Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

विपक्ष के बयान सही या विदेशी रिपोर्टें

देश के आम आदमी के मन में इस समय जितने सवाल उठ रहे हैं इतने शायद इससे पहले कभी नहीं उठे। वो समझ ही नहीं पा रहा है कि किस पर यकीन करे, विपक्ष के बयानों पर या फिर विदेशी रिपोर्टों पर।
परिणामस्वरूप अखबारों की रोज बदलती सुर्खियों के साथ ही देश के राजनैतिक पटल पर भी हालात तेजी से बदल रहे हैं और देशवासी हैरान परेशान!
वैसे भी इस समय दो राज्यों में चुनावों के चलते देश की राजनीति दिलचस्प दौर से गुजर रही है खासकर तब जब उनमें से एक राज्य प्रधानमंत्री का गृहराज्य हो।
हिमाचल में जनता अपना फैसला ले चुकी है गुजरात में परीक्षा अभी बाकी है। कहा जा रहा है कि इन राज्यों के चुनावी नतीजे, खास कर गुजरात के, आगामी लोकसभा चुनावों के दिशा निर्देश तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
ऐसा कुछ समय पहले इसी साल फरवरी में होने वाले यूपी चुनावों के समय भी कहा गया था। तब नोटबंदी से उपजे हालातों के मद्देनजर विशेषज्ञों की नजर में भाजपा की राह कठिन थी लेकिन उसने 404 सीटों की संख्या वाली विधानसभा में 300 का आंकड़ा पार करके अपने विरोधियों ही नहीं तमाम चुनावी पंडितों को भी चौंका दिया था।

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कहानीः हिन्दी

हिन्दी की प्रोफेसर हिमानी तेजवानी जी के घर आज सुन्दर सी बच्ची ने जन्म लिया। हिमानी अपनी बच्ची का चेहरा देख बेहद खुश थीं। उन्होंने अपनी बच्ची का नाम हिन्दी रख दिया। एक दिन दुर्भाग्य से ट्रेन दुर्घटना में हिमानी और उनके पति केशव की मौत हो जाती है। धन के लालच में हिमानी की भाभी हिन्दी को गोद ले लेती है। हिन्दी का बचपन अपनी मामी की डांट और फटकार में बीत रहा है। वह अपना दुख कविता, कहानी, गजल, गीत और लेख को लिखकर हमेशा कम रहती है। एक दिन उसकी मामी चिल्लाकर कहतीं हैं कि यह सब हिन्दी में ना लिख कर अंग्रेजी में लिखा कर, तुझे इतने मंहगे स्कूल में पढ़ा रहे फिर भी तू अंग्रेजी में बात करना नहीं सीख पायी। देखो! पड़ोस में सब के बच्चे अंग्रेजी बोलते हैं। हिन्दी ने दबी आवाज में कहा,‘हिन्दी में हमने स्कूल टाॅप किया है मामी जी।’ मामी ने उसका मुँह दबाते हुये कहा, ‘जब तक अंग्रेजी बोलना नही आता तब तक तेरी पढ़ाई – लिखायी सब बेकार है समझी। अब इस साल भी तू अंग्रेजी में बात करना नही सीखी तो अगली साल तेरी पढ़ाई छुड़वा देगें समझी। समाज में मेरी नाक कटा रखी है बिल्कुल और हाँ तेरे ये किस्से-कहानी की नोटबुक भी जला देगें। यह कहते हुये वह वहां से चली गयीं। हिन्दी को उसके मामा जी ने एन्ड्रायड फोन लाकर दिया था। उसने मामी के डर से अपना ज्यादा से ज्यादा साहित्य सोसल साइट्स पर अपलोड कर दिया।

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क्या बीजेपी मप्र में ऐसे जाएगी 300 पार ?

मध्य प्रदेश के चित्रकूट उपचुनाव में भाजपा ने जिस प्रकार अपनी हार को स्वीकार किया है उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जहाँ एक तरफ काँग्रेस इस जीत से उत्साहित है और इसे प्रदेश में अपने वनवास की समाप्ति और भाजपा के वनवास की शुरुआत का संकेत मान रही है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा इसे अपनी हार ही मानने को तैयार नहीं है।
उसका कहना है कि यह सीट तो कांग्रेस की पारंपरिक सीट थी जो अभी तक कांग्रेस के ही पास थी और फिर से उसी के पास चली गई। हमारे पास खोने के लिए कुछ था ही नहीं तो खोने का सवाल ही नहीं। भाजपा की इस सोच पर गालिब का एक शेर गुस्ताखी माफ, कुछ फेरबदल के साथ अर्ज है,
‘तुमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है ।’
क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री के तीन दिन के प्रचार, 64 सभाएँ और रोड शो, आदिवासी के यहाँ रात ठहरना, भोजन करना, इसके अलावा सरकार के 12 मंत्री, संगठन के नेताओं, यहाँ तक कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की जनसभाओं के बाद भी अगर यह नतीजे भाजपा को अपेक्षित थे तो फिर इतने तामझाम करके शिवराज सिंह ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने के संकेत क्यों दिए? और अगर इस उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए अपेक्षित नहीं थे तो क्या यह बेहतर नहीं होता कि केवल अपनी हार को ‘शिरोधार्य’ करने के बजाय शिवराज इस हार का आत्ममंथन करते?

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मिसाइल क्षेत्र में ताकतवर होता भारत

– डाॅ0 लक्ष्मी शंकर यादव
भारत की प्रथम स्वदेश निर्मित परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल निर्भय का 7 नवम्बर को सफल परीक्षण किया गया। यह परीक्षण सुबह 11.20 बजे ओडिशा के चांदीपुर के एकीकृत परीक्षण रेंज (आइटीआर) के लांच पैड-3 से विशेष रूप से डिजाइन किए गए एक मोबाइल लांचर के द्वारा किया गया जो कि सफल रहा। भारत के पास अभी तक 300 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस है। इसे भारत और रूस ने संयुक्त रूप से मिलकर बनाया है। अब इस नए परीक्षण के बाद भारत के पास लम्बी दूरी तक मार करने में सक्षम निर्भय मिसाइल हो गई है। इसकी मारक क्षमता 1000 किलोमीटर से भी ज्यादा है। निर्भय मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पूर्णतया अपने दम पर बनाया है। इसके परीक्षण के मौके पर डीआरडीओ एवं आइटीआर से जुड़े अनेक वरिष्ठ अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों का दल मौजूद था। मिसाइल परीक्षण के तुरन्त बाद डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि परीक्षण की सभी शुरूआती प्रक्रिया सफल रही और विस्तृत आॅकलन के लिए ट्रैकिंग प्रणाली से डेटा हासिल किया जा रहा है। इसके कुल तीन परीक्षण किए जाने थे जिन्हें नौ नवम्बर तक पूरा कर लिया गया है।

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क्या हार्दिक मान सम्मान की परिभाषा भी जानते हैं?

मैं वो भारत हूँ जो समूचे विश्व के सामने अपने गौरवशाली अतीत पर इठलाता हूँ।
गर्व करता हूँ अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति पर जो समूचे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करती है।
अभिमान होता है उन आदर्शों पर जो हमारे समाज के महानायक हमें विरासत में देकर गए हैं।
कोशिश करता हूँ उन आदर्शों को अपनी हवा में आकाश में और मिट्टी में आत्मसात करने की ताकि इस देश की भावी पीढ़ियाँ अपने आचरण से मेरी गरिमा और विरासत को आगे ले कर जाएं। लेकिन आज मैं आहत हूँ, क्षुब्ध हूँ, व्यथित हूँ, घायल हूँ, 
आखिर क्यों इतना बेबस हूँ?
किससे कहूँ कि देश की राजनीति आज जिस मोड़ पर पहुंच गई है या फिर पहुँचा दी गई है उससे मेरा दम घुट रहा है?
मैं चिंतित हूँ यह सोच कर कि गिरने का स्तर भी कितना गिर चुका है।
जिस देश में दो व्यक्तियों के बीच के हर रिश्ते के बीच भी एक गरिमा होती है वहाँ आज व्यक्तिगत आचरण सभी सीमाओं को लांघ चुका है?
लेकिन भरोसा है कि जिस देश की मिट्टी ने अपने युवा को कभी सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस,राम प्रसाद बिस्मिल, चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह जैसे आदर्श दिए थे, उस देश का युवा आज किसी हार्दिक पटेल या जिग्नेश जैसे युवा को अपना आदर्श कतई नहीं मानेगा।

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क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है

अमेरीकी विरोध के बावजूद उत्तर कोरिया द्वारा लगातार किए जा रहे हायड्रोजन बम परीक्षण के परिणाम स्वरूप ट्रम्प और किम जोंग उन की जुबानी जंग लगातार आक्रामक होती जा रही है।
स्थिति तब और तनावपूर्ण हो गई जब जुलाई में किम जोंग ने अपनी इन्टरकाँन्टीनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया।
क्योंकि न तो ट्रम्प ऐसे उत्तर कोरिया को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जिसकी इन्टरकाँटीनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइलें न्यूयॉर्क की तरफ तनी खड़ी हों और न ही उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम बन्द करने के लिए।
इस समस्या से निपटने के लिए ट्रम्प का एशिया दौरा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है क्योंकि इस यात्रा में उनकी विभिन्न एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से उत्तर कोरिया पर चर्चा होने का भी अनुमान है।
मौजूदा परिस्थितियों में चूंकि दोनों ही देश एटमी हथियारों से सम्पन्न हैं तो इस समय दुनिया एक बार फिर न्यूक्लियर हमले की आशंका का सामना करने के लिए अभिशप्त है।
निश्चित ही विश्व लगभग सात दशक पूर्व द्वितीय विश्वयुद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए न्यूक्लियर हमले और उसके परिणामों को भूल नहीं पाया है और इसलिए उम्मीद है कि स्वयं को महाशक्ति कहने वाले राष्ट्र मानव जाति के प्रति अपने दायित्वों को अपने अहं से ज्यादा अहमियत देंगे।

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प्रत्येक भारतीय के लिए राष्ट्रधर्म ही होना चाहिए सर्वोच्च धर्म

एक राष्ट्र तब तक परास्त नहीं हो सकता जबतक वह अपनी संस्कृत, सभ्यता और संस्कृतिक मूल्यों की रक्षा कर पाता है, इतिहास गवाह है कि, जब-जब हमने अपनी संस्कृतिक विरासत को छोड़ा है तब-तब हमारा राष्ट्र खंड-खंड में विभाजित हुआ है। और इसी का लाभ उठाकर तमाम आक्रंताओं ने हमारे राष्ट्र में कइयों बार लूट-खसोट मचाई है। हमने अपने इतिहास से भी सीख न लेते हुए वैदिक काल से चली आ रही वर्ण व्यवस्था को आज भी अपने समाज में स्थान दे रखा है। भले ही हम इक्कीसवीं शताब्दी में रह रहे हों और खुद को आधुनिक मान रहे हों लेकिन, जिस प्रकार आज हमारा राष्ट्र जाति और धर्म के नाम पर खंड-खंड में बंटा हुआ है इससे हमारी आधुनिकता का खूब पता चल रहा है। निश्चित रूप से भारतीय समाज ने विश्व के तमाम क्षेत्रों में जाकर इस समाज के मान को बढ़ाया है, किंतु जब हम धरातल पर आकर किसी निष्कर्ष को निकालते हैं तब हमारे हाथ सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी विचार धारा का खोखला पन ही हाथ आता है।
यह अलग बात है कि हाल ही में केरल राज्य ने समानता का एक नया उदाहारण पेश किया है, केरल के ट्रावनकोर देवास्वामी मंदिर की नियुक्ति समिति ने अपने पुजारियों के रुप में 36 गैर-ब्राह्मणों का चुनाव किया है, जिसमें छः दलित श्रेणी के हैं, केरल के धार्मिक स्थानों पर जातिगत भेदभाव का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन जिस प्रकार का यह नया अभूतपू्र्व कदम उठाया गया है इसको देखकर कहा जा सकता है कि देश में समानता की लव जल चुकी है। हालांकि यह देखना होगा कि किस प्रकार गैर-ब्राह्मण पुजारियों को वहां के श्रद्धालु स्वीकार करते हैं।
सदियों से हमारा समाज जातिवाद, असमानता, वह अस्पृश्यता का शिकार रहा है। अगर हम इतिहास पर गौर करें तो वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था को निम्न चार भागों में बांटा गया था, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। जिसमें ब्राह्मण वर्ण का कार्य लोगों को शिक्षा देने का, क्षत्रिय का लोगों की रक्षा करने, वैश्य का व्यापार एवं शूद्र का इन सभी की सेवा करने का कार्य हुआ करता था।

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महिलाओं को उन्नति करने के लिए उन्नत माहौल की आवश्यकता

आंकड़े सिर्फ आहट की दस्तक नहीं देते, बल्कि सच्चाई से रूबरू कराते हैं। देश में लिंग-अनुपात के लगातार कम होने के जो आंकड़े हमारे सामने आ रहे हैं, वे न सिर्फ हमारी मानसिकता बताते हैं। यहां तक हमारे समाज के दो- अर्थी व्यहवार को भी व्यक्त करते हैं। साथ- साथ यह भी पता चलता है, कि कन्याभ्रूण हत्या रोकने और अन्य स्तर पर लड़कियों को सुरक्षा देने के सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास निरर्थक ही साबित हो रहें हैं। मध्यप्रदेश प्रदेश सरकार भले ही प्रदेश के हर घर की लाड़ली को लक्ष्मी बनाने का अथक प्रयास कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत में लड़कियां 28 दिन भी साँसें नहीं ले पाती । मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जहां सूबे में लड़के की मृत्यु दर में 14.6 प्रतिशत की दर से गिरावट आ रही है, वहीं घर की लाड़ली बन रहीं लड़कियों की मृत्युदर में मात्र 1.6 फीसदी की मामूली गिरावट यह दर्शाता है, कि नीति-निर्धारक कितने भी कानून का एलान कर दे, लेकिन लैंगिक भेदभाव समाज से दूर किए बिना लड़कियों की संख्या सूबे क्या पूरे देश में लड़कों के बराबरी पर नहीं आ सकती।
बात चाहें मध्यप्रदेश की हो, या पूरे देश की। पुरुष प्रधान सोच देश से अभी निकल नही पाई है। भले ही देश ने केंद्रीय सत्ता में महिला को प्राश्रय 50 वर्ष पूर्व ही दे चुकी हो, लेकिन महिला सशक्तिकरण के मामले में देश विकसित देशों के मामले में काफी पीछे है, और देश के भीतर मध्यप्रदेश राज्य। एक कहावत है, हाथ कंगन को आरसी क्या, और पढ़े-लिखे को फारसी क्या। ऐसे में सूबे की महिलाओं की स्थिति क्या स्थिति है, वह बताने की शायद आवश्यकता नहीं। फिर भी आंकड़ों के सागर में अगर गोता लगाते हैं, तो पता चलता है, कि देश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में मध्यप्रदेश राज्य आज के वक्त भी काफी पिछड़ा हुआ है। तभी तो महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा प्रदान करने के मामले में मध्यप्रदेश देश के अन्य राज्यों से काफी दूर मामूल पड़ता है। उससे भी दुःखद बात यह है, कि केंद्र की जो भाजपा सरकार सत्ता में ही बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार के नारे पर आई । उसी पार्टी के शासित राज्य में महिलाओं की अस्मिता के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ होता आ रहा है। अभी बीते दिनों की घटना है, जब प्रदेश अपने स्थापना दिवस की रंगीनियों में धूमिल था, तभी राजधानी में एक लड़की दरिंदगी का शिकार हो जाती है। फिर सूबे में महिलाओं की क्या सामाजिक स्थिति है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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विश्व बैंक रिपोर्ट एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आई है

जब नोटबंदी और जीएसटी को देश की घटती जीडीपी और सुस्त होती अर्थव्यवस्था का कारण बताते हुए सरकार लम्बे अरसे से लगातार अपने विरोधियों के निशाने पर हो, और 8 नवंबर को विपक्ष द्वारा काला दिवस मनाने की घोषणा की गई हो, ऐसे समय में कारोबारी सुगमता पर विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट सरकार के लिए एक ठंडी हवा का झोंका बनकर आई है।
लेकिन जिस प्रकार कांग्रेस इस रिपोर्ट को ही फिक्सड कहते हुए अपनी हताशा जाहिर कर रही है वो निश्चित ही अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उसकी इस प्रकार की नकारात्मक रणनीति के परिणामस्वरूप आज न सिर्फ कांग्रेस खुद ही अपने पतन का कारण बन रही है बल्कि देशवासियों को पार्टी के रूप में कोई विकल्प और देश के लोकतंत्र को एक मजबूत विपक्ष भी नहीं दे पा रही है।
सरकार के  विरोधियों को उनका जवाब शायद वर्ल्ड बैंक की  “ईज आफ डूइंग बिजनेस”  रैंकिंग की ताजा रिपोर्ट में मिल गया होगा जिसमें इस बार भारत ने अभूतपूर्व 30 अंकों की उछाल दर्ज की है।
यह सरकार की आर्थिक नीतियों का परिणाम ही है कि 190 देशों की इस सूची में भारत 2014 में  142 वें पायदान पर था, 2017 में सुधार करते हुए  130 वें स्थान पर आया और अब पहली बार वह इस सूची में 100 वें रैंक पर है।
अगर अपने पड़ोसी देशों की बात करें तो महज 0.40 अंकों के सुधार के साथ चीन  78 वें पायदान  पर है, पाकिस्तान 147  और  बांग्लादेश  177 पर।
सरकार का लक्ष्य 2019 में  90 और  2020 तक  30 वें पायदान पर आना है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि  “सुधार, प्रदर्शन और रूपांतरण के मंत्र की मार्गदर्शिका के अनुसार हम अपनी रैंकिंग में और सुधार के लिए और अधिक आर्थिक वृद्धि को पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
रिपोर्ट की सबसे खास बात यह है कि भारत को इस साल सबसे अधिक सुधार करने वाले दुनिया के टाँप टेन देशों में शामिल किया गया है और बुनियादी ढांचे में सुधार करने के मामले में यह शीर्ष पर है।
भारत के लिए निसंदेह यह गर्व की बात है कि इस प्रतिष्ठित सूची में वह  दक्षिण एशिया और ब्रिक्स समूह का एकमात्र देश है।

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गुजरात चुनाव: परीक्षा आखिर किसकी…?

कोई भी व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्यों से समाज में “नायक” अवश्य बन सकता है लेकिन वह  “नेता” तभी बनता है जब उसकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को राजनैतिक सौदेबाजी का समर्थन मिलता है।”
गुजरात जैसे राज्य के विधानसभा चुनाव इस समय देश भर के लिए सबसे चर्चित औरहाँट मुद्दा” बने हुए  है। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि इस बार के गुजरात चुनाव मोदी की अग्नि परीक्षा हैं।
लेकिन राहुल गाँधी राज्य में जिस प्रकार, जिग्नेश मेवानी, अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल के साथ मिलकर  विकास को पागल करार देते हुए जाति आधारित राजनीति करने में लगे हैं उससे  यह कहना गलत नहीं होगा कि असली परीक्षा मोदी की नहीं गुजरात के लोगों की है।
आखिर इन जैसे लोगों को नेता कौन बनाता है, राजनैतिक दल या फिर जनता?
देश पहले भी ऐसे ही जन आन्दोलनों से लालू और केजरीवाल जैसे नेताओं का निर्माण देख चुका है। इसलिए परीक्षा तो  हर एक गुजराती की है कि वो अपना होने वाला नेता किसे चुनता है विकास के सहारे भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए वोट मांगने वाले को या फिर जाति के आधार पर गुजराती समाज को बाँट कर किसी जिग्नेश, हार्दिक या फिर अल्पेश नाम की बैसाखियों के सहारे वोट मांगने वाले को।
परीक्षा गुजरात के उस व्यापारी वर्ग की है कि वो अपना  वोट किसे देता है उसे जो पूरे देश में अन्तर्राज्यीय  व्यापार और टैक्सेशन की प्रक्रिया को सुगम तथा सरल बनाने की कोशिश और सुधार करते हुए अपने काम के आधार पर वोट मांग रहा है या फिर उसे जिसने अभी तक देश में तो क्या अपने संसदीय क्षेत्र तक में इतने सालों तक कोई काम नहीं किया लेकिन अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्दी द्वारा किए गए कामों में कमियाँ  निकालते हुए समर्थन मांग रहे हैं।

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