पिछला पूरा वर्ष 2020 कोविड-19 की भेंट चढ़ गया और इसलिए 1 फरवरी 2021 को पेश होने वाला बजट मुख्यतः स्वास्थ्य पर केंद्रित रहा। इसे हम रिकवरी वाला बजट भी कह सकते हैं, क्योंकि जैसे लंबी बीमारी से रिकवर होने के लिए मरीज को अपनी डाइट का विशेष ध्यान रखना पड़ता है और अनुशासन में रहना पड़ता है उसे रिकवरी के लिए कुछ समय चाहिए होता है और इस दौरान उसकी जीवन शैली में भी बड़े बदलाव होते हैं, इसी प्रकार इस बजट में भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य, देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य और देश के शहरों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस बार का टोटल हेल्थ बजट 2 लाख 23 हजार करोड़ रुपए है जो पिछली बार की तुलना में 137% ज्यादा है। आत्मनिर्भर भारत को आगे बढ़ाने के लिए इसमें पूरी तैयारी की गई है। कैपिटल एक्सपेंडिचर को बहुत ज्यादा बढ़ाने की बात की गई है यानी कि इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में बड़े निवेश करने की तैयारी है। हालांकि वित्तीय घाटा बढ़ रहा है लेकिन सरकार ने अपने खर्च में यानी कि सोशल वेलफेयर और तमाम अन्य क्षेत्रों में होने वाले एक्सपेंडिचर पर कोई कटौती नहीं की है, कोई नया कर नहीं लगाया है। कुछ चीजें सस्ती और कुछ महंगी हुई हैं। विदेशों से आयातित वस्तुएं महंगी हुई हैं किंतु स्वदेशी चीजें पहले से सस्ती होंगी। मोबाइल फोन अब महंगा होगा किंतु सोना-चांदी अब सस्ता होगा। इस बजट में प्रमुखतः कृषि क्षेत्र में सरकार ने अधिक जोर दिया है। कृषि क्षेत्र को 75 हजार एक सौ करोड़ रुपए से ज्यादा दिए गए हैं, कृषि क्षेत्र में एमएसपी पर कई बड़े बदलाव किए गए हैं, यहां पर लागत का डेढ़ गुना ज्यादा फायदा मिलेगा। पारदर्शिता के तहत एक हजार मंडियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा। मंडिया ई-नैब से जोड़ी जाएंगी। मछली पालन के लिए हब बनाए जाएंगे।
इस बजट को हेल्थ बजट भी कहा जा सकता है। इसमें 2.24 लाख करोड़ रुपए स्वास्थ्य को, 35 हजार करोड़ रुपए वैक्सीन को, 1.10 लाख करोड़ों रुपए रेलवे को, 1.18 लाख करोड़ रुपए सड़कों के लिए, 65 हजार करोड़ रुपए राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के लिए, 2.27 लाख करोड़ रुपए जल जीवन मिशन को, 2.21 हजार करोड़ रुपए वायु प्रदूषण से निपटने के लिए, एमएसएमई सेक्टर को 15.7 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं। रिसर्च फाउंडेशन को 50 हजार करोड़, स्वच्छ भारत मिशन को 1.41 लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त डिजिटल भुगतान के लिए पंद्रह सौ करोड़, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर पर 40 हजार करोड़, सरकारी बैंकों पर 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है।
इस बजट में देश के नागरिकों के स्वास्थ्य, सरकारी संपत्तियों के स्वास्थ्य और देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं, जैसे एलआईसी का अब आईपीओ आएगा यानी सरकार एलआईसी के शेयर अब बाजार में बेचेगी। इसी तरह दूसरी कंपनियों के लिए भी ऐलान हो सकते हैं इसको विनिमेश कहते हैं। इससे सरकार को जो अतिरिक्त आमदनी होगी, उसे वह अपनी बाकी की योजनाओं और खर्चे पूरा करने के लिए प्रयोग में लाएगी। इस तरह सरकार कोशिश कर रही है कि वह जहां-जहां से भी अतिरिक्त आमदनी कर सके करे और उसके द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाया जाए। छोटी कंपनियों की परिभाषा बदल दी जाएगी। कंपनियों की कैपिटल वैल्यू के आधार पर इसकी परिभाषा तय की जाएगी, जैसे शेयर मार्केट में किसी कंपनी की वैल्यू दो करोड़ है और उसका सालाना टर्नओवर 20 करोड़ है तो वह छोटी कंपनी मानी जाएगी। पहले यह सीमा सिर्फ 50 लाख रुपए हुआ करती थी। हम कह सकते हैं कि कोरोना वायरस से उभर रही दुनिया के लिए सरकार ने इसे प्रो एक्टिव बजट बनाने की कोशिश की है।
सरकार का अनुमान है कि देश की जीडीपी का विकास वी शेप में होगा, यानी इसे विकास की विक्ट्री के रूप में देखा जा सकता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वजह से जीडीपी की विकास दर में जो गिरावट पिछले एक साल में हुई है, उसकी न सिर्फ भरपाई हो जाएगी बल्कि अगले वित्तीय वर्ष यानी वर्ष 2021 और 22 में भारत की जीडीपी विकास दर 11% से भी ज्यादा हो सकती है। 2019 और 20 में देश की जीडीपी विकास दर 4.18% थी, जो 2020 और 21 में घटकर -7.7% रहने का अनुमान है। फिर वर्ष 2021 और 22 में जीडीपी विकास दर वापस उछलकर 11% तक जा सकती है।
दुनिया में आर्थिक स्थिरता के लिए काम करने वाली संस्था ‘इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड’ का अनुमान है कि अगले कारोबारी साल में दुनिया में सबसे ज्यादा जीडीपी ग्रोथ रेट भारत का होगा और यह साढ़े ग्यारह प्रतिशत तक हो सकता है।
2020 में जहां दुनियाभर के देशों में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट 42% तक घट गया था, वहीं भारत में यह तस्वीर पूरी तरह अलग थी, भारत में एफडीआई में 13% की बढ़ोतरी हुई और पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा एफडीआई भारत में आया और पूरी दुनिया में भारत इस मामले में पहले स्थान पर है। भारत के बाद चीन दूसरे स्थान पर है, जहां एफडीआई में 4% की बढ़ोतरी हुई।इसका अर्थ यह है कि दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने सबसे ज्यादा निवेश भारत में किया और फिर चीन में किया अर्थात भारत चीन से इस मामले में आगे है।
रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश