कानपुर नगर, जन सामना। शारदीय नवरात्रि का त्योहार भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मां दुर्गा शक्ति की स्रोत हैं। दिव्य शक्तियों के प्रभाव से ही इस पृथ्वी पर सभी कार्य संपूर्ण होते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर, शनिवार से आरंभ होगा और 24 अक्टूबर, शनिवार को महानवमी के साथ ही नवदुर्गा का पावन त्यौहार सम्पन्न होगा। भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि दे पावन दिवसों में मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना का विशेष समय होता है। नवरात्रि के पावन दिनों में मां के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। जो अपने भक्तों को सुख, शांति और शक्ति प्रदान करती हैं। नवरात्रि का हर दिन देवी के अलग-अलग रूप को समर्पित होता हैं। मां की कृपा से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि का त्योहार शक्ति की उपासना का त्योहार है। इस बार शारदीय नवरात्रि घट स्थापना का मुहूर्त दिनांक 17 अक्टूबर दिन शनिवार प्रातः 6 बजकर 27 मिनट से प्रातः 10 बजकर13 मिनट तक है।
नवरात्रि का पावन पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। प्रथमं शैलपुत्री, द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीय चंद्रघंटा, चतुर्थ कुष्मांडा, पंचम स्कंदमाता, षष्ठम कात्यायनी, सप्तम कालरात्रि, अष्टम महागौरी, नवम सिद्धिदात्री मां के नौ स्वरूप हैं। प्रत्येक दिन एक स्वरूप की पूजा, अर्चना, उपासना, व्रत, उपवास आदि किया जाता है। जैसे-जैसे जीवन में सात्विक गुण बढ़ता है वैसे वैसे समस्त मंगलकारी शक्तियों पर विजय प्राप्त होती है। इसलिए ही दसवें दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपम देहि जयम देही यशो देहि द्विशो जहि।।
इस मंत्र के प्रभाव से निरोगी काया सुख शांति और वैभव प्राप्त होता है। जीवन में सुख शांति और खुशहाली आती है। जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होती है।नवरात्र में देवी पूजन करते समय वास्तु का ध्यान रखने पर पूजा के शुभ फल का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाता है।देवी की पूजा पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके करना चाहिए। इसी दिशा में मां की प्रतिमा और घट स्थापना करना भी अत्यंत शुभ फलदाई होता है।
– आचार्य पं. आशीष बाजपेई ” राम