आखिर हम एक जनवरी को ही नया साल क्यों मनाते हैं? अपने देश में चैत्र महीने में नया साल, गुड़ी पाड़वा पर नया साल, दिवाली पर नया साल मनाया जाता है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर नया साल मनाये जाने का रिवाज है लेकिन फिर भी पूरा देश एक जनवरी को नया साल मनाता ही है। तब आखिर एक जनवरी को नया साल क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे भी एक रोचक जानकारी है। ज्यादातर लोगों को पता है कि रोमन कैलेंडर के हिसाब से जनवरी साल का पहला महीना है लेकिन एक जनवरी को नया साल मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसकी जानकारी बहुत रोचक है।
रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था। जुलियस सीजर से पहले नूमा पोंपिलुस रोम के सम्राट थे और नूमा के समय कैलेंडर 10 महीने का चलता था क्योंकि उस समय एक साल को 310 दिन का माना जाता था और तब हफ्ता भी 8 दिनों का माना जाता था। सम्राट नूमा ने हीं मार्च के बजाय जनवरी को साल का पहला महीना माना। 500 साल पहले तक ईसाई देश 25 मार्च को ही नया साल मनाते थे।
जनवरी नाम के पीछे भी एक प्रसंग है। जनवरी नाम रोमन देवता जेनस के नाम पर रखा गया था। ऐसा माना जाता था कि जेनस के दो मुंह हुआ करते थे। आगे वाला शुरुआत और पीछे वाला अंत। जबकि मार्च महीने का नाम रोमन देवता मार्स के नाम पर रखा गया लेकिन मार्स को युद्ध का देवता माना जाता था इसलिए नूमा ने युद्ध की जगह शुरुआत के देवता के नाम पर नया साल शुरू किया और इस तरह जनवरी साल का पहला महीना हो गया। जहां तक रोमन साम्राज्य फैला हुआ था वहां नया साल एक जनवरी को मनाया जाने लगा और इस कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर पड़ा।
5वी सदी के आते-आते रोमन साम्राज्य का पतन हो गया और दुनिया भर में ईसाई धर्म का प्रभाव तेजी से बढ़ने लगा जैसे-जैसे इसाई धर्म बढ़ने लगा उनमें नए साल को लेकर झगड़े फसाद होने लग गये। ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर को नया साल बनाना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि 25 मार्च को विशेष दूत ग्रेबियल ने ईसा मसीह की मां मेरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार को जन्म देना है और 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था इसलिए इन दोनों तारीखों में से एक तारीख को वह नया साल मनाना चाहते थे। इसी तनाव के चलते कुछ समय बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर आया। रोमन चर्च के पोप ग्रेगोरी को जूलियन कैलेंडर में खामी नजर आई तो उन्होंने इस पर काम शुरू किया। उनका मानना था जूलियन कैलेंडर के हिसाब से हर 400 साल में समय 3 दिन पीछे हो रहा था और 16वीं सदी आते आते समय 10 दिन पीछे हो चुका था। इन 10 दिनों को एडजस्ट करने के लिए 1582 में कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए गए और 5 अक्टूबर के बाद सीधे 15 तारीख रखी गई। इस ग्रेगोरियन कैलेंडर में भी नया साल एक जनवरी से शुरू होता था। सभी यूरोपीय देशों ने इस कैलेंडर को अपना लिया था मगर ब्रिटेन में इस कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया। वह अभी भी 25 मार्च से ही नए साल की शुरुआत करते थे।
1752 में इंग्लैंड की संसद में सहमति बनी कि नए साल की शुरूआत के मामले में ब्रिटेन को भी अन्य यूरोपीय देशों साथ ही चलना होगा और ब्रिटेन ने भी इस कैलेंडर को अपना लिया। 1752 में ब्रिटेन का भारत पर राज था तो भारत ने भी इस कैलेंडर को अपना लिया। अतीत के खजाने में छुपी यह जानकारी वाकई बहुमूल्य है।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी गुजरात