Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

निजीकरण की ओर बढ़ते सरकारी संस्थान…

सरकारी विभागों के निजीकरण की बात आते ही हम भड़क जाते हैं फिर चाहे वह एयर इंडिया की हो या आजकल रेलवे के निजीकरण को लेकर जो विवाद चल रहा है। निजीकरण क्यों हो रहा है कोई इस बात पर विचार करना ही नहीं चाहता। सरकार व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं ला पा रही है और जिसका आसान विकल्प निजीकरण के रूप में अपना रही है। पहली वजह तो यही है कि अधिकारी वर्ग भ्रष्ट है। वो काम करना ही नहीं चाहते। सुबह 9 से शाम 6 बजे तक की हाजिरी वाली ड्यूटी पूरी कर अपना दिन पूरा कर अपनी तन्ख्वाह जमा करते हैं। ये काम के प्रति जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते। आम आदमी इनकी अकर्मण्यता से त्रसित हो रहा है, हालांकि निजीकरण के बारे में ऐसा तर्क दिया जा रहा है कि यह सिर्फ विशुद्ध मुनाफाखोरी वाली नीति है क्योंकि सुविधाएं तो बढ़ती नहीं लेकिन हर चीज पर अलग से भुगतान का भार बढ़ जाता है।
दूसरी बात रोजगार पर आती है। निजीकरण द्वारा नौकरियां सीमित कर दी जाती है और अनावश्यक लोगों और खर्चों पर नियंत्रण कर लिया जाता है लेकिन निजीकरण के जरिए एक बात देखी जाती है कि जिस काम को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं वह तयशुदा समय सीमा में पूरी हो जाती है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ है। मुफ्तखोरी, घूसखोरी, सामानों की चोरी लाइलाज बीमारी बन कर रह गयी है। अकर्मण्यता इस हद तक बढ़ गई है कि लोगों को सुविधाएं नहीं मिल पाती है और उनकी तकलीफों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। टैक्स भरने के बाद भी आमजन की जेब पर बोझ तो पड़ता ही है। निजीकरण द्वारा इन बातों पर लगाम लग जाती है।
इन बातों पर गौर करने के बाद एक बात सवाल उठता है कि सरकार द्वारा दी गई सेवाओं का लाभ अगर जनता सही ढंग से इस्तेमाल करें तो किसी भी विभाग के निजीकरण की समस्या नहीं आएगी। हम खुद जिम्मेदार हैं निजीकरण व्यवस्था को प्रोत्साहित करने में। आज सरकारी बसें चल रही है जो काफी अच्छी सुविधाएं देती है लेकिन जनता प्राइवेट बस में दुगना भुगतान करके उसमें जाना पसंद करती है। जनता द्वारा सरकारी सुविधाओं के इस्तेमाल से सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा ही साथ में जनता की सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जाएगा। सरकार को भुगतान करके हम देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बना सकते हैं। कुछ सरकारी विभागों की बात छोड़ दें तो कई जगहों पर सुधार भी हुआ है लेकिन इसमें जनता का सहयोग अपेक्षित है। भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के चलते निजीकरण को बढ़ावा मिल रहा हैं। हम विदेशों में जनता को मिल रही सुविधाओं की बात तो करते हैं लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं देते कि वहाँ के लोग भी नियमों का पालन करते हैं। यहाँ जनता ऐसी है ट्रेन में चेन से बंधा मग्गा चुरा कर ले जाते हैं। टू टायर में मिलने वाली नैपकिन, चादर तक चुरा लेते हैं और कोच में ही गंदगी फैलाते हैं।

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जरूरत एक मजबूत विपक्ष की…

कांग्रेस अब भी लोकसभा की चुनावी हार के बाद राहुल के इस्तीफे पर ही बहस-मंथन में जुटी है। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी को अब इससे उबरना चाहिए। कांग्रेस जिस दौर से गुजर रही है, उसमें पार्टी को स्वयं के आंकलन की जरूरत है। आज देश में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है। चुनावी दौर में जो सियासी हथकंडे अपनाए गए वो बड़े अजब-गजब थे। यह जो ढकोसले वाली राजनीति का चलन शुरू हुआ है, उससे आप जनता का दिल नहीं जीत सकते, फिर चाहे वह मंदिर जाने से लेकर यज्ञोपवीत पहनना हो या फिर टोपी पहनना। चाहे वह कोई भी दल हो। आज जनता मुद्दे पर ही बात करना चाहती है।
कर्नाटक में इन दिनों नेताओं के इस्तीफे का दौर शुरू है और गठबंधन टूट रहे हैं, इससे साफ जाहिर होता है कि देश में सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस को सियासी रणनीति बदलने की जरूरत है। यह लोकतंत्र के प्रति उसकी जिम्मेदारी है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी की सत्ता पक्ष की आलोचना के लिये एक मजबूत विपक्ष हो। कांग्रेस के लिये जरूरी है कि अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वह यह जगह भरे। विलाप नहीं, संघर्ष के जरिये। दिखावे की राजनीति से दूर होकर आप काम करिए… लोगों से जमीन पर जुड़िये… एसी कमरे में बैठकर राजनीति नहीं होती… जनता की तकलीफ, दर्द और परेशानियों को समझे। सिर्फ दिखावे की राजनीति के जरिये नहीं। जनता का दिल जीतिए… दूसरे पर कीचड़ उछालने से कुछ नहीं होगा.. अभी सिर्फ जमीं पर पैर जमाइए..खड़े होइए… हमारे भारत को जानिये पहचानिए।

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स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति

बच्चे देश का भविष्य ही नहीं नींव भी होते हैं और नींव जितनी मजबूत होगी इमारत उतनी ही बुलंद होगी। इसी सोच के आधार पर नई शिक्षा नीति की रूप रेखा तैयार की गई है। अपनी इस नई शिक्षा नीति को लेकर मोदी सरकार एक बार फिर चर्चा में है। चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है जाहिर है इसके विरोध में स्वर उठना भी स्वाभाविक था, तो अपेक्षा के अनुरूप स्वर उठे भी। लेकिन मोदी सरकार इस शिक्षा नीति को लागू करने के लिए कितनी दृढ़ संकल्प है यह उसने अपनी कथनी ही नहीं करनी से भी स्प्ष्ट कर दिया है। दरअसल उसने इन विरोध के स्वरों को विवाद बनने से पहले ही हिन्दी को लेकर अपने विरोधियों की संकीर्ण सोच को अपनी सरकार के उदारवादी दृष्टिकोण से शांत कर दिया। लेकिन बावजूद इसके नई शिक्षा नीति की राह आसान नहीं है। इसके लक्ष्य असंभव भले ही ना हों लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में मुश्किल तो अवश्य ही लग रही हैं। वैसे अब तक की अपनी राजनैतिक यात्रा में मोदी जी ने कई असंभव चीजों को संभव करके दिखाया भी है। और अब यह नई शिक्षा नीति जो कई बुनियादी बदलावों पर आधारित है मोदी सरकार की नई परीक्षा है।

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भारतीय राजनीति की दिशा और दशा

बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को जैसा प्रचण्ड बहुमत प्राप्त हुआ उसकी कल्पना शायद किसी को भी नहीं थी। राजनीतिक विश्लेषक इस जीत का श्रेय नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता तथा अमित शाह की रणनीतिक कुशलता को दे रहे हैं। 2014 में भाजपा को जहां 282 सीटें मिली थीं वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 303 तक पहुंच गया। इस चुनाव में भाजपा की सीटों में ही मात्र वृद्धि नहीं हुई बल्कि 2014 के मुकाबले उसे 33 प्रतिशत अधिक मत भी प्राप्त हुए। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कुल 17.16 करोड़ वोट मिले थे। जबकि इस बार यह आंकड़ा 33.45 प्रतिशत बढ़कर 22.90 करोड़ को पार कर गया। राजग के बीते कार्यकाल में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के अन्दर घुसकर आतंकियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई को यदि छोड़ दें तो सरकार के शेष सभी निर्णयों पर आम जनता की ओर से प्रश्न-चिन्ह ही लगते रहे हैं। चाहे नोट बन्दी का मुद्दा हो या जीएसटी का| राफेल विमान डील हो या फिर सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो। बेरोजगारी की समस्या पर तो सरकार अन्त तक कोई ठोस कदम ही नहीं उठा पायी।

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रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

हाल ही में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केअर की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2011 से 2017 तक दुनिया भर में सेल्फी लेते समय 259 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 159 मौतें अकेले भारत में हुईं। जब 1876 में पहली बार फोन का आविष्कार हुआ था तब किसने सोचा था कि यह अविष्कार जो आज विज्ञान जगत में सूचना के क्षेत्र में क्रांति लेकर आया है कल मानव समाज की सभ्यता और संस्कारों में क्रांतिकारी बदलाव का कारण भी बनेगा। किसने कल्पना की थी जिस फोन से हम दूर बैठे अपने अपनों की आवाज़ सुनकर एक सुकून महसूस किया करते थे उनके प्रति अपनी फिक्र के जज्बातों पर काबू पाया करते थे एक समय ऐसा भी आएगा जब उनसे बात किए बिना ही बात हो जाएगी। जी हाँ आज का दौर फोन नहीं स्मार्ट फोन का है जिसने एक नई सभ्यता को जन्म दिया है। इसमें फेसबुक व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ट्विटर जैसे अनेक ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जहाँ बिन बात किए ही बात हो जाती है। आज के इस डिजिटल दौर में हम एक ऐसे रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ लाइक और कमेंट्स से जज्बात बयां होते हैं। दोस्ती और नाराज़गी ऑनलाइन निभाई जाती हैं। यह क्रांति नहीं तो क्या है कि आज ईंटरनेट से चलने वाला स्मार्टफोन बहुत से लोगों के लिए उनका पहला कंप्यूटर बन गया तो किसी के लिए उसकी प्राइवेट टीवी स्क्रीन, किसी के लिए पहला पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर तो किसी के लिए पहला कैमरा। वो लोग जो एक छोटे से कमरे में अनेक लोगों के साथ जीने के लिए विवश हैं उनके लिए उनके स्मार्टफोन की छोटी सी स्क्रीन ही उनकी पर्सनल दुनिया बन गई।

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‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ तथा ‘ड्रग्स-फ्री वल्र्ड’ का निर्माण कड़े

अन्तर्राष्ट्रीय कानून, योग तथा संतुलित शिक्षा के द्वारा सम्भव है
लखनऊ, प्रदीप कुमार सिंह। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 7 दिसंबर 1987 को की गयी घोषणा का उसके अधिकांश सदस्य देशों ने मिलकर समर्थन किया कि विश्व भर में 26 जून को प्रतिवर्ष नशीली दवाओं के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जायेगा। यूएनओ द्वारा यह नारा दिया गया है कि जस्टिस फाॅर हैल्थ – हैल्थ फाॅर जस्टिस। साथ ही बच्चों और युवाओं को अभिभावकों द्वारा सही मार्गदर्शन देने के लिए उनकी बात को ध्यान से सुनना उन्हें स्वस्थ और सुरक्षित विकसित होने में मदद करता है। नशीली दवाओं के दुरूपयोग और अवैध तस्करी को अंतर्राष्ट्रीय समस्या के रूप में आंका गया है। इसलिए अब विश्व के सभी देशों को मिलकर इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या को जड़ से मिटा देने का समाधान खोजना है। ‘ड्रग्स-फ्री वल्र्ड’ अभियान को प्रभावशाली बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ नियंत्रण कार्यालय (यूएनडीसीपी) की शुरूआत यूएन द्वारा 1991 में नशाखोरी एवं मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अंतर्गत शुरू किया गया था। यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के मादक द्रव्य प्रभाग, अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ नियंत्रण बोर्ड के सचिवालय तथा संयुक्त राष्ट्र नशाखोरी नियंत्रण कोष की गतिविधियों के मध्य समन्वय तथा एकीकरण स्थापित करता है।

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शराबबंदी कितनी कारगर…

शराब एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति के घर परिवार से लेकर खुद व्यक्ति को भी नर्क के गर्त में ले जाती है ये एक ऐसी बुरी आदत है कि व्यक्ति एक बार बिना औरत के तो रह सकता है लेकिन बिना शराब नहीं। शराब के चलते कितने ही परिवार गरीबी और भुखमरी का जीवन जीने को मजबूर है। आदमी को होश भी तब आता है जब मौत सामने खड़ी होती है। शराब उससे महबूबा की तरह है जिससे मिले बिना रहा नहीं जा सकता और उसे छोड़ने की बात पर मन में पक्का निश्चय करके कि कल मिलने नहीं जाएंगे और ना ना करते हुए फिर से अपनी महबूबा से मिलने चले जाएंगे और मूवी विद पापकार्न का मजा भी लेंगे बस ऐसा ही हाल शराबियों का भी है ना ना करते सीधे ठेके पर जाएंगे और नमकीन के साथ शराब का मजा लेंगे।

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चमकी की चमक को शीघ्र रोके स्वास्थ्य मंत्रालय

मुजफ्फरपुर में इंसेफिलाइटिस (चमकी) बुखार से सौ से अधिक बच्चे मौत के गाल में समा गए। पिछले पांच साल से यह बीमारी महामारी का रूप धारण कर चुका है। पिछले कई साल इस मौसम में नौनिहालों के मौत का सिलसिला चल रहा है। सरकार की प्राथमिकताओं में बिहार म्यूजियम, ज्ञान भवन, नया विधानमंडल भवन और बुद्ध स्मृति पार्क है। अस्पताल नहीं  क्यों ? पटना म्यूजियम को तो सरकार से संभल नहीं रहा लेकिन एक और म्यूजियम बन गया जबकि बिहार को म्यूजियम की नही अभी अच्छे अस्पतालो की आवश्यकता है। अतिपिछड़ा क्षेत्रों में कोई झांकने वाला नहीं है। विधानसभा भवन बने हुए हैं फिर भी नया बनकर तैयार हो गया जबकि आदिवासी क्षेत्र अभी भी अस्पताल विहीन है।श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल और कई ऐसे हॉल पटना में पहले से मौजूद है जिसकी शायद ही साल में दो सौ दिन भी बुकिंग होती हो। क्या इन नए भवनों में लगे पैसों से मुजफ्फरपुर में सुपरस्पेशलिटी अस्पताल नहीं  बनवाया जा सकता था। एक नहीं कई अस्पताल बन गए होते। सैकड़ों बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।

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राजनीति से परे कुछ सवाल उठाती डॉक्टरों की हड़ताल

आखिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने डॉक्टरों की सभी मांगें मान ली हैं और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित करने के साथ ही काम पर लौटने के लिए भी कह दिया है। हालांकि पहले डॉक्टरों ने ममता के इस ऑफर को यह कहकर ठुकरा दिया था कि जबतक ममता अपने बयानों के लिए बिना शर्त माफी नहीं मांगतीं हड़ताल जारी रहेगी लेकिन बाद में वे सरकार से बातचीत के लिए तैयार हो गए। इस बीच लगभग एक हफ्ते से न सिर्फ पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं बल्कि देश भर में डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन भी जारी हैं। इस हड़ताल की वजह से उपचार नहीं मिलने के कारण पश्चिम बंगाल में अबतक छ लोगों और एक नवजात शिशु की मौत हो चुकी है। एक मुख्यमंत्री के रूप में निश्चित ही यह ममता बनर्जी की विफलता है कि हड़ताली डॉक्टर उनके अल्टीमेटम को भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं और स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही है। दरअसल यह शायद देश में पहली बार हुआ है कि एक राज्य के डॉक्टरों की हड़ताल को देश भर के डॉक्टरों का समर्थन मिला हो। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तो 17 जून को देश व्यापी हड़ताल की घोषणा भी कर दी है।

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पानी का महत्व

पानी सफेद सोना है और यह सोना इस समय भारत के अधिकांशत: गांवों में सडकों और नालियों में बुरी तरह से बहाया अथवा फैलाया जा रहा है। इसी सफेद सोने की बूंद – बूंद के लिए भारत के कुछ हिस्सों में प्राणी तरस रहे हैं। लेकिन जहाँ यह अभी भी उपलब्ध है, वहाँ लोग इसे बचाने की तरफ कोई खास ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। उन्हें भी जल्द पता चलने वाला है कि एक बूंद कितनी कीमती है। जबसे गांवों में समरसेबिल बोरिंग पम्प (इलैक्ट्रॉनिक) लगना शुरु हुई हैं तबसे लोग पानी को बहुत बुरी तरह से बर्बाद करने लगे हैं। एक आदमी नहाने में ही सैकड़ों लीटर पानी सड़कों पर, नालियों में बहा देता है वो भी पूर्णतः स्वच्छ मिनरल वाटर। शहरों में जिसकी कीमत बहुत अधिक होती है और शायद ही ऐसा पानी मिलता हो।
भारत में बढती जनसंख्या के साथ संसाधनों की जरूरत भी बढ रही है। लेकिन कुछ प्राकृतिक संसाधनों को हम अपनी मर्जी से बढा भी नहीं सकते। कुछ पदार्थों के बगैर जिआ जा सकता है परन्तु पानी के बगैर कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता।

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