मौदहा/हमीरपुर, जन सामना । 63 ग्राम सभाओं वाला ब्लाक मौदहा प्रतिनिधियों के साये मे लूट के बाजार के नाम पर अपना नाम मशहूर करता जा रहा है। चुनिन्दा जनप्रतिनिधि हो य नियुक्त ग्राम विकास अधिकारी अथवा खण्ड विकास अधिकारी या कोई और पदाधिकारी यहां सभी प्रतिनिधि नियुक्त कर प्रति के बजाय र्सिफ विकासनिधि मे लूट का हिस्सा वसूल करने मे ही रूची लेते है। ब्लाक प्रमुख हो अथवा खण्ड विकास अधिकारी, ब्लाक मौदहा मे इनके भी प्रतिनिधि तैनात किये गये है जो लूट के बाजार मे बराबर अग्रणी भूमिका मे रहते है। जैसा कि परियोजना निदेशक द्वार खण्ड विकास अधिकारी का कार्यभार अपने पास रखकर मौजूदा समय मे एडीओ कोआपरेटिव को ब्लाक का प्रभार देने के साथ उन्हे बलि का बकरा बना दिया गया है। उदाहरण के तौर पर अभी हाल मे गाय और गौशालाओ मे बढती जा रही लापरवाही के कारण जिलाधिकारी हमीरपुर ने सभी खण्ड विकास अधिकारियों के व्यवस्था दुरूस्त होने तक वेतन रोक देने के आदेश दिये है। अब प्रश्न यह है कि वेतन एडीओ कोआपरेटिव का रूकेगा अथवा पूरी तरह से खण्ड विकास अधिकारी का पदभार ग्राहण करे पीडी महोदय का। जो यदा कदा मौदहा आकर प्रति के बजाय अपनी निधि के प्रति ज्यादा जागरूक दिखाई देते है। यहां तक कि ब्लाक आफिस मे भी कार्यालय के बाहर अपना नाम तो लिखवा दिया किन्तु फोन नम्बर अन्य अधिकारी का लिखाकर फरियादियो की समस्या का समाधान कर दिया है। वहीं जब ब्लाक प्रमुखों के वित्तीय अधिकार ही सीज हो गये है। तो उनकी महत्ता भी कम हो गयी है लेकिन पीडी महोदय तो ग्राम सभाओ मे होने वाले टेण्डर विज्ञापन भी देने का काम भी अपने अधिकार क्षेत्र मे शामिल कर चुके है। ताकि कार्य के भुगतान पर र्निधारित सुविधा शुल्क वसूलने मे अधिक समस्या न आये। ब्लाक से र्निगत टेण्डर पर विज्ञप्तियां भी ऐसे अखबारो मे ही प्रकाशित होती है जो बैक डेट पर छापने मे सक्षम हो। पम्पलेट की तरह कभी कभी छपने वाले समाचार पत्र सरकारी विज्ञापन छापने के लिये अधिक्रत भी न हो , इससे कोई फर्क नही पडता । इसके अतिरिक्त मौदहा ब्लाक जिले की सबसे बडी ब्लाक है इसके बावजूद यहां फुल पावर वाले खण्डविकास अधिकारी की तैनाती नही है। जब कि 30 से 40 ग्राम सभाओ वाले विकास खण्डो मे बीडीओ तैनात है। बात करें इसी विभाग के ग्राम सचिवो की तो उनहोने भी इसी तर्ज पर इलाकाई बेरोजगारो को बतौर प्रतिनिधि अपने अपने कार्यालय एव ंआवास पर क्लर्क के तौर पर अपनी जेबखर्च से नियुक्त कर फरार रहते है। पता करने पर कहा जाता है कि क्षेत्र भ्रमण पर है व हफतो नजर नही आते। यहां तक कि सचिवो के कार्यालय सभाले यह तथाकथित क्लर्क सचिवो के फर्जी हस्ताक्षकर कर कम वेतन मे भी अपनी डयूटी निभा रहे है। यहां कोई देखने सुनने वाला नही। यानि क्षेत्र का पूरा दारोमदार इन मुनीमो का है। प्रतिनिधियो का कोई नियम नही है किन्तु यहां तो अपने नियम अपना कानून अलग चलता है। फिरभी जिन ग्राम सभाओ मे महिला प्रधान है वहा तो प्रतिनिधि सामाजिक तौर पर मान लिया जाये किन्तु यहां की ग्राम सभाओ मे पुरूष प्रधानो ने भी अपना प्रतिनिधि बना रखा है। जो मनरेगा के फर्जी मस्टरोल सहित अन्य कार्य सौप कर मानदेय के तौर पर रख लिये गये है और ब्लाक कार्यालय आने जाने से प्रधान जी की छुटटी हो चुकी है। अब रही बात पक्के र्निमाण कार्य की तो ग्राम विकास मे ठेकेदारी प्रथा का कोई स्थान न होने के बावजूद इस ब्लाक मे छुपे हुये ठेकेदार भी पैदा हो गये है। वह तैयार स्टीमेट और भुगतान पर 20 से 25 प्रतिशत कमीशन देकर प्रधानो और सचिवो से मिलकर घटिया र्निमाण कर सरकारी धन की लूट मे शामिल हो गये है। अब प्रधान जी को मैटेरियल लाने व शारीरिक श्रम करने की भी कोई आवश्यकता नही। कुल 40 से 45 प्रतिशत तक परम्परागत तौर पर लगने वाली कमीशन खोरी के चलते न किसी अधिकारी की जांच का भय और न ही प्रधान जी को निरीक्षण की चिन्ता। यह ब्लाक मौदहा के प्रतिनिधियों का ही कमाल है कि यहंा सत्ताधारी हो अथवा विपक्ष का कोई नेता, कोई इनका विरोध कर अपनी लगन शीलता व कर्मठता का प्रदर्शन कर सके या इस ब्लाक की आने वाले निधि के घोटालो पर अपनी जागरूकाता का परिचय दे सके। जबकि यहां कई ग्राम विकास अधिकारी व प्रधान ऐसे भी है जो भ्रष्टाचार के इस दलदल से ऊबकर अपना दर्द तो दबी जबान बता देते है किन्तु जांच के भय से खुलकर बोलने का साहस नही उठाते। इनका मानना है कि यदि ग्राम विकास के कार्यो मे ईमानदारी से जांच हो तो कमीशनखोरी का खेल सबके सामने आ जायेगा किन्तु भ्रष्टाचार के इस दलदल मे कमल खिलने के बाद आवाज उठान के साहस करे तो करे कौन।