Thursday, March 28, 2024
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विपदा पर एकता का परिचय दें

देश पर विपदा आने पर हम सभी को एक स्वर में सहमति देते हुए चर्चा करना चाहिए क्योंकि अगर हम अलग-अलग आवाजों में बात करेंगे तो इससे विरोधियों को मजबूती मिलने का अवसर मिलेगा। इससे एक सवाल उठता है कि क्या हमारे राजनीतिक लाभ, विचारधारा का महत्व, व्यक्तिगत नेतृत्व की महत्वाकांक्षाएं देश से बड़ी हो सकती हैं? पिछले उदाहरणों को मानें तो हमारे पिता, पितामह की आंखों के सामने देश विभाजित हुआ था और उस दौरान लाखों लोग मारे गए थे और एक पुरखे होने के बावजूद साम्प्रदायिक उन्माद ने देश बांटा ही नहीं बल्कि नए शत्रु पैदा कर दिए।
वर्तमान के मुद्दे की बात करें तो अगर कश्मीर जाता है तो सोचिए किसकी क्षति है? और कश्मीर में आतंकवादियों का निर्मूलन होता है तो किसकी उपलब्धि होती है? हमारे देश के बलिदानों के बारे में गहराई से सोंचिए। हम प्रायः देशभक्ति टीवी के परदे के क्षणिक अतिरेकी उत्साह में लिपटती देखते हैं। लेकिन शहीद सैनिकों के परिजनों के दर्द को न समझते हुए उनके बलिदान पर राजनीति की रोटियां सेकने का अवसर खोजते हैं यह बहुत ही शर्मनाक है। फिर भी हम शहीदों के संदर्भ में शोर मचाना, वितण्डा खड़ा करना, अखबारों में ऐसे बयान देना कि मेरा स्वदेशी नेता तो आहत हो ही, मैं शत्रु देश में भी स्वदेश के खिलाफ प्रमाण बन जाऊं, यह सब चलता रहता है।
गौर करने का तथ्य है कि हमसे बाद में जो देश स्वतंत्र हुए वे सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति समृ(ि, शिक्षा और अच्चे स्वास्थ्य के मानकों पर हमसे कई गुना आगे बढ़ गए। वहीं महान संस्कृति, सभ्यता के साथ साथ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को प्रचारित करते करते भी हम न तो स्त्री स्वतंत्रता और सशक्तिकरण में आगे बढ़े, न हमारे विश्वविद्यालय विश्व स्तर पर प्रथम सौ में आ पाए, न हम शोध और क्रीड़ा में कुछ ऐसा कर पाए कि विश्व शक्ति के नाते हमारी धाक जमे। इसके साथ ही फुटपाथ पर हजारों जिंदगियां सिसकती दिखतीं हैं देश के लाखों लोग दो जून का भरपेट खाना नहीं खा पाते है। इसके साथ ही शर्म की बात यह भी है कि अनुसूचित जातियों पर अमानुषिक जुल्मों की खबरें आए दिन अखबारों अथवा चैनलों की सुर्खियां बनती हैं।
भारत के चारों ओर जो महाशक्तियां हैं वे निश्चय ही हमारी प्रगति और विकास नहीं चाहेंगी। वहीं देश की रक्षा का भार अपने कन्धों पर रखने वालों के योगदान को समझना होगा और उनके लिए सेना और सैनिकों का सम्मान हमारे हृदय में, वाणी में सर्वोपरि होना चाहिए। वहीं यााद रहे कि नेताओं के चित्र भले ही हटा दें पर सैनिकों के चित्र लगाने ही चाहिए। जिस देश में सैनिकों का सम्मान होता है उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है। जहां सैनिकों को आम कर्मचारियों की तरह वेतनभोगी मान लिया जाता है, वहां का भविष्य सुरक्षित नहीं रहता।