यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सियासती घमासान मचा है, हर पार्टी के कार्यकर्ता अपने लीडर की तारीफ़ों के पूल बाँधते जनता के दिमाग को धोने की कोशिश कर रहा है। जब जब किसी भी राज्यों में चुनावी माहौल होता है तब परिस्थिति युद्ध वाली बन जाती है।
अवाम को एक बात समझ लेनी चाहिए की उनको कैसा नेता चाहिए? अपनी सोच और पसंद से अपना नेता चुनना चाहिए। न चंद पैसों के बदले वोट देने चाहिए, न एक बोतल दारु के बदले, न धर्म के नाम पर, न जात-पात के नाम पर। धर्म और जात-पात पर वोट बटोरने वालों को जनता को एकमत होकर बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए।
लेख/विचार
किसान आंदोलन क्या वाकई समाप्ति पर?
करीब एक साल के लंबे अंतराल के बाद किसान आंदोलन का स्वर धीमा पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की है और एमएसपी से जुड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की है। हालांकि किसानों ने आंदोलन को अभी समाप्त नहीं किया है और यह जीत किसानों की अभी अधूरी ही है क्योंकि जब तक एमएसपी पर कोई कानून नहीं बन जाता है तब तक उनका संघर्ष अधूरा ही है।
Read More »सोशल मीडिया : संबंधों का सबसे बड़ा दुश्मन
प्रकृति का नियम है, जो पैदा होता है, वह मरता है। यह तमाम संदर्भों में सच साबित होता है। थोड़ा दूर तक सोचें तो यह भी कहा जा सकता है कि मोबाइल भी कुछ ऐसा ही है। समझबूझ कर उपयोग करें तो मोबाइल बहुत काम की चीज है। पर बुद्धि को ताक पर रख कर इसका धड़ाधड़ उपयोग करें तो पतन के लिए यह काफी है। अभी कुछ दिनों पहले ह्वाटसएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम 7-8 घंटे बंद रहा तो हाहाकार मच गया। थोड़ी देर के लिए लोगों को लगा कि जैसे ऊनका सर्वस्व लुट गया है। मजा तो तब आया, जब वह फिर से चालू हुआ। उसके बाद जो मिम्स फैलने लगा, वह मजेदार था। पर कुछ हद तक सटीक भी था।
Read More »चिंताजनक है जीका वायरस का हमला
उत्तर प्रदेश का कानपुर जिला जीका वायरस और डेंगू का हॉटस्पॉट बना है। कानपुर के अलावा पिछले कुछ दिनों में कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आ चुके हैं और अब फतेहपुर में भी जीका का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड में है।
देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में भले ही लगातार कमी देखी जा रही है लेकिन पिछले कुछ महीनों से देश के कई राज्यों में डेंगू के बढ़ते मामलों के साथ कुछ दिनों से जीका वायरस ने भी नई चिंता को जन्म दिया है। उत्तर भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में जीका वायरस के मामले जिस तेजी के साथ सामने आए हैं, उससे चिंता का माहौल बनना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश के कानपुर, कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आए हैं और अब फतेहपुर जिले में भी जीका वारयस का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा है।
बच्चों को संस्कारित करना माता-पिता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
“बच्चों में संस्कार, नैतिक शिक्षा, अनुशासन और व्यावहारिक ज्ञान समाज में उनको एक अच्छे इंसान बनने के लिए अहम भूमिका निभाता है।”
जब बच्चा जन्म लेता है तो एक अबोध बालक होता है और जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसके परिवार का अनुशरण करते हुए हुए वह अपना आचरण करता है। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एवं शुरुवाती सीख अपने घर एवं आस-पड़ोस के वातावरण से ही सीखता समझता है। बच्चे का परिवार ही पहली पाठशाला होती है सबसे ज्यादा बच्चा अपने घर पर ही सीखता है। माता-पिता एवं परिवार के लोग ही उनके प्रथम गुरु होते हैं; इसलिए बच्चों को पुस्तकीय शिक्षा के साथ के साथ-साथ संस्कार, अनुशासन एवं नैतिक शिक्षा बहुत ज्यादा जरूरी हो जाती है।
नाटक, रंगमंच, थिएटर और साहित्य उत्सव को पुनर्जीवित करना समय की मांग
सरकारी संरक्षण, निजी संगठनों, निजी टीवी चैनलों, नागरिक समाज को आगे आने की ज़रूरत
समाज में व्याप्त कई बुराइयों, भेदभावपूर्ण प्रथाओं से उबारने, जागरूकता लाने तथा वर्तमान आधुनिक अभियानों का लाभ पहुंचाने में नाटकों, रंगमंच, थिएटर की महत्वपूर्ण भूमिका – एड किशन भावनानी
भारत को आदि-अनादि काल से ही संस्कृति, सांस्कृतिक, साहित्य और नाटकों का अनमोल गढ़ माना जाता है। जो हजारों वर्षों से भारत में परंपरा चली आ रही है परंतु पिछले एक-दो दशकों से हम देख रहे हैं कि पाश्चात्य संस्कृति युवाओं पर भारी होते जा रही है। हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति को पुराना ज़माना कहकर नज़रअंदाज किया जा रहा है और इसे अपनाने वालों को ओल्डमैन का दर्ज़ा देकर किनारे करने की प्रथा चल पड़ी है।
कुप्रथा का अग्नि संस्कार करो
मत करो कर्ज़ लेकर शादियां, इतना खर्च किस लिए, समाज को ये दिखाने के लिए की देखो हमारे पास कितनी संपत्ति है? या देखो हमने कितनी शानो शौकत से अपने बच्चों की शादी की। जब की आपकी शानों शौकत को देखने कोई नहीं आता।
किसी की शादी में कितने लोगों असल में पारिवारिक संबंध निभाने के तौर पर जाते है? शादी में आए करीब सत्तर प्रतिशत लोग दुल्हा-दुल्हन की शक्ल तक नही देखते, उनका नाम तक नहीं जानते। अक्सर विवाह समारोहों में आए लोगों को ये पता नहीं होता कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है उनको सज-धज कर आने में और स्वादिष्ट खाना खाने में ही दिलचस्पी होती है।
तीनों कृषि कानूनों की वापसी- किसकी जीत किसकी हार!!
तीनों कृषि कानून वापसी का फैसला चौंकाने वाला!! – कहीं खुशी कहीं गम – परिणामों के लंबे कयासों का दौर शुरू – एड किशन भावनानी
भारत में करीब 5 दशक पहले 1974 में रोटी फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था, ये तो पब्लिक है ये सब जानती है, ये तो पब्लिक है, ये चाहे तो सर पे बिठाले, चाहे फेंक दे नीचे!! साथियों 19 नवंबर 2021 को सुबह 9 बजे कुछ मामला ही अलग नजर आया!! पब्लिक को कुछ उम्मीद ही नहीं थी, पब्लिक कुछ जानती नहीं थी, पर पीएम ने अपने संबोधन में वह करके दिखाया जिसकी किसी को दूर-दूर तक उम्मीद नहीं थी!! तीनों कृषि कानूनों की वापसी का चौंकाने वाला निर्णय की जानकारी!! ऐसा चौंकाने वाला निर्णय जो गुरु नानकदेव के प्रकाशपर्व और देव दीपावली के पावन पर्व पर किसान भाइयों के लिए खुशियों की सौगात!! नायाब तोहफे!! की घोषणा फिर क्या! हर न्यूज़ टीवी चैनल पर धमाकेदार ब्रेकिंग न्यूज़ का दौर जो शुरू हुआ वह अभी तक जारी है।
अग्नि-5 मिसाइल से भयभीत हुआ चीन
सम्प्रति देश की सामरिक तैयारियां तेजी से मजबूती की ओर बढ़ रही हैं। 28 अक्टूबर को भारत ने अपनी मिसाइल मारक क्षमता में इजाफा करते हुए सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफलता पूर्वक परीक्षण किया। इस बार का परीक्षण रात में किया गया जिससे रात्रिकालीन मारक क्षमता को परखा जा सके। अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक ओडिशा में एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से रात्रि में 8 बजे से कुछ समय पहले यह परीक्षण किया गया जो कि सफल रहा।
Read More »चिकित्सा पेशे से जुड़े व्यक्ति में नैतिकता, संवेदनशीलता, सेवा, समर्पण का भाव अत्यंत ज़रूरी
कोविड-19 की भयंकर त्रासदी से चिकित्सा पेशे से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव से दो-चार हुए कोविड पीड़ितों की दासतां का स्वतः संज्ञान नीति निर्धारकों को लेना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से खासकर भारत में आदि-अनादि काल से ही चिकित्सक पेशे से जुड़े व्यक्तियों को खासकर डॉक्टरों को एक भगवान ईश्वर अल्लाह का दर्जा दिया हुआ है। हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में और सैकड़ों वर्षो पूर्व डॉक्टरों को वैद्य के रूप में जाना जाता था। उस समय भी हम उन्हें ईश्वर अल्लाह ही दर्जा देते थे। क्योंकि उनमें समर्पण का भाव, नैतिकता, संवेदनशीलता, सहयोग और सेवा का भाव कूट-कूट कर भरा रहता था। उस समय पैसों की इतनी अहमियत नहीं थीं, जितनी सेवा, सहयोग, समर्पण का भाव था।