेश दिलायें। 8वीं कक्षा तक कोई प्रवेश या मासिक फीस नहीं लगती है। उत्तम शिक्षण व योग्य शिक्षक उपलब्ध हैं। सीबीएससी बेस्ट पाठ्यक्रम, अच्छे भवन, पर्याप्त फर्नीचर, यूनिफार्म, पुस्तकें, बैग, जूते-मोजे, स्वेटर, छात्रवृत्ति, मिड-डे-मील सब कुछ निःशुल्क मिलता है। विद्यालय भी आपके घर के निकट ही है इसलिए कोई वाहन शुल्क नहीं देना है। आपके पास ज्यादा पैसा है तो सरकारी स्कूल में डोनेशन दे दें तो इन स्कूलों में और अधिक सुधार आ जायेगा। एक बार हम पर हमारे स्कूलों पर विश्वास करके तो देखें। पुरानी पीढ़ी भी इन सरकारी स्कूलों में पढ़ी है। क्या वह किसी से कम है। सरकारी स्कूलों में 9वीं कक्षा के बाद मामूली फीस है। अभिभावकगण बेवजह सरकार पर दवाब बना रहे हैं कि निजी स्कूलों पर फीस कम करने को कहे। सरकार ने तो उनके सामने सर्वसुविधायुक्त सरकारी स्कूलों में प्रवेश का विकल्प दे रखा है। यदि अभिभावक निजी स्कूलों की कार्यप्रणाली से खुश नहीं है तो हमारे शासकीय स्कूलों में उनका स्वागत है। सरकारी स्कूल बड़े-बड़े विज्ञापन अखबारों में नहीं देते हैं। अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते हैं। सरकारी स्कूलों का नेटवर्क देश के छोटे से छोटे गांव में है। पूरी पारदर्शिता है इसलिए हमारे स्कूलों की आलोचना कोई भी कर सकता है। अखबार के पन्नों में केवल सरकारी स्कूलों की बुराई ही छपती है पर आप केवल एक बार सेवा का अवसर दें तो आप सरकारी स्कूलों की अच्छाइयों से भी परिचित हो जाएंगे। आज भी देश के करोड़ों बच्चे सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी हैं जो निजी स्कूलों से अधिक ही हैं। नए सत्र से सरकारी स्कूलों में भी स्मार्ट क्लासें शुरू होने जा रही हैं जिसकी शुरुआत निदेशालय स्तर पर हो चुकी है। लोग अपनी सोच नहीं बदल पा रहे हैं जहाँ वे उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों का एडमिशन आईआईटी, आईआईएम, केजीएमयू, बीएचयू, जेएनयू जैसे सरकारी संस्थानों में कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं वहीं दूसरी ओर प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए बुलावा के बाद भी सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों का एडमिशन करवाने से कतराते हैं। अभिभावक अपनी मानसिकता बदले और अपने बच्चों का प्रवेश सरकारी स्कूलों में करवाये।