Thursday, May 9, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » कब मिलेगा PACL कम्पनी के ग्राहकों का पैसा

कब मिलेगा PACL कम्पनी के ग्राहकों का पैसा

आल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन ने कानपुर में किया जिला इकाई का गठन  
कानपुर नगर, डॉ0 दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र पत्रकार)। सन 2014 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ‘सेबी’ द्वारा रियल इस्टेट क्षेत्र की कम्पनी पीएसीएल लिमिटेड को बन्द करने के बाद से इसके पौने छै करोड़ से अधिक ग्राहक अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा वापस पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। लेकिन कहीं कोई सुनने वाला नहीं है। पीड़ित ग्राहकों को उनका पैसा वापस दिलाने के लिए कई संगठन अपने-अपने तरह से प्रयास करने में जुटे हुए हैं। दूर-दराज के शहर कस्बों से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक धरना प्रदर्शन करने तथा विधायक, सांसद, मन्त्री, मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति तक को ज्ञापन भेजकर गुहार लगाने के बावजूद परिणाम अब तक सिफर ही रहा है। पीएसीएल के ग्राहकों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले आल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन ;ए. आई. एस. ओ.द्ध ने कानपुर में अपनी एक नवीन इकाई का गठन किया है। इसके पूर्व यहाँ विकास त्रिपाठी की अध्यक्षता में ए. आई. एस. ओ. की इकाई काम कर रही थी। जबकि नई इकाई का अध्यक्ष शिवनाथ साहू को बनाया गया है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अमर सिंह जांगिड ने बताया कि पीएसीएल के पीड़ित ग्राहकों एवं फील्ड कार्यकर्ताओं के इस संगठन की कानपुर इकाई के अध्यक्ष शिवनाथ साहू, उपाध्यक्ष टी. एस. शुक्ला एवं मनोज अग्रवाल, महसचिव रमेश चन्द्रा, सचिव पी. एन. साहू, उदय वीर सिंह, अशोक गौतम, शिवदास साहू, राम प्रकाश उत्तम, प्रह्लाद एवं जिन्दन लाल कनौजिया, कोषाध्यक्ष मनोज पाण्डेय, मीडिया प्रभारी अमर सिंह निषाद तथा संगठन मन्त्री देव नारायण साहू एवं सुरेन्द्र कुमार शर्मा मनोनीत किये गये हैं। वहीँ जय शंकर शुक्ल को प्रदेश तथा एम.सी. शर्मा एवं ग्वालियर से पधारे डी. के. सिंह को राष्ट्रीय इकाई में शामिल किया गया है। पीएसीएल के वरिष्ठ कार्यकर्ता रहे डी. के. सिंह ने बताया कि कानपुर में ए. आई. एस. ओ. का डिस्ट्रिक विंग बनाया गया है। यह कमेटी जिला स्तर पर संगठन को मजबूत करेगी और लोगों के अन्दर एक अवेयरनेस पैदा करेगी। उन्होंने बताया कि 2014 में सेबी द्वारा कम्पनी को बन्द करने के बाद 2015 में यह संगठन बना। 2016 में सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन आयाद्य 2016 के बाद ऑल इण्डिया लेबल पर मोंमेंट चालू हुआ और उस मोमेंट का असर यह रहा कि छोटे पेमेंट मिलने शुरू हुएद्य आगे आने वाले दिनों में बहुत अच्छा रिजल्ट देखने को मिलेगा। ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पृथ्वीराज यादव ने बताया कि पीएसीएल कम्पनी ने 32 साल तक काम किया है। उसमें लोगों ने अपना पैसा जमा किया। सरकार ने एक नया रूल बनाकर कम्पनी को बन्द कर दिया जिससे लोगों का पैसा पीएसीएल कम्पनी में फंस गया। उस पैसे को वापस दिलाने के लिए 2015 में सेण्ट्रल गवर्मेंट से रजिस्टर्ड ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन बनाया गया। उसने सड़क और सुप्रीम कोर्ट में इंवेस्टर्स की लड़ाई लड़ी। 2 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट से डिसीजन आया। जिसके तहत रिटायर जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गयी और रुल पास हुआ कि पीएसीएल की सारी सम्पत्ति बेचकर ग्राहकों का पैसा वापस दिया जाये। लेकिन लोढ़ा कमेटी प्रोपर-वे में काम नहीं कर रही है। इसलिये हम सब लोग आन्दोलनरत हैं। उसी परिप्रेक्ष्य में हमने मंगलवार को कानपुर में एक डिस्ट्रिक कमेटी का गठन किया है। ताकि इस संघर्ष को और तेज किया जा सके। ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन को लेकर बीच-बीच में सवाल भी उठते रहे है। संगठन की कानपुर इकाई के पूर्व अध्यक्ष विकास त्रिपाठी ने ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह 2016 में इस संगठन से जुड़े थे। 2018 में उन्हें कानपुर जिले का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि अन्ना जी ने जब दिल्ली में पीएसीएल के ग्राहकों के लिए अनशन किया तब मैं बराबर उनके साथ रहा। लेकिन संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने अनशन में कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई। इन लोगों ने दावा किया था कि हम लोग सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन 02 फरवरी 2016 को आये सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहीं भी इस संगठन का नाम नहीं आया है। इसीलिए मैंने इस संगठन को छोड़ दिया था। नई कार्यकारिणी यदि सही ढंग से काम करेगी तो मैं उसका साथ दूंगा। क्योंकि मेरा पैसा फंसा हुआ है।
गौरतलब है कि सन 1983 में स्थापित हुए पर्ल्स ग्रुप की कम्पनी पीएसीएल लि. रियल इस्टेट का कारोबार करती थी। कम्पनी ने आम जन के निवेश से पूरे देश में लगभग एक लाख एकड़ जमीन खरीदी थी। इस जमीन का वर्ष 2011 में बाजार मूल्य 75 हजार करोड़ रुपये से अधिक बताया गया था। अगस्त 2014 में नये अधिकारों से लैस भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ;सेबीद्ध द्वारा पीएसीएल लि. के व्यापार को गैर कानूनी करार देकर यह कहते हुए बन्द करने का आदेश दिया गया था कि कम्पनी ग्राहकों के साथ किये गये अनुबन्ध की शर्तों के आधार पर तीन माह में उनकी जमा रकम वापस करे। सेबी के मुताबिक कम्पनी ने 5 करोड़ 85 लाख ग्राहकों से लगभग 49 हजार करोड़ की रकम जुटाई थी। सेबी के उक्त आदेश को अदालत में चुनौती दी गयी। लगभग डेढ़ वर्ष बाद 02 फरवरी 2016 को सर्वाेच्च न्यायलय ने इस सन्दर्भ में निर्णय देते हुए कहा कि सेबी रिटायर्ड जज जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में कमेटी गठित करे और उस समिति की निगरानी में पीएसीएल कम्पनी की चल-अचल सम्पत्ति बेचकर निवेशकों की रकम वापस करेद्य अदालत के आदेश का पालन करते हुए जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन तो कर दिया गया परन्तु पीड़ित निवेशकों के भुगतान में कोई भी तत्परता नहीं दिखाई गयी। तब से लेकर आज तक पीएसीएल के करोड़ों निवेशक अपनी रकम वापस पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जिस सेबी ने अगस्त 2014 में तीन माह के अन्दर निवेशकों की रकम वापस करने का आदेश पीएसीएल कम्पनी को दिया था, वही सेबी 6 साल बाद भी निवेशकों का जमा धन वापस नहीं कर पायी है। ग्राहकों की लड़ाई लड़ने के लिए ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन समेत कई संगठन सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने का भले ही दावा करते हों परन्तु आम आदमी के खून पसीने की कमाई फ़िलहाल वापस मिलते नहीं दिखाई दे रही है। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि सड़क की लड़ाई सड़क पर और कोर्ट की लड़ाई सिर्फ कोर्ट में ही सफल परिणाम दे सकती है। मालूम हुआ है कि सेबी हर तीन महीने में पीएसीएल के ग्राहकों के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट को अपनी प्रगति रिपोर्ट देती हैद्य परन्तु दुर्भाग्य से सेबी की उक्त रिपोर्ट को ग्राहकों की ओर से न्यायालय में चुनौती देने वाला कोई नहीं होता है। न्याय व्यवस्था की जटिल प्रक्रिया के कारण आम आदमी की पहुँच न्यायाधीश महोदय तक नहीं हो पाती। इसके लिए वकील चाहिए परन्तु वकीलों की मंहगी फीस के कारण ग्राहकों का पक्ष न्यायालय तक नहीं पहुँच पा रहा है। यूपी इलेक्शन के समय उत्तर प्रदेश में भाग्य आजमाने निकली आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने पार्टी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वकील देने का वादा पीएसीएल के ग्राहकों से किया थाद्य परन्तु यहाँ चुनाव गया वादा गया की उक्ति चरितार्थ हुई और पीड़ित ग्राहकों को मायूस होना पड़ा। कहने को तो जन समान्य से जुड़ी किसी भी समस्या को लेकर समाज का कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में पोस्ट ऑफिस के माध्यम से जनहित याचिका भेज सकता है। जिसकी कोई फीस नहीं लगती है और आवश्यकता पड़ने पर याचिकाकर्ता को निःशुल्क वकील भी दिया जाता है। लेकिन व्यावहारिक धरातल पर सब कुछ वैसा नहीं होता जैसा कहा जाता है। दिसम्बर 2020 में लेखक द्वारा विकास त्रिपाठी, त्रिभुवन शंकर शुक्ल, जय शंकर शुक्ल, राम सिंह सेंगर, के. के. सिंह, रमाकान्त त्रिपाठी तथा दिनेश सिंह के साथ मिलकर इस सन्दर्भ में पोस्ट ऑफिस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को जनहित याचिका प्रेषित की थी। लेकिन आज तक कोई यह बताने वाला नहीं है कि उस याचिका का क्या हुआ। इससे प्रतीत होता है कि बिना किसी वकील के व्यावहारिक रूप से जनहित याचिका दाखिल करना सम्भव नहीं है। ऑल इंवेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन जैसे संगठनों को अन्यत्र अपनी उर्जा नष्ट करने की बजाय जनहित याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में सेबी और लोढ़ा कमेटी की प्रगति रिपोर्ट को चुनौती देनी चाहिए।