Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

पड़ोसी मुल्कों में बँट रही चीन की चाशनी भारत के लिए खतरनाक संदेश

एलएसी पर जारी तनाव के बाद चीन ने आर्थिक कूटनीति के आधार पर भारत के पड़ोसी मुल्कों को फसाना तेज कर दिया है। श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान का आर्थिक दोहन करने के बाद अब चीन की निगाहें भारत के एक और पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश पर लगी हैं। चीन एक के बाद एक भारतीय पड़ोसी मुल्कों पर जिस तरह अपनी पकड़ मजबूत करने में तन-मन-धन तीनों से तेजी दिखा रहा है उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन शांति और समझौते की आड़ में कुछ बड़ा करने के फिराक में लगा है। चीन का पाकिस्तान की तरफ झुकाव पहले से ही जग-जाहिर है उसके बाद उसने श्रीलंका में निवेश बढ़ा कर श्रीलंका को भी अपने पाले में लगभग शामिल ही कर लिया है। वह यहीं नहीं रुकता उसने अपनी कूटनीतिक चालों से नेपाल व भारत के रोटी-बेटी के रिश्ते में भी दरार बना दिया है।

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सार्वजनिक परिवहन को ज्यादा साफ-सुरक्षित बनाना होगा – डॉo सत्यवान सौरभ

अब परिवहन सड़कों पर लौट आया है, लेकिन जब तक कोरोनोवायरस संक्रमण बढ़ रहा है, चीजें सामान्य से बहुत दूर रहेंगी। अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने और शहरों में कामगारों को कार्यस्थल पर लाने में सार्वजनिक परिवहन एक प्रमुख माध्यम है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के समय में बसों, ट्रेनों की यात्रा को सुरक्षित बनाने की जरूरत महसूस हो रही है। कोविड-19 महामारी से प्रभावित पूरी दुनिया में सार्वजनिक परिवहन नये रूप में सामने आ रहा है। पहले जैसा होने में सालों लग जायेंगे। अब सवाल यही है क्या हम पहले जैसे परिवहन के साधनों का इस्तेमाल कर पाएंगे और कब से कर पाएंगे।
जब तक ये सामान्य नहीं हो जाता तब तक क्या सावधानियां रखने की जरूरत है और वायरस के साथ रहने वाले ’की वास्तविकता के अनुरूप सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में बदलाव लाने की तत्काल आवश्यकता है? कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए भारत में परिवहन का पूर्ण बंद था।

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कोरोना से जंग में योग की भूमिका

जैसा कि हम सब जानते हैं कि अभी तक कोविड -19 रूपी खतरनाक वायरस का पूरी दुनिया में कोई मान्यता प्राप्त इलाज नहीं मिल पाया है। यह वैश्विक महामारी दिन-प्रतिदिन प्रचण्ड रूप धारण करती जा रही है। एक के बाद एक नये और बड़े आंकड़े इस बीमारी के परिपेक्ष में देखने को मिल रहे हैं। लोगों के मन में इस बीमारी को लेकर एक अजीब सा खौफ घर कर चुका है लोग बेहद डरे हुए हैं। इस वैश्विक महामारी ने जहाँ एक तरफ लोगों के मुँह से निवाला छीना तो दूसरी तरफ लोगों की जिंदगियों से भयानक खेल भी खेलती जा रही है। दुनिया भर के डॉक्टर वैद्य इसका इलाज तलाशने में लगे हैं मगर अब तक असफलता ही हाथ लगी है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह वायरस कितना खतरनाक व जानलेवा है।

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हर्ड इम्युनिटी के भरोसे तो पूरा भारत कोरोनामय हो जायेगा -प्रियंका सौरभ

भारत में जैसे-जैसे कोरोना का प्रसार तेज हो रहा है, तो हर्ड इम्यूनिटी को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। हर्ड इम्यूनिटी यानी अगर लगभग 70-90 फीसद लोगों में बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो बाकी भी बच जाएंगे। लेकिन इसके लिए वैक्सीन जरूरी है। क्या कोरोना वैक्सीन की अनुपलब्धता में हर्ड इम्युनिटी अपना काम कर पाएगी?
कोरोना की शुरुआत में ब्रिटेन ने हर्ड इम्यूनिटी का प्रयोग करने की कोशिश की। हालांकि वहां के तीन सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया और कहा कि सरकार को सख्त प्रतिबंधों के बारे में सोचना चाहिए, ना कि ‘हर्ड इम्यूनिटी’ जैसे विकल्प के बारे में, जिससे बहुत सारे लोगों की जान को अनावश्यक खतरा हो सकता है। मगर ब्रिटेन की सरकार ने कुछ दिनों तक अपने प्रयोग जारी रखे और वहां कोरोना ने भीषण तबाही मचाई।

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समाज में आज भी है सामन्तवाद का दबदबा

हमें समाज में आज भी सामन्तवादी झलक देखने को मिलती है। शादी विवाह या संबध हैसीयत के हिसाब से नहीं होता बल्कि व्यवहार से होता है, पर क्या यह व्यावहारिक है..?
हमारे यहां प्राचीन काल से ही माता-पिता अपने पुत्र-पुत्री को एक नया संसार बसाने में मदद करने के लिए अपनी ओर से सहायता देते आए हैं। यह एक स्वाभाविक मानव इच्छा होती है जिसके कारण लोग अपने बच्चों के प्रति स्नेह और अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरूप उन्हें भेंट देते हैं।
कहा जाता है कि आजादी के इन सत्तर सालों में भारत ने बहुत प्रगति की है, लेकिन क्या इस प्रगतिशील देश में महिला की स्थिति में कुछ बदलाव आया है…?
एक ओर तो नारी सेना, प्रशासनिक सेवाओं, राजनीति और न जाने कहां-कहां कदम रख रही है और दूसरी ओर, दहेज के लोभी महिषासुर उसी नारी को जिन्दा जला डालते हैं। उपभोक्तावाद के इस दौर ने क्या विवाह को एक मण्डी नहीं बना दिया है जहां हर कोई अपनी बोली लगवाने के लिए सजा-धजा खड़ा है?

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चीन के खिलाफ डिप्लोमैटिक सर्जिकल स्ट्राइक की माँग हुई तेज

भारत-चीन झड़प में भारत के २० जवानों की शहादत ने पूरे देश में भूचाल ला दिया है। देश का हर नागरिक चीन से बदला चाहता है। सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर बस एक ही बात की गूँज सुनाई पड़ रही है कि अब चीन के खिलाफ भी डिप्लोमैटिक सर्जिकल स्ट्राइक होना ही चाहिए। चीन ने हर बार की तरह बुजदिल माफिक इस बार भी पीठ में छूरा घोपने का काम किया है उसकी इस नापाक हरकत का जवाब अब भारत सरकार को जरूर देना चाहिए। चीन की हरकतों के मद्देनजर अब वक्त आ गया है कि चीन के खिलाफ अब आर-पार जरूरी, हालांकि इस पर जल्दबाजी में कोई फैसला लेना गलत होगा। इस पर गहन विचार-विमर्श के बाद ही कोई कार्रवाई की जाए ताकि आने वाले समय में भारत को कोई भी आँख दिखाने से पहले हजार बार सोचे। लद्दाख के गलवान घाटी में चीन की घिनौनी करतूत उड़ी-पुलवामा से कहीं ज्यादा संगीन है।
हालांकि इस घटना के बाद केंद्र सरकार के बयान “हम किसी को उकसाते नहीं हैं मगर हमें कोई उकसाए यह हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं, हम इसका जवाब देने में पूर्णतः सक्षम हैं ” को देखते हुए ऐसा लगा जैसा फरवरी २०१९ में पुलवामा आतंकी हमले के बाद आया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग और मित्रता का भाव रखते हैं मगर जब भी मौका आया है हमनें अपनी अखंडता और संप्रभुता के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया है यह १९६२ का भारत नहीं !

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एक कटु सत्य-चेहरे की सुंदरता से ही नहीं चलती ज़िन्दगी

जिंदगी में सुंदरता के अलावा भी और बहुत सारा कुछ है, जिसके जिन्दगी में होने से ही जिंदगी का कोई मर्म निकलता है, कोई सार समझ में आता है।
सौंदर्य की जब बात छिड़ती है तब स्त्रियाँ याद आती हैं और स्त्री की बात जहाँ आती है, उसके सौन्दर्य की चर्चा स्वत: जुड़ जाती है। मानो, स्त्री सौंन्दर्य का पर्याय है, लेकिन अब वक्त बदला है।
हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी पैठ बनाई है। आज की नारी अपने सौंन्दर्य से ज्यादा अपनी योग्यता और काबिलियत की प्रशंसा सुनना अधिक पसंद करती है, क्योंकि अब सुन्दरता के मायने बदल गए हैं। सच भी है, अब नारी सिर्फ श्रृंगार की व्याख्या बन उसमें ही सिमट कर रहना नहीं चाहती।
वैसे सुंदरता के मापदंण्ड क्या हैं…??
यदि स्त्री को अन्तर्दृष्टि से देखो तो दुनियां की हर एक स्त्री सुंदर है… विशेष है। मैं तो समझती हूँ सौंन्दर्य की प्रतियोगिता जीतने वाली स्त्री जितनी सुंदर है, एक श्रमिक नारी भी, जिसके हाथ मिट्टी से सने और चेहरे पर धूल की परत होती है,, उतनी ही सुंदर है।
संसार का हर मनुष्य जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक स्त्री के कईं रूप और स्वरूपों, यथा माँ, बहन, बीबी, बेटी और मित्र के स्नेह, ममता और प्यार की छत्रछाया और संरक्षण में जीवन व्यतीत करता है,, आदमी से इंसान बनता है, तो हर रिश्ते को बखूबी निभाती वो स्त्री बदसूरत और किसी के लिए बोझ कैसे हो सकती है..??

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आज भी महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं रानी लक्ष्मीबाई

आसान नहीं होता एक महिला होने के बावजूद पुरूष प्रधान समाज मेंविद्रोही बनकर अमर हो जाना। आसान नहीं होता एक महिला के लिए एक साम्राज्यके खिलाफ खड़ा हो जाना।
आज हम जिस रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धा पुष्प अर्पित कर रहे हैं वो उस वीरता शौर्य साहस और पराक्रम का नाम है जिसने अपने छोटे से जीवन काल में वो मुकाम हासिल किया जिसकी मिसाल आज भी दुर्लभ है। ऐसे तो बहुत लोग होते हैं जिनके जीवन को या फिर जिनकीउपलब्धियों को उनके जीवन काल के बाद सम्मान मिलता है लेकिन अपने जीवन कालमें ही अपने चाहने वाले ही नहीं बल्कि अपने विरोधियों के दिल में भी एकसम्मानित जगह बनाने वाली विभूतियां बहुत कम होती हैं। रानी लक्ष्मीबाई ऐसीही एक शख्सियत थीं जिन्होंने ना सिर्फ अपने जीवन काल में लोगों को प्रेरितकिया बल्कि आज तक वो हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एक महिला जो मात्र 25 वर्ष की आयु में अपने पति और पुत्र को खोने के बाद भी अंग्रेजों को युद्ध के लिए ललकारने का जज्बा रखती हो वो निसंदेह हर मानव के लिए प्रेरणास्रोत रहेगी। वो भी उस समय जब 1857 की क्रांति से घायल अंग्रेजों ने भारतीयों पर और अधिक अत्याचार करने शुरू कर दिए थे और बड़े से बड़े राजा भी अंग्रेजों के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। ऐसे समय में एक महिला की दहाड़ ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।

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जब अस्पताल ही हो बीमार तो बीमार कहाँ जाए

आज इस कोविड -19 नामक वैश्विक महामारी ने विकसित व विकासशील सभी देशों को लगभग घुटने पर ला दिया है। इस वैश्विक महामारी के चलते चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। लोग की आँखों में कोरोना के खतरे का डर साफ-साफ झलक रहा है। विश्व स्तर पर अगर नजर डालें तो अब तक कोरोना वायरस से ७६६५०१७ लोग संक्रमित हो चुके हैं। वहीं मरने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है इससे ४२५६०९ लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कोविड -19 का संक्रमण अब बहुत तेजी बढ़ रहा है इसका बस एक ही कारण है कि आखिर कब ज़िन्दगी की गाड़ी को रोके रखा जाए क्योंकि अगर हम गतिशीलता नहीं दिखाएंगे तो भूख से मर जाएंगे। ऐसे में जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा जिससे कम से कम दो वक्त की रोटी तो नसीब हो सके।

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पानी से सस्ता तेल, भारत में रेट आसमान पर- डॉo सत्यवान सौरभ

लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर में लोग घरों में है। तेल की मांग में कमी की यह भी एक बड़ी वजह है। दुनिया के पास फिलहाल इस्तेमाल की ज़रूरत से ज़्यादा कच्चा तेल है और आर्थिक गिरावट की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में कमी आई है। तेल के सबसे बड़े निर्यातक ओपेक और इसके सहयोगी जैसे रूस, पहले ही तेल के उत्पादन में रिकॉर्ड कमी लाने पर राज़ी हो चुके है। अमरीका और बाकी देशों में भी तेल उत्पादन में कमी लाने का फ़ैसला लिया गया है। लेकिन तेल उत्पादन में कमी लाने के बावजूद दुनिया के पास इस्तेमाल की ज़रूरत से अधिक कच्चा तेल उपलब्ध है। समंदर और धरती पर भी स्टोरेज तेज़ी से भर रहे हैं। स्टोरोज की कमी भी एक समस्या बन रही है। साथ ही कोरोना महामारी से बाहर आने के बाद भी दुनिया में तेल की मांग धीरे-धीरे बढ़ेगी और हालात सामान्य होने में लंबा वक़्त लगेगा। क्योंकि यह सब कुछ स्वास्थ्य संकट के निपटने पर निर्भर करता है।

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