Sunday, April 28, 2024
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निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक को नहीं मानते विद्यालय

दुर्बल वर्ग के बच्चे का लाटरी में नाम होने पर भी नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल में प्रवेश लेने से इंकार
कानपुर दक्षिण, जन सामना संवाददाता। शहर के बर्रा-2 हेमन्त विहार के निवासी शुभम शुक्ला ने निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन लाटरी के माध्यम से नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल में अपने बच्चे की शिक्षा के लिए सीट आवंटित हुई थी। लेकिन उसके बाद जब एडमीशन की प्रक्रिया के लिए विद्यालय गए तो उन्हें वापस लौटा दिया गया। आरोप है कि विद्यालय कार्यालय प्रभारी ने यह कहकर वापस कर दिया कि अभी कोई भी किसी तरह का प्रवेश नहीं हो रहा है। शुभम शुक्ला ने बताया वह अपने बच्चे को अच्छी उच्च शिक्षा कराने के लिये बहुत ज्यादा चिंतित है। उन्होंने बताया कि विद्यालय में बार-बार गुहार लगाने पर भी पर कोई सुनवाई नहीं हुई। कार्यालय जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, कानपुर नगर से गुजारिश करने पर विद्यालय के प्रबंधक/प्रधानाचार्य नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल को दिनांक 24 जून 2020 को पत्र लिखा गया। लेकिन विद्यालय प्रशासन ने इस पत्र को कोई महत्व नहीं दिया है।
जिसके बाद शुभम शुक्ला ने अपने बच्चे के भविष्य के जिलाधिकारी कानपुर नगर को प्रार्थना पत्र देकर गुहार लगाई है।
आपको बता दे निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक, 2009 के तहत बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 21 में 6 से 14 बर्ष तक के बच्चों के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है।
निजी स्कूलों को 6 से 14 साल तक के 25 प्रतिशत गरीब बच्चे मुफ्त पढ़ाने होंगे। इन बच्चों से फीस वसूलने पर दस गुना जुर्माना भी लगाया जाता है। शर्त नहीं मानने वाले विद्यालय की मान्यता तक रद्द हो सकती है। मान्यता अगर निरस्त हो गई उसके बाद स्कूल चलाया तो एक लाख और इसके बाद रोजाना 10 हजार जुर्माना की भी प्रावधान है। बच्चों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराना राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है।