Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

अवधेश के सहारे बीजेपी के हिंदुत्व को चुनौती देगी सपा

समाजवादी पार्टी अयोध्या लोकसभा सीट से सपा की जीत को एक बड़ा सियासी मुद्दा बनाने का हर जतन कर रही है। जाने-अंजाने वह बीजेपी से लड़ते-लड़ते प्रभु श्रीराम को ‘चुनौती’ देने लगी हैं। सपा सांसद धमेन्द्र यादव का वह कृत्य कैसे भुलाया जा सकता है जब संसद के भीतर वह अयोध्या से विजय हुए अवधेश प्रसाद की शान में ‘जय अवधेश’ के नारे लगाते हैं। वह कहीं न कहीं ऐसा करके जय श्री राम के समानांतर अवधेश प्रसाद को खड़ा दिखाने की साजिश कर रहे थे। इतना नहीं सपा द्वारा सांसद अवधेश को अयोध्या का राजा बताया जा रहा था, जबकि समाजवादी जानते हैं कि अयोध्या के राजा प्रभु श्री राम थे। यह बात आज तक निर्विवाद सत्य है। इसी तरह उनको सपा संसद में सबसे आगे की कुर्सी पर बैठाती है, जबकि समाजवादी पार्टी के अन्य दो-तीन बार तक के सांसद अवधेश प्रसाद के पीछे की कुर्सियों पर बैठे नजर आते हैं। हालात यह है कि अब तो विपक्ष अवधेश प्रसाद को डिप्टी स्पीकर का चुनाव लड़ाने की भी बात कहने लगा है,जबकि वह पहली बार लोकसभा चुनाव जीत कर आये हैं। ऐसा लगता कि अयोध्या को समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी एजेडे में शामिल कर लिया है। ऐसा करके वह बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड को चुनौती तो अपने पीडीए वाले एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहते हैं। अवधेश दलित समाज से आते हैं,इसके जरिये भी वह दलितों को बड़ा संदेश देना चाहते हैं। यह सिलसिला फिलहाल थमने वाला नहीं लगता है। अभी दस सीटों पर विधान सभा चुनाव होने हैं। सपा देखना चाहती है कि इसका उसे चुनाव में कितना फायदा मिलेगा।

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यूपी में राहुल तो अन्य राज्यों में अखिलेश तलाश रहे हैं संभावनाएं

उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से राहुल गांधी की जीत के बाद यूपी में पार्टी के लिये नई संभावनाएं तलाश रहा कांग्रेस आलाकमान और गांधी परिवार एक बार फिर प्रदेश में विस्तार के लिये कमजोर हो चुके संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। राहुल गांधी ने भले ही समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के सहारे रायबरेली से जीत हासिल की हो, लेकिन वह अपनी जीत को इस तरह से प्रचारित कर रहे हैं जैसे यूपी की जनता कांग्रेस को फिर से बीजेपी के विकल्प के रूप में देखने लगी है। राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से त्यागपत्र देकर रायबरेली सीट का संसद में प्रतिनिधित्व करने का निर्णय कर कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है, अब यह उर्जा कब तक बरकरार रहेगी कोई नहीं जानता है। इस बार समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर चुनाव लड़ रही कांग्रेस को यूपी में 06 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यूपी को लेकर राहुल गांधी की चपलता को आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। साढ़े तीन दशक से उत्तर प्रदेश में अपनी खोए जनाधार को तलाश रही कांग्रेस को अबकी लोकसभा चुनाव के नतीजों से नई उम्मीद जागी है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की निगाह अब उत्तर प्रदेश पर सबसे अधिक है। बीजेपी ने आम चुनाव में काफी खराब प्रदर्शन किया था, इससे भी कांग्रेस में खुशी का माहौल है।
बहरहाल, यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि समाजवादी पार्टी ने यूपी में कांग्रेस को वह सब कुछ दे दिया है जिसकी उसे वर्षाे से दरकार थी, लेकिन अब अखिलेश इसकी कीमत वसूलना चाहते हैं। अखिलेश भी कांग्रेस से इस बात की अपेक्षा कर रहे हैं कि वह भी यूपी में बाहर उन राज्यों में उसको हिस्सेदारी दे जहां जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं।

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अच्छा रिश्ता मिलना समस्या क्यों ?

कहते हैं कि रिश्ते आसमान पर बनते हैं। जमीन पर तो उनका सिर्फ मिलन होता है और इस मिलन को भाग्य में लिखे गए जीवनसाथी को तलाश करने में माता-पिता और निकट संबंधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन आज के इस निरन्तर परिवर्तित युग में यह दायित्व मैरिज ब्यूरो और इन्टरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने उठा लिया है। इतनी सुविधाएं उपलब्ध होने पर भी आज अच्छा रिश्ता मिलना एक गंभीर समस्या बन गया है। आखिर क्या कारण है जिनके चलते अच्छे रिश्तों का अकाल पड़ गया है? आज इसी समस्या के कारण असंख्य अविवाहित लड़कियां विवाह का अरमान लिए प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर जाती हैं। जहां पहुंचकर उन्हें असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है कभी-कभी तो उन्हें विवाहित पुरुष की दूसरी पत्नी बनने की पीड़ा सहनी पड़ती है। इतना ही नहीं कुंवारे होने पर भाई-भावजों के तानों के साथ समाज के व्यंग्य को भी सहना पड़ता है। हमारे समाज में रिश्ते पहले भी हुआ करते थे, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या कारण है कि आज अच्छा रिश्ता मिलना असंभव सा हो गया है ?

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आखिर लगा ही दी नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर हैट्रिक

जैसा कि पूर्वानुमान था, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने हैट्रिक लगाते हुए 9 जून को तीसरी बार भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली। यद्यपि विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन इण्डिया ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन को कड़ी टक्कर दी है। जिससे भाजपा का 400 पार का स्वप्न साकार नहीं हो सका। इसके कारणों पर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को गहन विचार करना पड़ेगा। क्योंकि पार्टी के चाणक्यों ने 400 से अधिक सीटें प्राप्त करने हेतु जो रणनीति बनायी थी, वह कहीं न कहीं विफल साबित हुई। जिसके चलते भाजपा को बहुमत से बहुत कम 240 सीटें ही प्राप्त हुईं। परन्तु उसके नेतृत्व वाले गठबन्धन राजग ने 292 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। जनवरी 2023 से फरवरी 2024 के बीच विभिन्न एजेंसियों द्वारा कराये गये चुनावी सर्वेक्षणों में भी नरेन्द्र दामोदर दास मोदी हैट्रिक लगाते हुए दिखाई दे रहे थे। जो एकदम सही साबित हुआ। लेकिन सीटों को लेकर सर्वेक्षणों का आकलन गलत सिद्ध हुआ। देश की 13 अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कराये गये सर्वेक्षणों के आधार पर भाजपा गठबन्धन को 44.30 प्रतिशत वोट के साथ 341 के आसपास सीटें मिलने की सम्भावना थी।

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बंपर नौकरियों के सहारे 2027 में विपक्ष को ‘बेरोजगार’ करेंगे योगी

भारतीय जनता पार्टी 2024 जैसे चुनावी नतीजे 2027 विधानसभा चुनाव में नहीं देखना चाहती है। खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिये अभी से सरकार के पेंच कसना शुरू कर दिये हैं। संगठन स्तर पर भी काम चल रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव 2027 के शुरुआती तीन-चार महीनों में सम्पन्न होना है। इस हिसाब से सरकार के पास तीन साल से भी कम का समय बचा है। लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी खराब छवि वाले विधायकों का टिकट काटने में भी परहेज नहीं करेगी। गौरतलब हो, हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से काफी कम सीटें मिली थीं। चुनाव आयोग ने जो आकड़े जारी किये हैं उसके अनुसार यूपी में 80 लोकसभा सीटें जिसके अंतर्गत 403 विधान सभाएं आती हैं, वहां अबकी से बीजेपी 162 विधान सभा क्षेत्रों में समाजवादी और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी से पिछड़ गई थी। इन 162 विधान सभा क्षेेत्र के विधायकों पर भी गाज गिर सकती है।
वहीं 2027 में विपक्ष एक बार फिर से बेरोजगारी को मुद्दा नहीं बना पाये इसके लिये योगी ने सभी खाली पड़े रिक्त पदों को भरने के लिये बम्पर नौकरियां निकाली हैं।

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2024 का जनादेशः मायने अनेक

लोकसभा चुनाव का शोर थम गया है। अब नतीजों की समीक्षा का दौर है। सभी दलों के नेता अपनी-अपनी खामियां और खूबियों का आकलन कर रहे हैं। मगर आम आदमी के नज़रिये से देखा जाए तो यह चुनाव कई मायनों में निचले से निचले स्तर पर जाता दिखा। तमाम दलों के नेता उनके समर्थक बार-बार अपनी जुबान से जहर उगलते रहे। जाति, धर्म, राम मंदिर, आरक्षण, मुस्लिम आरक्षण, संविधान, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, ईवीएम, किसान से लेकर वो जिहाद, मंगलसूत्र, मुजरा, कानून व्यवस्था, बाहुबली, मिट्टी में मिल गये माफिया, मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सब छाये रहे। एनडीए सरकार की सभी योजनाओं में से प्रति व्यक्ति 5 किलो मुफ्त अनाज सबसे प्रभावी और दूरगामी प्रतीत हुआ। जाति या समुदाय से इतर दूरदराज के इलाकों में जितने भी लोगों से बात हुई, उनमें से अधिकांश ने माना कि उन्हें मुफ्त अनाज मिला है। जरूरतमंदों ने इसके लिए सरकार की खूब सराहना की। इसी प्रकार प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान स्वास्थ्य योजना का फायदा उठाने वाला एक बड़ा वर्ग बीजेपी की हौसला अफजाई करता रहा। गुलाम कश्मीर, पाकिस्तान और चीन की भी खूब बात हुई।

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संघ के प्रति कम होता मोदी का समर्पण भाव

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की उत्तर प्रदेश में जो फजीहत हुई है, उसका ठीकरा एक-दूसरे के सिर फोड़ने की राजनीति के चलते राज्य में बीजेपी नेताओं के बीच आपसी वैमस्यता और गुटबाजी बढ़ती जा रही है। गुटबाजी का आलम यह है कि यह किसी एक स्तर पर नहीं, नीचे से लेकर ऊपर तक तो दिखाई पड़ ही रही है, इसके अलावा इसकी तपिश से दिल्ली भी नहीं बच पाया है। बल्कि राजनीति के कई जानकार और पार्टी से जमीनी स्तर से जुड़े नेता और कार्यकर्ता भी इस बात से आहत हैं कि अबकी से टिकट वितरण में खूब मनमानी की गई, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी टिकट बंटवारे के तौर-तरीको से आहत दिखाई दे रहा है। बस फर्क यह है कि यह लोग सार्वजनिक रूप से ऐसा कुछ नहीं बोल रहे हैं जिससे विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिल जाये। लोकसभा चुनाव में 80 की 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी आधी सीटें भी नहीं जीत पाई। भाजपा की करारी हार के पीछे भले ही कई कारण गिनाए जा रहे हों, पर संघ से दूरी भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

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किसानों की राहों में कीलें गाड़ने वाले मोदी की राह में अब हर कदम पर काँटे!

शायद आपको याद होगा कि कृषि के सम्बन्ध में बनाये गये काले कानूनों व फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए बनाये गये कानूनों सहित अन्य कई मांगों को लेकर विरोध करने वाले देश के आन्दोलनकारी किसानों को रोकने के लिये नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की सीमावर्ती सभी सड़कों पर खतरनाक कीलें, कंटीले तार, कई लेयर की पक्की बैरिकेडिंग लगवा दीं थी। इसके साथ ही कई सड़कों को खुदवा दिया गया था और कई सड़कों पर पक्की दीवारें तक खड़ी करवा दीं थीं। सुरक्षा बलों के जवानों की तैनाती भारी संख्या में की गई थी। समय-समय पर लाठी चार्ज किया गया था और बर्बरता की सारी हदें ‘मोदी’ ने पार करवा दीं थीं। उस समय ‘मोदी की मंशा’ थी कि किसी भी कीमत पर देश के आन्दोलनकारी किसान, दिल्ली में ना घुसने पावें।
उस समय ऐसे नजारे देखने को मिले थे, जैसे कोई दुश्मन देश, दिल्ली पर हमला करने वाला था और उसी हमले को रोकने की तैयारी की गई थी। उस समय 6 लेयर की बैरिकेडिंग लगाई गई थी। इसके अलावा किसानों को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अस्थाई जेलों को भी तैयार करवा दिया था। कई क्षेत्रों को छावनी में तब्दील करवा दिया था।
इस तैयारी के चलते ‘मोदी’ उस समय सफल भी हुये और पंजाब, हरियाणा सहित देश के अनेक राज्यों के किसानों को महीनों तक कठिन समय में भी अनेक कठिनाइयों का दर्द झेलना पड़ा था।

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400 पार नहीं..किसी तरह नैया पार..।

केंद्र में फिर से गठबंधन की सरकार
नई दिल्लीः राजीव रंजन नाग। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर भाजपा के इस भरोसे का केंद्र था कि 2024 का चुनाव में जीत सुनिश्चित करना राम के हाथों में है। भगवा पार्टी ने राम मंदिर को वोट बटोरने के साधन के रूप में सीमित कर दिया। नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा ने राम मंदिर के लिए सीधे वोट मांगे, लेकिन न केवल अयोध्या बल्कि फैजाबाद में भी हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी के दलित उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने अनारक्षित सीट पर भाजपा के सबसे पुराने नाम लल्लू सिंह को 54,567 मतों से हरा दिया। यहां राम मंदिर कार्ड के विफल होने का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है।
वाराणसी में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर (1,52,513 वोट) राहुल गांधी के रायबरेली (3,900,30 वोट) से आधा है। यह किशोरी लाल शर्मा द्वारा स्मृति ईरानी से कांग्रेस के लिए अमेठी वापस छीने जाने से भी कम है। शर्मा 1,67,196 मतों से जीते। इससे मोदी द्वारा नामांकन दाखिल करने के समय गंगा पर किए गए दिव्यता के दावे को समाप्त करने में मदद मिलेगी।

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‘‘बैसाखियों के सहारे चलेगी बादशाहत’’

किसी भी देश के ‘लोकतंत्र’ जिसका अर्थ है, वह शासन-प्रणाली जिसमें वहाँ की जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के हाथ में ‘सत्ता’ होती है, इसी लिये उसे ‘जनतंत्र’ की भी संज्ञा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है, लेकिन होता ठीक उलट है, क्योंकि जैसे ही ‘मतदाता’ अपने ‘मत’ का प्रयोग कर लेते हैं, वह (मतदाता) जनता में शुमार हो जाता है और हाँथ-पैर छू कर, मिमयाकर, गिड़गिड़ाकर आदि हथकंडे अपना कर मतदाताओं का मत अपने पक्ष में लाकर अपने सिर विजयश्री का ‘तमगा’ हासिल कर लेने वाला ‘व्यक्ति’ देखते ही देखते अपने आपको ‘खास’ बना लेता है। इस के बाद इन ‘खास’ व्यक्तियों की एक राय शुमारी के बाद चाहे राज्य हो या देश, उसकी बागडोर संभालने वाला ‘खास व्यक्ति’ दिखावे के लिये अपने आपको कथित सेवक तो कहता है लेकिन कटु सच्चाई यही है कि उस ‘खास व्यक्ति’ के अन्दर ‘बादशाहत’ ही छुपी होती है।
आज हम बात कर रहे हैं, देश की बादशाहत की। लोकताँत्रिक व्यवस्था के तहत लोकसभा सामान्य निवार्चन-2024 के सामने आये नतीजों ने देश के मतदाताओं ने देश की बादशाहत को बैसाखियों के सहारे चलाने का संदेश दिया है अर्थात अबकी बार किसी राजनैतिक दल के हाँथ में स्पष्ट रूप से ना देकर, ‘समूह’ के माध्यम से (एनडीए अथवा इण्डिया गठबन्धन के माध्यम) चलाने का आधार बनाया है।

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