Monday, November 18, 2024
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कान्यकुब्ज मंच पत्रिका (कानपुर)  ने किया समाज, साहित्य व संस्कृति की त्रिवेणी का सम्मान

इन्दौर। कानपुर से प्रकाशित सामाजिक, सांस्कृतिक व पारिवारिक पत्रिका कान्यकुब्ज मंच ने समाज, साहित्य व संस्कृति की त्रिवेणी को सम्मानित किया। कोरोना प्रोटोकाल के तहत आयोजित कार्यक्रम में रचनात्मक साहित्य सृजन के लिए पं हरेराम वाजपेयी को कीर्तिशेष बालकृष्ण पाण्डेय स्मृति  ‘सम्मान’  लोकसंस्कृति के लिए महू की तृप्ति मिश्रा को मां वासन्ती पाण्डेय स्मृति  ‘महिला.सम्मान’ तथा निस्पृह समाज सेवा के लिए पं रामचन्द्र दुबे को  ‘कार्यकर्ता.सम्मान’  से नवाजा गया। कान्यकुब्ज विद्याप्रचारिणी सभा के अध्यक्ष ब्रह्मनशिरोमणि पं विष्णुप्रसाद शुक्ल बड़े भैया ने शॉल, पुष्पहार व सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया। पत्रिका के इन्दौर विशेषांक में लेखकीय योगदान के लिए डॉ योगेन्द्रनाथ शुक्ल, डॉ मुकेश दुबे, पं अनूप वाजपेयी, पं कुमार चक्रपाणि मिश्र, पं गायत्री प्रसाद शुक्ल व नीति दीक्षित को भी स्मृति चिन्ह व शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। उक्त सम्मान बालकृष्ण.वासन्ती पाण्डेय सेवा संस्थान, कानपुर द्वारा प्रायोजित थे।
रेडियो कॉलोनी, गांधी पार्क में लोकसंस्कृति में आधारित जीवन  विषय पर विचार गोष्ठी भी आयोजित हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लघुकहानीकार डॉ योगेन्द्रनाथ शुक्ल ने कहा कि हमारी एकता का मुख्य आधार हमारी संस्कृति है। संसार की बहुत सारी जातियां, प्रजातियां हमारे देश में आईं और उन्होंने हमारी संस्कृति के प्रवाह को तोड़ने की बहुत कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाए। आज हमारी संस्कृति की धारा में पश्चिमी देशों के अनुकरण के कारण बहुत व्यवधान खड़े हो गए हैं। संस्कृति को बचाने के लिए सर्वप्रथम हमें अपनी भाषाओं को बचाना होगा। बिना अपनी भाषा को बचाए संस्कृति को बचाने की बात करना बेमानी है। अपनी संस्कृति को बचाना है राष्ट्रीयता है। साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने बताया कि हमारा समाज समतामूलक है। इसमें सभी जाति.उपजाति, वर्ग.उपवर्ग का समुचित सम्मान है। भारतीय जीवन दर्शन में स्वास्थ्यचर्या के सभी तत्व मौजूद हैं। पत्रिका के सम्पादक आशुतोष पाण्डेय ने कहा कि वोट की राजनीति समाज को बांटने का काम करती है। राजनीति को अपना काम करने दीजिए। सामाजिक.समरसता तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए समाजसेवियों व साहित्य को अपना काम करते रहना चाहिए। तृप्ति मिश्रा ने लोकगीतों को भारतीय जनमानस का प्राण बताते हुए संस्कार गीतों, श्रमगीतों, भक्ति गीतों, मौसम गीतों, बाल लोरियों के भाव.सौंदर्य पर प्रकाश डाला। तृप्ति ने अपनी पुस्तक  ‘लोक.लय’ पुस्तक से चुनिंदा लोकगीतों के मुखड़े भी सुनाए। डॉ मुकेश दुबे ने पर्यावरण व प्रकृति संरक्षण को भारतीय लोक जीवन से जुड़ा बताया। डॉ रचना दुबे, विजेता जोशी, पं श्यामजी मिश्र, अजय दीक्षित, रविन्द्र जोशी, विमला पाण्डेय, प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री, भूपेंद्र तिवारी, अक्षत पाण्डेय आदि ने भी अपने विचार रखे।