Saturday, May 18, 2024
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लेख/विचार

मगरमच्छ के आंसू

वो दौर था जब अफगानिस्तान में तालिबानों का अफगान फौज को हरा कर कब्जा कर लिया था और वह केहर बरपा रहे थे तब पाकिस्तान की सारी हमदर्दी तालिबानियों के साथ थी और दबी जुबान में के रहे थे कि तालिबानियों की मदद से कश्मीर में अलगाव को बढ़ावा देने की और दूसरे मामलों में भी उनकी मदद लेके भारत में कुछ हालत ऐसे कर देंगे जिससे देश में मुश्किलें बढ़ जाए। इतनी सहानुभूति दिखाते थे कि वही लोग ही उनके अकेले दोस्त है,अमेरिका ने जो उनके फंड्स रोक लिए थे उन्हे भी रिलीज करने की बिनती कर चुके थे लेकिन क्या वह सच में अफगानिस्तान के दोस्त हैं? कितनी मानवीय मदद की हैं पाकिस्तान ने ये कोई पूछे तो?

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चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों में मचा भारी उठापटकः वीरेंद्र कुमार जाटव

10 जनवरी की बिछी बिसात क्या बीजेपी पर पड़ेगी भारी

नई दिल्ली। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा देकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारी हलचल पैदा कर दी है, इस्तीफा देने के बाद पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पत्रकारों के साथ वार्ता करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि सरकार में और संगठन में दलितों पिछड़ों की उपेक्षा अन्याय और अपमान बर्दाश्त के बाहर था। इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के बैठकों में नीतिगत फैसला लेते समय दलित और पिछड़ों की भावनाओं को ध्यान नहीं रखा जाता था और न ही उनके प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता था।

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महामारी ने जीवन जीने का ढंग बदला, शिक्षा के परम्परागत सीखने तरीकों में समयानुसार बदलाब करने की आवश्यकता

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में कोविड 19 या कोरोना के संकट के इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। मानवीय जीवन के कुछ हिस्से ज्यादा और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर तो हो ही रहा है। शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इसका व्यापक असर देखा जा सकता है। ग़ौरतलब है कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान लगभग सभी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया और आदेश दिया गया कि ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से बाकी बचे कोर्स को पूरा कराया जाये। जिसकों लेकर सरकारों ने सभी के लिए ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था करने की कमान संभाली l महामारी से पहले परम्परागत स्कूली शिक्षा पर पूर्ण रूप से ध्यान केन्द्रित था, अब महामारी के कारण स्कूली शिक्षा बाधित हुई है, 2022 में शिक्षा का रुख ऑनलाइन शिक्षा एवं ई-लेर्निंग्स की ओर रुझान बढ़ रहा हैl बहुत से पढ़ाई जो क्लास रूम में बैठकर पूरी की जाती थी अब घर बैठे बहुत से कोर्स पूरे किये जा रहे है l दुरस्त शिक्षा के माध्यम से अब ऐसे बच्चों तक भी पहुँच बनाई जा रही है जी कभी शिक्षा की मुख्य धारा से पीछे हो गए थे l पूर्व- प्राथमिक व प्राथमिक शिक्षा के लिए कुछ अलग से सोचने की आवश्यकता है जिससे शुरुआती शिक्षा को बच्चों में प्रेषित की जाएl बच्चों की शुरूआती दक्षताओं को पूर्ण करने के लिए समय के साथ लक्ष्य तय करने एवं मासिक प्राथमिक कौशल की उपलब्धि पाने पर ध्यान केन्द्रित करना होगाl प्रत्येक कक्षा में बच्चों को कक्षा अनुसार दक्षता की प्राथमिकता अनुसार जाँच कर उनकी सीखने में आई रूकावट एवं कमियों को दूर किया जाना चाहिएl सर्वप्रथम उनके लर्निंग लोस को पूरा किया जाकर नया पाठ्यक्रम आगे बढ़ाया जाये l शुरूआती कक्षाओं के लिए इसे कड़ाई से पूरा किया जाना आवश्यक हैl बच्चों की पढ़ाई के लिए माता-पिता, शिक्षकों एवं समुदाय की सहभागिता अति आवश्यक है, बच्चों के शिक्षण की गंभीरता को देखते हुए उनके कौशल बढ़ाने हेतु जिम्मेदारीपूर्ण कार्य करेlआज के समय में परम्परागत पढ़ाई का दौर बहुत बाधित हुआ हैl बच्चों की सीखने तरीकों में समयानुसार बदलाब करने की आवश्यकता हैl बच्चों को आधुनिकता से जुडी पठन-पाठन सामग्री से जोड़कर प्रायोगिक ज्ञान देने की आवश्यकता है, परंपरागत स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम पूरा कर पढ़ाई में बच्चों की दक्षता की ओर संकेत करती है परन्तु पाठ्यक्रम पूरा कर देने मात्र से बच्चों को पूर्ण दक्षता मिल जाएगी ये शायद हमारी भूल होगी, परम्परागत स्कूली पढ़ाई से थोड़ा हटकर बच्चों की पढ़ाई समझ के साथ पढ़ाई की प्राथमिकतायें तय किया जाये, एवं इसका जिम्मेदारी से पूरा करने का दायित्व सरकारें, शिक्षक एवं अभिभावक निभाए lलॉकडाउन के समय में बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से पूर्ण करने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर थी जिन्हें यथासंभव पूर्ण करने की कोशिश कीl ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से बच्चों और शिक्षको की परस्पर पढ़ाई का गेप को कम करने के लिए कार्य किया गया l परन्तु हम ये दाबे से नहीं कह सकते की यह साधन बच्चों के लिए पूर्ण कारगर रहा होगाl शिक्षा की वार्षिक रिपोर्ट असर 2021 के अनुसार नामांकित सभी बच्चों में से दो तिहाई से अधिक बच्चों के पास घर पर स्मार्टफ़ोन 67l6% हैं, इनमें से लगभग एक चौथाई 26.1% ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है। इसमें कक्षावार देखने पर यह स्पष्ट होता है कि छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा उच्च कक्षा में पढ़ने वाले ज़्यादा|

श्याम कोलारा (लेखक)

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सोशल मीडिया का सही उपयोग हो

हम में से कितने लोग सोशल मीडिया से कुछ अच्छी बातें सीखते है? या सोशल मीडिया का उपयोग नीतिमत्ता से करते है, शायद बहुत कम। ज़्यादातर ये मंच झूठी तारीफ़, झगड़े, दुष्प्रचार और किसी को नीचा दिखाने के लिए ही उपयोग होता है।
सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग करते कुछ लोग अफ़वाहें और झूठी खबरें फैलाकर धर्म के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश करते है। भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा करते है जिससे जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। और कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल करने वालों पर सख्त हो जाती है।

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चुनाव 2022 बनाम ओमीक्रान वेरिएंट

ओमीक्रान वेरिएंट और चुनाव 2022 – क्या चुनावी जनसभाओं को डिजिटल मीडिया तक सीमित किया जाए ?
सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर चुनाव आयोग से मिलकर चुनाव प्रचार के विकल्पों पर चर्चा करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से ब्रिटेन, अमेरिका सहित अनेक देशों में ओमीक्रान वेरिएंट का कहर और भारत में बढ़ते केसों को ध्यान में रखते हुए आगामी पांच राज्यों में कुछ महीनों में होने वाले विधान सभाओं का चुनाव और वर्तमान यूपी में हो रही रथ यात्राओं, रैलियों जनसभाओं में बिना उपयुक्त कोविड व्यवहार पालन के उपस्थित नागरिकों को देखते हुए बुद्धिजीवियों, प्रबुद्ध नागरिकों, जानकारों, टीवी चैनलों पर डिबेट और गली मोहल्लों में इस चर्चा को बल मिल रहा है कि क्या चुनावी सभाओं को डिजिटल मीडिया तक सीमित करने संबंधी किसी विकल्प पर विचार किया जाना उचित रहेगा ?

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कौवों की जमात

एक वीडियो देखा था, एक ताकतवर मुर्गा एक कौए पर चढ़ बैठा था और उसको अपनी चोंच से जोर जोर से वार कर उसे घायल कर दिया था और कौवों का झुंड उसके ऊपर और आसपास उड़ कर कांव कांव कर रहे थे। कोई भी कौवा उसे बचाने के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठा रहे थे। सिर्फ उड़ा उड़ करके शोर मचाते हुए उस कौए को मरते हुए देख रहे थे। अगर सभी कौवे एक साथ उस अकेले हमलावर पर घात करते तो शायद उस कौवे को बचा पाते। अगर नहीं भी बचा पाते तो अपनी ताकत का संदेश तो उस हमलावर मुर्गे को दे ही सकते थे। कांव कांव करके उड़ने से सिर्फ शोर हो सकता हैं बचाव नहीं।

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डिजिटल भारत में अनुपालन बोझ को कम करने सुधारों की ज़रूरत

वैधानिक मापनविधा को गैर-अपराधी बनाने की ज़रूरत – स्वसत्यापन, स्वप्रमाणन, स्वनियमन को बढ़ावा देने की ज़रूरत
डिजिटल भारत में सरकारी विभागों के मामलों में नियमों, प्रक्रियात्मक पहलुओं, को गैर-अपराधिक करने और आवेदक़ के शिकायतों का निवारण संवेदनशील तरीके से करने की ज़रूरत – एड किशन भावनानी
भारत बड़ी तेज़ी के साथ डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ते हुए डिजिटलाइजेशन की आंधी में, संकरी गलियों रूपी मानव हस्तकार्य याने हैंडवर्क को विशाल चौड़े रास्तों याने डिजिटलाइजेशन की ओर लाया जा सके ताकि सब काम तेजी से हो अर्थात एकसंकरी गली विशाल रोडरस्ते का स्थान लेकर हजारों लाखों काम एक साथ हो, यह है हमारे नए भारत का रणनीतिक रोड मैप का एक हिस्सा!!!

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UP में BSP का चुनावी सफर और 2022 क्या होगी चुनावी डगर

बहुजन समाज पार्टी का गठन 14 अप्रैल 1984 को मान्यवर कांशीराम के द्वारा किया गया था उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने शानदार और ऐतिहासिक चुनावी प्रदर्शन के कारण 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।
1989 से लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों की एक रिपोर्ट कार्ड आपके समक्ष रख रहे हैं 1989 में उत्तर प्रदेश की 10 वी विधानसभा के चुनाव संपन्न हुये इन चुनावों में बसपा 13 विधानसभा सीटें जीत पाई 9. 33% वोट प्राप्त हुए।

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हम ऐसे हैं और वो वैसे हैं!!!

हमें गर्व है हम भारतीय हैं – भारतीय सोच, सहिष्णुता, संकल्प जांबाज़ी, ज़ज्बे का विश्व में डंका!!!
आज का भारत 2047 के नेतृत्व के लिए मौजूदा युवा पीढ़ी को रणनीतिक रोडमैप से बागडोर और कर्तव्यपरायणता के बीजारोपण में जुटा – एड किशन भावनानी
भारतीय सोच, संस्कृति, बौद्धिक क्षमता, दूरदृष्टि फ़र्ज अदायगी, कर्तव्यपरायणता में वैश्विक स्तर पर बहुत आगे है। और हो भी क्यों ना? क्योंकि भारतीय मिट्टी में जन्मे हमारे हर भारतीय नागरिक और प्रवासी भारतीय के रग-रग में भारत माता के गुणों का संचार हो रहा है!! याने हमारा भारतवर्ष एक ऐसे सुगंध का समूह है जो अपनी व्याख्या करें, या ना करें लेकिन हवाएं उस सुगंध की ख़ुशबू को सात समंदर पार तक भी पहुंचा देती है!!! यही स्थिति भारतीय कलाओं, सोच, सहिष्णुता,संकल्प जांबाज़ी और ज़ज्बे की भी है!!!

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व्यंग दावत

जबसे सरकार ने सामूहिक प्रसंगों पर कौड़ा चलाया हैं, निमंत्रको की संख्या घटादी हैं मुझे कही से भी निमंत्रण पत्र नहीं आ रहे हैं।पड़ोसी की बेटी की शादी में दो सो लोगों को ही बुलाने की इजाजत थी, सबसे पहले दोस्तों की सूची बनी,एक के बाद एक सभी के दोस्तों के नाम कटते गए क्योंकि रिश्तेदार को बुलाना ज्यादा जरूरी हैं। फिर भी देखो हजार बंदे हो रहे थे तो पड़ोसियों की सूची को कम करते गए और मेरा नाम भी कमी हो गया फिर भी थोड़े कम तो हुए किंतु नियंत्रित संख्या से काफी ज्यादा थे।और उन्हें भी एक घर से सिर्फ दो लोगों को ही निमंत्रित किया गया,यही आसान उपाय था।

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