Thursday, April 25, 2024
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दुविधा नदी को भारी है……

2016-10-14-4-sspjs-alkaदुविधा नदी को भारी है, सागर का पानी खारी है
डरती जाती, बहती जाती, क्या करे, बेचारी नारी है
बेबस मन की हलचल है, लहर नहीं ये धड़कन है
तड़प रही है मिलने को, मिलने में भी तड़पन है
मंजिल मेरी सागर है, मन में यह उच्चारी है
दुविधा नदी को भारी है………
बंधन तट के दोनों ओर, और नहीं है कोई ठौर
सागर में ही मिल जायेगी, नदी रही है ये ही सोच
मंजिल अपनी सागर करली, राहों में ही वो हारी है
दुविधा नदी को भारी है…………..
निज आजादी को खोना है, अब रत्नाकर का होना है
तज कर अपना मीठापन, मुझको खारा होना है
सोच यही अश्रु ले आती, खुद भी हुई वो खारी है
दुविधा नदी को भारी है………….
सागर का जब प्यार मिला, जीने का फिर अधिकार मिला
निज बहने की रफ्तार थमी, एक नया किरदार मिला
गरिमा नदी की सागर से, नदी ये, सागर की आभारी है
दुविधा नदी को भारी है…………