Friday, May 3, 2024
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मजदूर के नसीब में ठोकर

उप्र, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों में एक के बाद एक घटित भयावह सड़क हादसों में मजबूर मजदूरों की मौत ने कामगारों की दयनीय दशा को सबके सामने लाकर रख दिया है। राष्ट्रीय राजमार्गों, रेल की पटरियों के किनारों पर दिख रहे नजारों यह तो स्पष्ट कर दिया कि कामगारों की घर वापसी के लिए सरकारों ने अगर उचित प्रबंध किए होते तो शायद इन भीषण हादसों से कामगारों व मजबूरों की जान जाने से बच सकती थी। लेकिन सरकारी तन्त्र की लापरवाही, सरकारों की अनदेखी व संवेदनहीनता के चलते कामगारों की जान चली गई।
सोंचनीय और विचारणीय तथ्य यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों को तभी जागरूक हो जाना चाहिए था जब पहला हादसा घटित हुआ था लेकिन, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था और सरकारों द्वारा घड़ियाली आंसू बहाकर व महज औपचारिकता भरी संवेदना जताकर अपने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई थी। नतीजा यह हुआ कि कामगारों के पैदल या साइकिल से घर जाने का सिलसिला थमने के वजाय और तेज हो गया। इसके बाद एक के बाद एक कई हादसे हो गये।केन्द्र सरकार द्वारा जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की योजना बनाई गई है व नाकाफी साबित हो रही है यानि कि वे पर्याप्त नहीं साबित हो रही हैं। वहीं अफवाहों का दौर भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजराज, उप्र के रेलवे स्टेशनों अथवा बस स्टेशनों पर मजदूरों का हुजूम अचानक उमड़ पड़ने के नजारे भी देखने को मिल रहे हैं। कई स्थानों पर मजदूर आक्रोशित दिखे हैं और उनका आक्रोश वाजिब है क्योंकि वो कहाँ तक और किस सीमा तक सब्र की चादर ओढ़े रहें ?
राष्ट्रीय राजमार्गों पर चिलचिलाती धूप में पैदल गुजर रहे काफिलों से यह तो स्पष्ट हो ही रहा है कि कामगार अब किसी भी हालात में अपने घरों को पहुंचने में भी भलाई समझ रहे हैं। यह तो आश्चर्य की बात है कि न तो पैदल घर जाने को मजबूर मजदूरों को रोकने की उचित कोशिश की गई और न ही उन्हें उचित तरीके से उनके घर भेजने व्यवस्था की गई। बस सरकारी तन्त्र निर्देश-निर्देश का खेल खेलने में मसगूल दिखा।लाॅकडाउन का चैथा चरण शुरू हो गया है और इस दौरान घर लौट रहे मजदूरों के सड़क हादसों में हताहत होने के समाचार अब आम हो गये हैं इसलिए राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपनी सड़कों व सीमाओं में पैदल गुजरने वाले काफिलों को रोकें। कामगार जिस तरह से ट्रकों आदि का सहारा लेकर अपनी घरवापसी की जुगाह कर रहे हैं उसे रोका जाये और सरकारों को चाहिये कि इन कामगारों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की समुचित व्यवस्था करें। सड़क हादसों पर अगर गौर करें तो इन दिनों खाली सड़कें देखकर चालक तेज गति से व लापरवाही बरतते वाहन चला रहे हैं ऐसे में चालकों के खिलाफ भी सख्ती बरतनी होगी। यह ठीक कदम है कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को यह निर्देश दिया है कि वे मजबूर मजदूरों को पैदल जाने से रोकें, लेकिन रोकने के साथ ही सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें उचित व्यवस्था कर धैर्य से काम लेने की सलाह दें। मजदूरों का धैर्य टूटने का नतीजा ही कह सकते हैं कि सब कठिनाइयों को दरकिनार करते हुए मजदूर अपने अपने गांवों की ओर पलायन कर चुके हैं।
कटु किन्तु सच यही है कि लाॅकडाउन के चैथे चरण की रूपरेखा बनाने से पहले यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि हताश- निराश मजदूर सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से अपने घर लौटें लेकिन केन्द्र सरकार ने अपनी हठधर्मिता का परिचय देते हुए और राज्य सरकारों को बिना उचित दिशा निर्देश देते हुए मजदूरों को लावारिस हालातों में छोड़ दिया। हां इतना तो देखने को मिला, बस दिशा-निर्देश देने का खेल खेला जाता रहा है और मजदूर को फुटबाल बना दिया गया है जिसके नसीब में सिर्फ ठोकर ही दिख रही है।