Friday, May 17, 2024
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सुख और कल्याण की प्रतीक तुलसी

भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी होना बेहद जरूरी है। तुलसी की पूजा-अर्चना की जाती है तथा इसे सुख एवं कल्याण की प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
तुलसी के गुणों का वर्णन करते-करते कवि ने एक ही वाक्य में प्रार्थना पूरी कर दी-
अमृतोऽमृतरुपासि अमृतत्वदायिनी। त्व मामुद्धर संसारात् क्षीरसागर कन्यके।।
विष्णु प्रिये ! तुम अमृत स्वरुप हो, अमरत्व प्रदान करती हो, मेरा उद्धार करो। तुलसी के गुणों को उसके नामों से ही तो जाना जाता है। जैसे एक नाम सुरसा है- क्योंकि तुलसी के पत्तों में भूख बढ़ाने वाला तत्व है। दूषित वायु, रोग और बीमारी को मार भगाने के कारण उसे भूतघ्नी, अपेतराक्षसी और दैत्यघ्वनी कहते हैं। बहुत उपचार करने पर भी अच्छे नहीं होने वाले रोगों में तुलसी चमत्कारिक लाभ पहुंचाती है, इसलिए उसे पापघ्नी भी कहा गया है। तेजी से प्रभाव डालने के कारण तीव्र तथा सरल चिकित्सा है, इसलिए इसे सरला नाम से भी पुकारते हैं। घरों में एक वेदी बनाकर, उसमें तुलसी वृंदावन या क्यारी लगाकर पूजने और फूल चढ़ाने का चलन भी व्यापक है।
तुलसी के संबंध में कई अंतर्कथाएं प्रचलित हैं। इहीं में से एक कथा के अनुसार तुलसी विष्णु की पत्नी है। कन्या की तरह घर में तुलसी पवित्र पुण्य और दायित्व की तरह पाला पोसा जाए और उसके गुणों को औरों (प्रतीक स्वरूप विष्णु) के लिए सौंप दिया जाए, यही इस कथा का संदेश है। महत्त्व देने का उद्देश्य लोगों के मन मस्तिष्क में आस्था जगाना है। तुलसी को ‘हरिप्रिया’ भी कहते हैं। अर्थात वह जगत के पालन-पोषण करने वाले विष्णु की प्रिय है। शायद ही कोई वनस्पति हो, जिसे इतना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व मिला हो। इसलिए हमेशा से यह परंपरा रही है कि घर में तुलसी का पौधा अवश्य होना चाहिए। कारण यह है कि घर-परिवार में सुखद और सकारात्मक वातावरण रहता है।
कहते हैं कि शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते अर्पित नहीं करने चाहिए। इसका कारण बताया गया कि दैत्यों के राजा शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी के कारण देवता भी षंखचूड़ को हराने में असमर्थ थे। तब विष्णु ने छल से उसकी षक्ति को दूषित कर दिया और निस्तेज हुए शंखचूड़ का वध संभव हो सका। तुलसी को सच्चाई पता चली, तो उसने विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। विष्णु ने तुलसी का श्राप तो स्वीकार कर लिया, पर यह भी कहा की पूजन कर्म में तुलसी का विशेष रूप से उपयोग किया जाएगा।
कुछ खास दिनों में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़े जाते। एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्र ग्रहण के कारण, तुलसी के पत्ते तोड़ने की मनाही है। तुलसी के पत्तों का सहज उपयोग नहीं किया जा सकता। उस स्थिति में तुलसी के पत्ते तोड़ना, उसे नष्ट करने के समान माना गया है।
तुलसी के गुणों के बारे में कहा गया है कि यह पुण्यदाई होने के साथ औषधि भी है। विष्णु पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में उल्लेख किया है। इस दिन गोधूलि बेला में भगवान शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है।
भारत ही नहीं, विदेशों में भी इसे पवित्र और लाभदायक माना गया है। प्रसिद्ध है कि ईसा के वध स्थान पर तुलसी के पौधे (बेसिल) उत्पन्न हुए थे। ग्रीस में आधुनिक युग में भी एक विशेष दिन तुलसी का उत्सव मनाया जाता है, जिसे सैंट बेसिल डे’ कहते हैं। इस दिन वहां की स्त्रियां तुलसी की शाखाएं अपने गृह द्वार पर लाकर टांगती हैं। उनका विश्वास होता है कि इससे उनकी मुसीबतें दूर होंगी जिन मान्यताओं की वजह से तुलसी को महत्व दिया जाता है, अंधविश्वास पर आधारित नहीं है।
प्रयोगशालाओं में भी सिद्ध हो गया है कि तुलसी का सानिध्य सात्विकता और पुण्यभाव के साथ आरोग्य की षक्ति को भी बढ़ाता है और इससे आत्मिक गुण बढ़ते हैं। जिस तरह शरीरगत दोषों को दूर करती है, उसी तरह मानसिक दोषों को भी दूर कर सद्गुणों का विकास करने में लाभप्रद होती है। इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी की माला, कंठी आदि शरीर में धारण करने का विधान है। विदेशों में भी इसका उपयोग होने लगा है।
तुलसी किसी भी रूप में शरीर और मन मानस से जुड़ी रहे, तो कल्याणकारी सिद्ध होती है। यहां तक कि तुलसीदल या उसे मिला कर दिया गया देवविग्रह का युक्त चरणोदक क्रोध और अहंकार जैसी उत्तेजनाएं शांत करता है। मान्यता है कि तुलसी का पौधा होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती। साथ ही, नकारात्मक ऊर्जा भी सक्रिय नहीं होती है। तुलसी घर-आंगन में से कई प्रकार के वास्तुदोष खुद ही समाप्त हो जाते हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति पर असर होता है।
डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम