हिंदू धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की बारह दिन के पश्चात तेरहवें दिन मृत्यु भोज की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। यह मृत्यु भोज तेरहवें दिन ही क्यों कराया जाता है इस प्रश्न का उत्तर हमें गरुड़ पुराण से मिल जाता है जिसमें यह विदित है की दिवंगत आत्मा को उसकी मृत्यु के पश्चात 13 दिन तक 13 गांव को पार करना होता है गरुड़ पुराण के अनुसार यह गांव बहुत भयानक होते हैं आनंददायक नहीं होते हैं यह जंगल कांटो और अग्नि से भरा हुआ गांव होता है जिसे पार करते हुए दिवंगत आत्मा को यमराज के समक्ष उपस्थित होना होता है।
लेख/विचार
एक बार फिर सोचिए
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“प्रसिद्ध व्यक्ति अपनी छाप समाज के सामने खुद खराब करते है”
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जनसंख्या वृद्धि कानून
1975 में लगाया गया आपातकाल आज भी लोग याद करते हैं और याद करने के साथ-साथ उस वक्त की दबंगई को भी याद करते हैं। आज भी बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है और इसे रोकने के लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए। अब तक जो भी नियम कानून इस मुद्दे को लेकर बने हैं वह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए हैं। आज देश में हर मिनट पर 42 बच्चों का जन्म हो रहा है हर दिन 61,000 बच्चों का जन्म होता है। ये बढ़ती हुई आबादी रोजगार के अवसरों को खत्म कर रही है साथ ही गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी को बढ़ावा दे रही है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या की सबसे बड़ी समस्या स्थान की है, साथ ही बिजली और पानी की भी है। लगातार कट रहे जंगल प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और उसका खामियाजा भी हम भुगत रहें हैं। गरीबी और खाद्यान्न की समस्या का कारण जनसंख्या वृद्धि ही है और इसका दुष्प्रभाव चिकित्सा की बद इंतजामी के रूप में भी दिखाई देता है।
ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के परिणाम और दुष्परिणाम
शिक्षा किसी भी राष्ट्र अथवा समाज के समुचित विकास एवं निरंतर उत्थान का मुख्य कारक माना गया है किंतु पिछले डेढ़ सालों से कोविड-19 महमारी के दुष्परिणाम से यदि सबसे अधिक कोई प्रणाली अथवा व्यवस्था का ह्रास हुआ है तो वह है शिक्षा प्रणाली। वर्तमान समय में शिक्षा को विद्यालय जाकर प्राप्त करने की व्यवस्था का स्थान ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने ले लिया है जो कि घर बैठे ही बच्चों को फोन लैपटॉप कंप्यूटर इत्यादि से प्राप्त करना है जिसके लाभ तो बहुत कम है किंतु दुष्परिणाम बहुत सारे देखे जा रहे हैं। इस महामारी के संकट पूर्ण समय में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली मात्र एक अल्पकालिक विकल्प के रूप में तो सही है किंतु इसे प्राय: के लिए अनिवार्य बनता यदि देखा जाए तो यह एक चिंता का विषय है।
उम्र और जिंदगी का फर्क – जो अपनों के साथ बीती वो जिंदगी, जो अपनों के बिना बीती वो उम्र
नई जनरेशन को अपनों के साथ समय बिताना और अपनों को नई जनरेशन के साथ दोस्त बनकर रहना, आधुनिक जीवन जीने का मूल मंत्र – एड किशन भावनानी
भारत अपनी परंपराओं, संस्कृति, संस्कार, अपनापन, मान मर्यादा, अपनत्व इत्यादि अनेक प्रकार की मानवीय आचरण सभ्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। मेरा निजी विचार है कि भारत में नागरिक अपनों, अपने बड़े बुजुर्गों का जितना सम्मान मानमर्यादा करते हैं, विश्व में कहीं नहीं होगा। हालांकि सभी अच्छाइयों में कुछ अपवाद बुराइयां भी होती है जो नगणयता में गिनी जाती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अपनों से रिशता सामाजिक संबंधों का आधार है और रिश्तो में कड़वाहट मनुष्य में मानसिक अशांति पैदा करता है, जिससे जिंदगी का मकसद सिर्फ उम्र काटना तक ही सीमित हो जाता है।
देर रात तक ऑनलाइन, क्या औरतें भी कुछ हटके कर रही है
बेशक मोबाइल जैसे छोटे से मशीन ने हमारे कई काम आसान कर दिए पर जैसे हर चीज़ के दो पहलू होते है सही और गलत, वैसे ही इस खिलौने का भी कायदे से इस्तेमाल करो तो फ़ायदे है पर अगर बहक गए तो बेड़ा गर्द है। इस मशीन के भीतर क्या-क्या कांड पनपते रहते है ये भी सब जानते ही होंगे। ये सोश्यल मीडिया जितना उपयोगी है उतना खतरनाक भी है। आज ज़्यादातर 40/50 साल की औरतें सबसे ज़्यादा मोबाइल का उपयोग करती है। चलो समझ सकते है समय बिताने के लिए मोबाइल का उपयोग कोई बुरी बात नहीं, पर किसी ने सोचा है कुछ औरतें देर रात तक ऑनलाइन रहकर मोबाइल में करती क्या हैं?
भारत में समान आचार संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना समय की मांग
समान आचार संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून से महिला अधिकारों का सशक्तिकरण – एड किशन भावनानी
भारतीय बहुलवादी संस्कृति में महिला अधिकारों को वरीयता देने प्रत्येक धर्म और संस्थान का कर्तव्य है।… साथियों भारत में धार्मिकता, रूढ़िवादिता, प्रथाएं, हर जाति और धर्म के अलग-अलग कानूनों के कारण देश में विषमता स्थिति पैदा हो गई है। खास करके कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन पर विशेषकर महिलाओं को सशक्तिकरण के लिए उपरोक्त दोनों कानूनों को लाना समय की मांग और आवश्यकता है। वह बिंदु हैं, विवाह, तलाक, अडॉप्शन इन्हेरिटेंस, सकसेशन और बहु विवाह इत्यादि बिंदु हैं। इनमें तकनीकी स्तर पर खामी तब उत्पन्न होती है, जब अंतर्जातीय या अंतरधार्मिक विवाह होता है।
जिंदगी और समय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक
जिंदगी, समय का सदा सदुपयोग और समय, जिंदगी की कीमत सिखाता है
जिंदगी को समय और परिस्थितियों के अनुसार ढालना जीवन जीने का मूल मंत्र – एड किशन भावनानी
भारत आदि जुगाद काल से ही एक धार्मिक, आध्यात्मिक, परोपकारी देश रहा है। भारत की मिट्टी में ही ये गुण समाए हुए हैं, यह हम सब जानते हैं।…साथियों मनुष्य जीवन का मिलना आध्यात्मिक में भाग्यशाली माना जाता है, क्योंकि उसमें सोचने समझने की शक्ति याने बुद्धिमता अन्य प्राणियों के जीवन से कई गुना अधिक होती है। परंतु बहुत सी ऐसी छोटी-छोटी बातें होती है जिन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं कि यह हमारे लिए मायने नहीं रखती। उसमें से दो महत्वपूर्ण बातें हैं, जिंदगी और समय का महत्व।…साथियों बात अगर हम जिंदगी और समय की करें तो इसका हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व रहता है। जिंदगी का मतलब जीवन में जिस तरह हम जी रहे हैं और समय का मतलब जिन परिस्थितियों में हम जी रहे हैं।
मंहगाई की मार से बेहाल आदमी
ये एक चलन है कि पाखंडपूर्ण सरकारें जो सत्ता में रहकर राजनीतिक गुनाह करते हैं। सत्ता से हटते ही स्वतः उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं और सत्ता के इस खेल में आम आदमी पिस कर रह जाता है। महंगाई जो सुरसा की तरह मुंह फाड़े हुए है उसका मुंह लगातार फैलता ही जा रहा है। ‘बहुत हुई महंगाई की मार’ का नारा देने वाली सरकार भी इस महंगाई रोकने में नाकाम साबित हो रही है। इस आपदाकाल में जहां लोग बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। वहाँ महंगाई की मार का बोझ उठा पाना आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।
पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी करके और आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें भी परिवहन लागत बढ़ने से महंगी होती जा रही है। कोरोना की मार से अधमरा हुआ आदमी बेरोजगारी और महंगाई दोनों की मार झेल रहा है। छह महीने से रसोई गैस के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। साथ ही गैस की सब्सिडी खत्म कर दी गई है। खाने के तेल कीमत ₹200 से ऊपर हो गई है। डीजल पेट्रोल की कीमतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में आम आदमी की जेब का और रसोई का बजट बिगड़ता जा रहा है। इस महामारी का प्रभाव लोगों के काम धंधे पर भी बहुत पड़ रहा है। लोन की किश्ते, स्कूल की फीस, डॉक्टर की फीस और अन्य खर्चे उठा पाने में लोग अक्षम हो रहे हैं। ऐसे में निराश व्यक्ति आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा रहा है।
एक जानकारी के आधार पर रीना कार के पति की मृत्यु हो गई। रीना को समझ में नहीं आ रहा कि वह घर कैसे चलाएं। लड़की की इंजीनियरिंग की फीस भरने को पैसे नहीं है। घर में ए सी है लेकिन लाइट बिल बढ़ जाने की वजह से वह इसे चलाती नहीं। खाद्य पदार्थ महंगी होने के कारण खाना भी एक वक्त ही बनाती है। अभी कुछ समय पहले खबर आई थी कि उस बत्तीस साल के बेरोजगार राकेश दास ने नोएडा के एक होटल में नाइट्रोजन गैस सूंघकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में उसने लिखा है नौकरी जाने के बाद वह कर्ज में डूब गया। पांच लाख से ज्यादा का कर्ज हो जाने के कारण और नौकरी ना होने की वजह से वह आत्महत्या कर रहा है। इससे इतर गरीबों की हालत भी कुछ कम खराब नहीं है। एक मजदूर राकेश्वर ने अपने बच्चों का स्कूल से नाम इसलिए कटवा दिया कि जब खाने के लिए पैसे नहीं है तो स्कूल की फीस कहां से भरेंगे।
कोरोना की तीसरी लहर अभी बाकी है मगर महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी की पहले ही कमर तोड़ दे रही है। हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं यदि सरकार ने महंगाई पर लगाम और रोजगार के अवसर नहीं तलाश नहीं किये तो तो आम आदमी की जिंदगी बहुत कठिन हो जाएगी। काम धंधा ठप होने की वजह से मजदूरों को दिहाड़ी नहीं मिल पा रही है। वह अपने शहर में पलायन करके भी खाली बैठे हुए हैं। राजनीतिक स्वार्थ ना साधकर बल्कि जनता के हितों को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू करने के साथ.साथ उस पर अमल भी किया जाए तभी इन परेशानियों से बाहर आया जा सकता है।