Thursday, May 16, 2024
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सतत विकास के लिये डायवर्सिटी को अपनाना बेहद जरूरी

देश की शासन-सत्ता पर आसीन लोगों के चरित्र व व्यवहार को देखते हुये यह आशंका जताई जा रही है कि हाल में जारी की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में जिन सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के अंतरराष्ट्रीय एजेंडों को शामिल करनेभर की संतुष्टि प्रदान की गई है, उन्हें क्रूर व विषमतावादी तरीकों से लागू किया जा सकता है, फलस्वरूप उसका मोटा लाभ वर्ग एवं जाति विशेष के लोग ही उठा सकेंगे।
– सत्येन्द्र मुरली, रिसर्चर एवं मीडिया पेडागॉग
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) जिन सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) की बात करता है, और तमाम देशों की पॉलिसी में शामिल करवाने का दबाव बनाये रखता है, उनको भारत सरकार व राज्य सरकारें दिखावे भर के लिये ही अपनाती है।संतुष्टी के लिये लिखित अथवा मौख़िक रूप में कुछ और कहा जाता है, लेकिन उन्हें लागू करते वक्त क्रूर, अन्यायी, विषमतावादी व घोर जातिवादी तरीके अपनाये जाते हैं।
उदाहरण स्वरूप,
सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की पूर्ति के लिये नवीन सूचना एवं संचार प्रौधोगिकी को काफी अहम माना गया है और डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) को पाटने के अंतरराष्ट्रीय एजेंडे को साधने के लिये भारत सरकार ने ‘डिजिटल इंडिया अभियान’ (Digital India Campaign) को सरकारी कंपनी जैसे कि भारत संचार निगम लिमिटेड़ (BSNL) के बजाय प्राइवेट लिमिटेड़ कंपनी के माध्यम से चलाया है जिसमें शीर्ष पूंजीपति मुकेश अंबानी की ‘जियो’ (Jio) कंपनी प्रमुखता से शामिल है. अंतरराष्ट्रीय एजेंडे को संतुष्ट करने के लिये कुछ समय तक फ्री अथवा सस्ती इंटरनेट सुविधायें उपलब्ध करवायी गई, लेकिन वर्तमान में हालात यह हैं कि भारतीय टेलीकॉम व डिजिटल सेक्टर में मुकेश अंबानी की जियो कंपनी ने एकाधिकार (Monopoly) हासिल कर लिया है और वो भारी मुनाफा कमा रही है।
डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिये सरकार द्वारा सस्ते कंप्यूटर अथवा मोबाइल डिवाइस के साथ-साथ मुफ्त अथवा सस्ते इंटरनेट को गांव-गांव व आमजनों तक पहुंचाने की बात थी, वो कहीं भी दिखाई नहीं देती है। लेकिन फिर भी भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान के भरपूर प्रचार-प्रसार के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूट ली है।
ऐसे ढ़ेरों उदाहरण हैं, जिनके द्वारा देखा जा सकता है कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के एजेंडों को भारत सरकार ने किस प्रकार की मानसिकता के साथ और कैसे लागू किया है? इनका ज्यादातर फायदा किन लोगों ने उठाया है? जबकि गरीब, पिछड़े, वंचित, हाशिये के लोगों, मूलनिवासी भारतीयों (Indigenous Indians) की स्थिति में कोई ख़ासा अंतर देखने को नहीं मिला है. यहां इस बात का जिक्र करना बेहद ही महत्वपूर्ण व प्रासंगिक होगा कि ज्यादातर इन भारतीयों ने हमेशा ही समतामूलक समाज (Egalitarian society) अथवा ‘बेगमपुरा’ निर्माण की बात कही है।
लेकिन भारत में आमतौर पर देखा जा सकता है कि इन लोगों के साथ अन्याय व अत्याचार का सिलसिला जो सदियों पहले शुरू हुआ था, वो बदस्तूर आज भी जारी है। हालांकि उन अत्याचारियों व अन्यायी लोगों की संख्या मुठ्ठीभर है, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी साम-दाम-दंड़-भेद, फूट डालो-राज करो की नीति व छल-पाखंड के द्वारा भारत के तमाम सत्ता संस्थानों व संसाधनों पर अतिक्रमण किया हुआ है. देश की बड़ी पूंजी को वे पहले से ही हड़पकर निगल चुके हैं और ड़कार तक नहीं ले रहे हैं। और तो और वे अभी भी लगातार देश को लूटने में लगे हैं।
देश की शासन-सत्ता पर आसीन लोगों के चरित्र व व्यवहार को देखते हुये यह आशंका जताई जा रही है कि हाल में जारी की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में जिन सतत विकास लक्ष्यों ) को हासिल करने के अंतरराष्ट्रीय एजेंडों को शामिल करनेभर की संतुष्टि प्रदान की गई है, उन्हें क्रूर व विषमतावादी तरीकों से लागू किया जा सकता है, फलस्वरूप उसका मोटा लाभ वर्ग एवं जाति विशेष के लोग ही उठा सकेंगे।
इसलिये गरीब, पिछड़े, वंचित, हाशिये के लोगों, मूलनिवासी भारतीयों के उत्थान व सतत विकास के लिये डायवर्सिटी को सख़्ती के साथ अपनाने के लिये कड़े कानूनों व कठोरता के साथ उनकी पालना किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही एक भिन्न इकॉनोमिक मॉडल व पृथक फंड की दिशा में कार्य करने की भी अत्यंत आवश्यकता है।