प्रयागराज, जन सामना ब्यूरो। कैबिनेट मंत्री के मीडिया प्रभारी दिनेश तिवारी ने बताया कि गत मंगलवार निज आवास पर शहर पश्चिमी विधायक व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह द्वारा ग्राम बक्शी मोढ़ा प्रयागराज में तब्लीगी जमातियों पर टिप्पणी करने के कारण कट्टरपंथी बदमाशों के द्वारा शहीद हुये लौटन निषाद की बेवा पत्नी सविता निषाद को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित सहायता राशि चार लाख रुपये का चेक प्रदान किया गया।
कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा मैंने चुनाव में गद्दी को रद्दी बनाने का संकल्प लिया था। विधानसभा शहर पश्चिमी में किसी भी भूमाफिया, लूट, हत्या आदि घटनाओं का अंजाम देने वाला अपराधी को बख्शा नहीं जायेगा। अपराधी को संरक्षण देने वालों पर शिकंजा पुलिस अधिकारी कस कर कठोर कार्यवाही करेगी। अपराधियों को संरक्षण देने वाले को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे कोई भी बड़ा से बड़ा व्यक्ति या पुलिस का भेदिया हो सब पर योगी सरकार कठोर कार्यवाही से नहीं हिचकेंगी। अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे जाना होगा या शहर पश्चिमी छोड़कर चले जाय। आज शहर पश्चिमी का ऐतिहासिक पहचान विकास बन गया है।सविता निषाद के साथ मैं सदैव खड़ा रहूँगा। हर संभव मदद सरकार करेंगी।
इस मौके पर एडीएम नजूल, महानगर अध्यक्ष गणेश केसरवानी, मंडल अध्यक्ष ज्ञान बाबू केसरवानी, समाजसेवी जितेन्द्र बजरंगी, बक्शी मोढ़ा के ग्राम प्रधान मुबारक अली, लेखपाल प्रतीक पाण्डेय, लौटन निषाद के बड़े भाई बिरजू निषाद, समाजसेवी श्यामू भारतीया, धर्मेन्द्र निषाद इत्यादि लोग उपस्थित रहे।
नोडल अधिकारी ने गन्दगी देख ईओ को लगाई फटकार
शिवली/कानपुर देहात, जितेन्द्र कुमार। कोविड-19 नोडल प्रभारी ने सीएचसी शिवली नगर पंचायत कार्यालय एवं शिवली कोतवाली में आकस्मिक निरीक्षण कर कोविड-19 डेक्स की व्यवस्थाएं परखी। निरीक्षण के दौरान सीएससी शिवली में महिला प्रसाधन रिकवरी रूम लेबर रूम इमरजेंसी एवं स्टोर रूम में व्याप्त गंदगी को देखकर सफाई करवाई जाने के निर्देश दिए। वहीं निरीक्षण के दौरान नगर पंचायत कार्यालय में बनाई गई कोविड-19 डेक्स पर मात्र सैनिटाइजर रखे होने तथा जानकार आदमी के बैठे न होने पर अधिशासी अधिकारी को जमकर फटकार लगाते हुए डेक्स पर पल्स ऑक्सीमीटर एवं थर्मल स्कैनर तथा मास्क रखने के निर्देश दिए वही शिवली कोतवाली में कोविड-19 डेक्स की सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद देखकर मौके पर मौजूद कोतवाल की सराहना की।
Read More »देश भर में झोलाछाप डॉक्टरों के कारण मरीजों की जान सासत में -प्रियंका सौरभ
कोरोना काल में पूरी दुनिया में डॉक्टर भगवान् के रूप में लोगों को नज़र आये है और ऐसा हो भी क्यों न?अपनी जान को दांव पर लगाकर दूसरों को निस्वार्थ भाव से जिंदगी उपहार देने वाले भगवान ही तो है। मगर सरकारी आँकड़ों के अनुसार भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिये देश में सिर्फ 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। इस हिसाब अगर देखा जाये तो भारत में प्रत्येक 13000 नागरिकों पर मात्र 1 डॉक्टर मौजूद है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संदर्भ में 1:1000 अनुपात को जायज़ और जरूरी मानता है, यानी हमारे देश में प्रत्येक 1000 नागरिकों पर 1 डॉक्टर होना अनिवार्य है। लेकिन ऐसा करने के लिए भारत को वर्तमान में मौजूदा डॉक्टरों की संख्या को कई गुना करना होगा।
जहाँ एक ओर शहरी क्षेत्रों में 58 प्रतिशत योग्य चिकित्सक है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा 19 प्रतिशत से भी कम है। योग्य चिकित्सकों के अभाव में देश में में झोलाछाप डाक्टरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
पाश्चात्य वाद व हिंसात्मकता को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होती वेब सीरीज प्रस्तुतियां
किशोरावस्था मिट्टी का वह कच्चा घड़ा है कि एक झटका भी उसके फूटने के लिए काफी है। जिस तरह आज इस आधुनिकता के दौर का युवा वर्ग वेब सीरीज का दीवाना बनता जा रहा है, उसे देखकर यह कहना बिल्कुल भी गलत न होगा कि जब भविष्य के कर्णधारों का ही भविष्य अंधकारमय होगा तो राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करना महज एक दिलासा देना होगा। यह जग-जाहिर है कि अगर ऊर्जा को सही जगह का भान न कराया जाए तो अनियंत्रित ऊर्जा विध्वंसकारी हो जाती है। इस सत्यता को झुठलाया नहीं जा सकता है कि परमाणु ऊर्जा विध्वंसक की श्रेणी में प्रथम है, मगर जिस प्रकार परमाणु ऊर्जा से विद्युत आपूर्ति की कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, वह एक नियंत्रित पहल है। आज-कल यह वेब सीरीज भी उसी अनियंत्रित ऊर्जा को बढ़ावा देने में मुख्य भूमिका अदा कर रहा है, जो भविष्य की आने वाली पीढ़ियों को भी पाश्चात्य व हिंसा के दलदल में ढकेलने का काम कर रही हैं।
किशोरावस्था अर्थात् जब शारीरिक बदलाव का दौर जारी हो, ऐसे में वेब सीरीज की लत, धुम्रपान की लत से भी ज्यादा खतरनाक होती है। वेब सीरीज में दिखाए गए कार्यों को यह युवा वर्ग अपनी असल जिंदगी में भी शामिल करने लगता है। एक शोध के अनुसार, वेब सीरीज में दिलचस्पी दिखाने वाले युवा वर्ग के आचार-विचार में काफी परिवर्तन देखा गया है, यथा चिड़चिड़ापन, क्रोध व अवसाद जो युवा वर्ग में हिंसात्मक रवैये का मूल साक्ष्य है।
हैरान करती है तिब्बत की स्वतंत्रता पर वैश्विक चुप्पी
ईराक ने 1990 में जब कुवैत को अपना बताकर उस पर अधिकार जमाया था। तब अमेरिका ने आनन-फानन में ईराक पर कार्रवाई करते हुए न केवल कुवैत को मुक्त करा लिया था बल्कि एक समय अन्तराल के बाद परमाणु हथियार रखने का इल्जाम लगाकर ईराक का तख्ता पलट करते हुए उसे नेस्तनाबूद करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वहीँ दूसरी ओर चीन द्वारा तिब्बत पर अधिकार जमाए हुए 70 वर्ष बीत गये हैं। परन्तु अमेरिका सहित विश्व का कोई भी सक्षम देश इस बारे में कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। शायद इसी कारण चीन के हौसले बढ़े हुए हैं और वह खुलेआम परमाणु परीक्षण करके पूरे विश्व को चुनौती दे रहा है। गौरतलब है कि 40 के दशक में तिब्बत पूर्ण स्वतन्त्र राष्ट्र था। अक्टूबर 1950 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी तिब्बत में दाखिल हुई और बर्बरतापूर्वक पूरे तिब्बत को अपने अधिकार में ले लिया। उसके बाद एक देश का विश्व से स्वतन्त्र अस्तित्व समाप्त हो गया। 10 मार्च 1959 को तिब्बत में चीन के खिलाफ जबरदस्त विद्रोह हुआ। परन्तु चीन ने उस विद्रोह को सख्ती से कुचल दिया था। तब से लेकर आज तक तिब्बत की स्वतन्त्रता को लेकर किये गये प्रत्येक आन्दोलन को चीन बर्बरतापूर्वक कुचलता चला आ रहा है। परन्तु हैरान करने वाली बात यह है कि मानव अधिकारों की बात करने वाले विश्व के बड़े-बड़े देश चीन द्वारा तिब्बती नागरिकों पर किये जा रहे अमानवीय अत्याचार के मूक दर्शक बने हुए हैं। तिब्बत के नाम पर संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी भी समझ से परे है।
Read More »अवनीश अवस्थी के साथ जय वाजपेयी फोटो की जाँच कर कार्यवाही करने की मांग
लखनऊ, जन सामना ब्यूरो। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी तथा कानपुर निवासी जय वाजपेयी के एक वायरल हो रहे फोटो के आधार पर एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर ने इस मामले की जाँच करने की मांग की है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजे गये अपने पत्र में नूतन ने कहा है कि जय वाजपेयी विकास दूबे का बहुत नजदीकी एवं मुख्य खजांची बताया जा रहा है, जिसके द्वारा घटना के बाद विकास दूबे के परिवार को भगाया गया। वह एसटीएफ की कस्टडी में है जहाँ उससे इन बिन्दुओं पर पूछताछ जारी है। नूतन के अनुसार इसी बीच अवनीश अवस्थी तथा जय वाजपेयी की निकटता वाली एक तस्वीर सामने आई है, जो श्री अवस्थी के हाल की एक पारिवारिक समारोह की बताई जा रही है, जिसमे जय वाजपेयी भी आमंत्रित बताया जा रहा है।
नूतन ने इस तस्वीर की सत्यता की जाँच करवाए जाने और तस्वीर के फर्जी नहीं होने पर श्री अवस्थी को न्यायहित में गृह विभाग से अलग करते हुए जय वाजपेयी जैसे अत्यंत संदिग्ध व्यक्ति से उनकी निकटता की पूछताछ किये जाने का अनुरोध किया है।
Read More »बेकाबू हो चली आग की लपटों में तेल की आहुति बनाम आत्मनिर्भरता
आज के इस आपातकाल दौर में जब आम जनता खुद के पेट की तपिश को ही मिटाने में अक्षम है, तो देश तो दूर की बात है साहेब, उससे उसी की आत्मनिर्भरता के बारें में बात करना बेमानी होगी। जहाँ आम जनता एक तरफ भौतिक तत्वों की मारी है तो दूसरी तरफ अभौतिक तत्व उसे तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर रहे हैं , ऐसे में वह निर्भर बने भी तो कैसे ? कुदरत की माया देखें कहावत है कि आग लगते ही हवा का तीव्र हो जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया ही है। जहाँ एक तरफ सब पर भारी कोरोना महामारी ने आम जनता की तीन मुख्य जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान को प्रतिबंधित करने में कामयाब रही, तो वहीं दूसरी तरफ प्रकृति ने ओलों, तूफानों, चक्रवातों व भूकम्पों के द्वारा आम जनता को खूब सताया। इन बेकाबू हो चली आग की लपटों में तेल की आहुति ने आम जनता के वर्तमान को भी निगल लिया ऐसे में भविष्य का निर्माण भला यह करे भी तो कैसे ? पेट्रोल व डीजल तेल की कीमतों में लगातार हो रही तीव्र वृद्धि ने भी आगे आकर आम जनता की मूल वृद्धि में भी आखिरी कील ठोक दी । देश में पिछले एक माह से पेट्रोल और डीजल के दाम जिस रफ्तार से अग्रसर हैं कि आम जनता के उपयोग से मीलों दूर निकल चुकी है। इस तीव्र वृद्धि ने अब तक के सारे रिकार्डों को बौना साबित करते हुए आपातकाल की इस धधकती ज्वाला में तेल की आहुति देने का काम किया है।
Read More »महिलाओं के काम पर पड़े हैं बहुत नकारात्मक प्रभाव -डॉo सत्यवान सौरभ
कोरोनावायरस महामारी का महिलाओं के काम पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। खासकर अकेली महिलाओं, विधवाओं, दैनिक मजदूरी करने या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिली है। उनके सामने कामकाज के दोहरे बोझ के साथ ही वित्तीय संकट भी आ खड़ा हुआ है। सबसे दुखदायी बात ये कि उन्हें दूर-दूर तक आशा की कोई किरण भी नज़र नहीं आ रही।
इस पुरुषवादी दुनिया में आम तौर पर घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चौका, बच्चों की देख-रेख और कपड़े धोने के साथ रसोई का काम महिलाओं के जिम्मे होता है। हालांकि अब कामकाजी दंपतियों के मामले में यह सोच बदल रही है। लेकिन फिर भी ज्यादातर परिवारों में यही मानसिकता काम करती है। नतीजतन इस लंबे लॉकडाउन में ज्यादातर महिलाएं कामकाज के बोझ तले पिसने पर मजबूर हैं। भारतीय महिलाएं दूसरे देशों के मुकाबले रोजाना औसतन छह घंटे ज्यादा ऐसे काम करती हैं जिनके एवज में उनको पैसे भी नहीं मिलते। जबकि भारतीय पुरुष ऐसे कामों में एक घंटे से भी कम समय खर्च करते हैं और ज्यादा रुतबा रखते हैं।