पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष में पूरे जनपद कानपुर देहात में ब्लाक, जिलास्तर पर अन्त्योदय प्रदर्शनी व मेले भव्य तरीके से आयोजित हुए जिससे जनता ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को दूर दराज की जनता जानी, अन्त्योदय एकात्मक मानववाद सबका साथ सबका विकास जाना, वहीं शासन की नीतियों, योजनाओं को नजदीक आये और उससे लाभांवित हुए। प्रदर्शनी और मेलों से बढ़ चला उत्तर प्रदेश एक नई दिशा की ओर, समृद्धि और खुशहाली और जागरूकता का संदेश देता हुआ जनपद में विगत माह अन्त्योदय मेला व प्रर्दशनी में जनपद में पं. दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष के तहत प्रत्येक ब्लाक व जिलास्तरीय में तीन-तीन दिन अन्त्योदय प्रदर्शनी व मेला संगोष्ठी आदि का भव्यता के साथ आयोजन किया गया। जिसका लाभ शहरी और ग्रामीण दोनो ही जनता द्वारा लिया गया। अन्त्योदय प्रदर्शनी व मेले में किसानों के साथ ही युवा व छात्र-छात्राओं की भागीदारी बड़ी संख्या में देखने को मिली। दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष के तहत अन्त्योदय मेले पं. दीनदयाल उपाध्याय की जीवन पाठ व सरकार की उपलब्धियों का भी लोकगीतों, नाटक, अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से बखान भी किया गया।
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सरकार की प्रथम जबाबदेही जनता के प्रति है लोकसेवकों के प्रति नहीं
वैसे तो भारत एक लोकतांत्रिक देश है। अगर परिभाषा की बात की जाए तो यहाँ जनता के द्वारा जनता के लिए और जनता का ही शासन है लेकिन राजस्थान सरकार के एक ताजा अध्यादेश ने लोकतंत्र की इस परिभाषा की धज्जियां उड़ाने की एक असफल कोशिश की। हालांकी जिस प्रकार विधानसभा में बहुमत होने के बावजूद वसुन्धरा सरकार इस अध्यादेश को कानून बनाने में कामयाब नहीं हो सकी, दर्शाता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें वाकई में बहुत गहरी हैं जो कि एक शुभ संकेत है।
लोकतंत्र की इस जीत के लिए न सिर्फ विपक्ष की भूमिका प्रशंसनीय है जिसने सदन में अपेक्षा के अनुरूप काम किया बल्कि हर वो शख्स हर वो संस्था भी बधाई की पात्र है जिसने इसके विरोध में आवाज उठाई और लोकतंत्र के जागरूक प्रहरी का काम किया।
राजस्थान सरकार के इस अध्यादेश के द्रारा यह सुनिश्चित किया गया था कि बिना सरकार की अनुमति के किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध मुकदमा दायर नहीं किया जा सकेगा साथ ही मीडिया में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले सरकारी कर्मचारियों के नामों का खुलासा करना भी एक दण्डनीय अपराध माना जाएगा।
जहाँ अब तक गजेटेड अफसर को ही लोक सेवक माना गया था अब सरकार की ओर से लोक सेवा के दायरे में पंच सरपंच से लेकर विधायक तक को शामिल कर लिया गया है।
दिल्ली में मेट्रो किराया वृद्धि से आती है गहरे षडयंत्र की बू
देश की आम जनता को जिस तरह से बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने की नैतिक जिम्मेदारी केन्द्र एवं राज्य सरकारों की होती है, ठीक उसी तरह से लोगों को सस्ता व सुगम सार्वजनिक लोक परिवहन सुविधा उपलब्ध कराना भी सरकारों का ही फर्ज है। इस देश का आम गरीब अपने गांव- कस्बों और मोहल्लों से निकल कर बड़ी तादात में बड़े शहरों की तरफ रूख करता है। ये वो जमात होती है जो दो वक्त की रोटी के लिए अपने घरों से महरूम होकर पलायन करती है। हमारे भारत में काम की तलाश में दिन प्रतिदिन बड़ी संख्या में मजदूर लोग देश की राजधानी दिल्ली- मुंबई और राज्यों की राजधानियों के अलावा बड़े शहरों की तरफ रूख करते है। अपने घरों से महरूम होकर पलायन करने वाले ये ऐसे लोग होते है जो शहर के बीचों बीच नही बल्कि शहर के आउटर एरिया में निवास करते है। ऐसी स्थिति में सरकारों की ओर भी जिम्मेदारी बनती है कि इन लोगों को सस्ता और अच्छा सार्वजनिक लोक परिवहन उपलब्ध कराएं। हालाकि मुंबई में लोकल टे्रन और दिल्ली में मेट्रो ट्रेन ने कुछ हद तक इस सावर्जनिक लोक परिवहन की सुविधा से लोगों को राहत दी है। लेकिन हाल के दिनों में देखने में ये भी आया है कि इस तरह की सुविधाओं से लोगों को महरूम करने का एक षडयंत्रकारी माहौल भी बनाया जा रहा है। बड़ी-बड़ी नामी गिरामी नीजि टेक्सी संचालक जैसे ओला-उबेर और तमाम दूसरी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के ध्येय से सार्वजनिक लोक परिवहन को आमजन की पहुंच से दूर करने का काम किया जा रहा है। मेट्रो ट्रेन को लेकर दिल्ली में इस तरह का षडयंत्र तेजी से चल रहा है। यहां जब-तब मेट्रो का किराया बढ़ा कर यह दलील दी जाती है कि प्रोजेक्ट को संचालित करने में घाटा हो रहा है इस कारण किराया बढ़ाया जा रहा है। लेकिन यह आधा सच है। इसके साथ ही डीएमआरसी कर्मचारियों के वेतन, रखरखाव और दूसरी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए खर्च जुटाने की दलीले भी बीते समय दे चुका है। जबकि हाल के दिनों तक दिल्ली मेट्रो लगातार मुनाफे का दावा करती रही है।
Read More »क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें
दिवाली यानी रोशनी, मिठाईयाँ, खरीददारी, खुशियाँ और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है।
प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी !
दीपकों की रोशनी और पटाखों का शोर
बस यही दिखाई देता है चारों ओर।
हमारे देश और हमारी संस्कृति की यही खूबी है।
त्यौहार के रूप में मनाए जाने वाले जीवन के ये दिन न सिर्फ उन पलों को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि हमारे जीवन को अपनी खुशबू से महका जाते हैं।
हमारे सारे त्यौहार न केवल एक दूसरे को खुशियाँ बाँटने का जरिया हैं बल्कि वे अपने भीतर बहुत से सामाजिक संदेश देने का भी जरिया हैं।
भारत में हर धर्म के लोगों के दीवाली मानने के अपने अपने कारण हैं
जैन लोग दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन उनके गुरु श्री महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
सिक्ख दीवाली अपने गुरु हर गोबिंद जी के बाकी हिंदू गुरुओं के साथ जहाँगीर की जेल से वापस आने की खुशी में मनाते हैं।
बौद्ध दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।
और हिन्दू दीवाली मनाते हैं अपने 14 वर्षों का बनवास काटकर प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खुशी में।
हम सभी हर्षोल्लास के साथ हर साल दीवाली मनाते हैं लेकिन इस बार इस त्यौहार के पीछे छिपे संदेशों को अपने जीवन में उतारकर कुछ नई सी दीवाली मनाएँ। एक ऐसी दीवाली जो खुशियाँ ही नहीं खुशहाली लाए। आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है दीवाली के संदेशों को अपने जीवन में उतारना बेहद प्रासंगिक होगा।
तो इस बार दीवाली पर हम किसी रूठे हुए अपने को मनाकर या फिर किसी अपने से अपनी नाराजगी खुद ही भुलाकर खुशियाँ के साथ मनाएँ।
दीवाली हम मनाते हैं राम भगवान की रावण पर विजय की खुशी में यानी बुराई पर अच्छाई की जीत, तो इस बार हम भी अपने भीतर की किसी भी एक बुराई पर विजय पाएँ, चाहे वो क्रोध हो या आलस्य या फिर कुछ भी।
दीवाली हम मनाते हैं गणेश और लक्ष्मी पूजन करके तो हर बार की तरह इस बार भी इनके प्रतीकों की पूजा अवश्य करें लेकिन साथ ही किसी जरूरतमंद ऐसे नर की मदद करें जिसे स्वयं नारायण ने बनाया है शायद इसीलिए कहा भी जाता है कि ‘नर में ही नारायण हैं’।
वायु सेना की ताकत बढ़ाने की तैयारी
भारतीय वायु सेना 8 अक्टूबर 1932 से धीरे-धीरे प्रगति करती हुई आज दुनिया की 4वें नंबर की सबसे बडी़ वायु सेना मानी जाती है क्योंकि इसकी मारक क्षमता में लगातार गुणात्मक वृद्धि हुई है। अब यह अपने 85 वर्ष पूरे कर 86वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। इन 85 वर्षों के इतिहास में ऐसे कई अवसर आए जब भारतीय वायु सेना के जांबाजो ने शत्रु के दांत खट्टे करके अपनी ताकत का एहसास करवाया। प्रत्येक चुनौती के समय भारतीय वायु सेना ने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। भारतीय वायु सेना के विमान हमेशा ही दुश्मन पर आफत बनकर टूटे हैं। हर बार उन्होंने दुश्मनों को तबाह किया है। हर लड़ाई को जीतने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। आजादी हासिल करने के बाद सन् 1947 की भारत पाक लड़ाई में कश्मीर में छाताधारी सैनिकों को उतारकर इस सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेडा़ था। सन् 1961 में कांगो आपरेशन में भी बेहतरीन भूमिका निभाई। भारतीय वायु सेना ने सन् 1965 व 1971 की लड़ाई एवं 1999 के कारगिल संघर्ष में एक बड़ी भूमिका निभाई। यह वायु सेना की ही ताकत थी कि 1971 की जंग में पाकिस्तान के 93 हजार जवानों के साथ आत्म समर्पण करने वाले पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.के.नियाजी ने कहा था कि इसकी वजह केवल और केवल भारतीय वायु सेना ही है।
अभी हाल ही में बेंगलुरु में 25 अगस्त 2017 को इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ एयरोस्पेस मेडिसिन द्वारा आयोजित 56वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करने आए एयर चीफ मार्शल बिरेन्दर सिंह धनोवा ने कहा था कि भारतीय वायु सेना किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। यह बात उन्होंने भारत-चीन की सेना के बीच जारी गतिरोध पर पूछे गए सवालों के जवाब में कही थी। इससे कुछ दिन पहले उन्होंने कारगिल संघर्ष की सालगिरह पर कहा था कि तब से अब तक के 18 वर्षों में वायु सेना की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि अब भारतीय वायु सेना के पास हर मौसमी परिस्थिति में दिन और रात में काम करने की क्षमता है। इन बातों से यह पता चल जाता है कि भारतीय वायु सेना अत्याधुनिक हथियारों व उपकरणों से लैस है। हमारे वायु योद्धा निरन्तर आसमान से नजर बनाए रखते हैं। आज उनकी नजरों से बचकर शत्रु की कोई चाल कामयाब नहीं हो सकती क्योंकि वे हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं।
भारतीय वायु सेना को अत्याधुनिक लड़ाकू विमान शीघ्र दिए जाने की प्रक्रिया गत वर्ष ही तेज कर दी गई थी जिससे उसके विमान बेड़े की संख्या बढ़ाई जा सके। इसके लिए फ्रंसीसी एविएशन कम्पनी दसाल्ट के साथ अनिल अम्बानी का एडीए समूह महत्वपूर्ण किरदार निभाएगा और राफेल लड़ाकू विमानों के निर्माण में सक्रिय सहयोग करेगा।
इस बार की राह इतनी आसान नहीं होगी शिवराज के लिये
भारतीय जनता पार्टी पहली बार 5 मार्च 1990 में भोजपुर विधायक सुन्दर लाल पटवा ने मध्यप्रदेश का कमान 15 मई 1992 तक संभाली लेकिन 16 दिसम्बर से 6 दिसम्बर तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा।
8 दिसम्बर 2003 से 23 अगस्त 2004 तक मलहारा के विधायक उमा भारती की नेतृत्व में सरकार चली।
23 अगस्त 2004 से 29 नवम्बर 2005 गोविंदपुरा विधायक बाबुलाल गौर ने मध्यप्रदेश का दिशा निर्देशन किया। विदिशा के विधायक श्री शिव राज सिंह चौहान के नेतृत्व में 3 दिसम्बर 2008 को मध्यप्रदेश का दिशा निर्देशन शुरु हुआ जो 2018 तक चलेगी.
आसान नहीं शिव राज की राह : 2018 में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का समय जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे प्रदेश में राजनैतिक हलचल भी तेज होती जा रही है।
वैसे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते 14 सालों से सत्ता में है लेकिन शिवराज शासन की अगर बात की जाए तो विगत 12 वर्षों से प्रदेश की बागडोर उनके हाथों में है। इन बारह सालों में शिवराज सिंह सरकार के नाम कई उपलब्धियाँ रहीं तो कुछ दाग भी उसके दामन पर लगे।
अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो उनकी सबसे बड़ी सफलता मप्र के माथे से बीमारू राज्य का तमगा हटाना रहा।
बिजली उत्पादन के क्षेत्र में आज मप्र सरप्लस स्टेट में शामिल है,यहाँ 15500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है जबकि मांग सामान्यतः 6000 मेगावाट और रबी सीजन में अधिकतम 10000 मेगावाट रहती है।
कट्टरपंथ का नया अड्डा
बांग्लादेश में कट्टरपंथी गुटों का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि बांग्लादेश का निर्माण ही पाकिस्तान सेना के अत्याचारों और उत्पीड़न के कारण हुआ था। पाकिस्तानी सेना द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 30 लाख बंगालियों की हत्या की गई थी तथा उनकी महिलाओं को उत्पीड़न और अत्याचार के अंतहीन कुचक्र में धकेल दिया गया था। बांग्लादेश द्वारा ऐसे खतरनाक अनुभवों के बाद भी कोई सीख नहीं ली गई है। बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा नृशंस ढंग से प्रगतिशील लेखक अभिजीत रॉय की सरेआम हत्या कर दी गई। कट्टरपंथियों का कहना था कि अभिजीत रॉय अपने लेखन द्वारा हिंदू होते हुए भी इस्लाम की निंदा कर रहे थे, इसलिए उनकी हत्या उचित है। अभिजीत रॉय की हत्या उस समय सरेआम सड़क पर की गई, जब वह अपनी पत्नी रफीदा अहमद बन्ना के साथ पैदल जा रहे थे। ऐसा नहीं है कि कट्टरपंथियों के निशाने पर अन्य धर्मावलंबी ही हैं। इन कट्टरपंथियों ने इस्लामिक प्रगतिशील विद्वानों को भी नहीं छोड़ा है। इसके पूर्व वर्ष 2004 में प्रोफेसर हुमायूं आजाद तथा वर्ष 2013 में राजिब हैदर की भी इस्लामी चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी। आज तक इन हत्यारों को दंडित नहीं किया गया है। तसलीमा नसरीन से लेकर सलमान रुश्दी तक अनेक प्रगतिशील लेखक मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। अभिजीत रॉय एक प्रगतिशील व्यक्ति थे और उन्होंने ‘मुक्तमना’ नामक एक ब्लॉग शुरू किया था।
प्रगतिशील सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तार्किकता से युक्त कोई भी व्यक्ति इस ब्लॉग में लिखने के लिए स्वतंत्र था।
जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण
2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को अक्टूबर 2017 में तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के मकसद की बात करें तो इसके दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा भारत के गाँवों को खुले में शौच से मुक्त करना।
बात निकली ही है तो यह जानना भी रोचक होगा कि स्वच्छता का यह अभियान इन 70 सालों में भारत सरकार का देश में सफाई और उसे खुले में शौच से मुक्त करने का कोई पहला कदम हो या फिर प्रधानमंत्री मोदी की कोई अनूठी पहल ही हो ऐसा भी नहीं है।
1954 से ही भारत सरकार द्वारा ग्रामीण भारत में स्वच्छता के लिए कोई न कोई कार्यक्रम हमेशा से ही आस्तित्व में रहा है लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाया गया 1999 में तत्कालीन सरकार द्वारा।
खुले में मल त्याग की पारंपरिक प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से ‘निर्मल भारत अभियान’ की शुरुआत की गई, जिसका प्रारंभिक नाम ‘सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान’ रखा गया था।
इस सबके बावजूद 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है और इसी रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की।
अब एक बार फिर जब इस अभियान की सालगिरह आ रही है तो हमारे देश के नेता अभिनेता और विभिन्न क्षेत्रों के सेलिब्रटीस एक बार फिर हाथों में झाड़ू लेकर फोटो सेशन करवाएंगे। ट्विटर और फेसबुक पर स्वच्छ भारत अभियान हैश टैग के साथ स्टेटस अपडेट होगा,अखबारों के पन्ने मुख्यमंत्रियों नेताओं और अभिनेताओं के झाड़ू लगाते फोटो से भरे होंगे और ब्यूरोक्रेट्स द्वारा फाइलों में ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) गाँवों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही होगी लेकिन क्या वास्तव में हमारा देश साफ दिखाई देने लगा है?
क्या हम धीरे धीरे ओडीएफ होते जा रहे हैं?
आवश्यक है विश्व धरोहर रामलीला का संरक्षण एवं संवर्धन
परम्परागत लोकनाट्य विधाओं में सर्वाधिक पुष्ट एवं समृद्ध लोकनाट्य रामलीला को ही माना जाता है। सात दिन से लेकर एक माह तक की अवधि में मंचित होने वाली रामलीलाएं भारत की प्राचीन संस्कृति के सार्वभौमिक स्वरुप का दर्शन कराने में सर्वथा सक्षम हैं। बशर्ते कि मंचन करने और कराने वाले लोग रामलीला को उसके मूल स्वरूप में प्रस्तुत करने की क्षमता एवं दृढ इच्छा रखने वाले हों। रामलीला अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के जीवन से जुड़ी घटनाओं का मात्र नाट्य रूपान्तरण नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के उच्च आदर्शों की गाथा है। यह गाथा है उच्च मानवीय मूल्यों की। यह गाथा है उच्च आदर्शवादी समाज की। यह गाथा है आदर्शों के उच्चतम शिखर पर दृढ़ता से खड़ी राजनीति की। यह गाथा है आदर्श परिवार की। यह गाथा है मर्यादा की सीमाओं में बंधे ईमानदार एवं दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व की।
रामलीला का प्रारम्भ किस समय अवधि में हुआ इसका ज्ञान शायद ही किसी को हो। हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि लोकगीतों में रामकथा का गायन जितना पुराना है, रामलीला को भी उतना ही प्राचीन मानना चाहिए। क्योंकि लोकगीतों एवं लोकनाट्यों का अन्तः सम्बन्ध नाकारा नहीं जा सकता है। यदि यह कहा जाये कि लोकनाट्य लोकगीतों का ही नाट्य रुपान्तरण हैं तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। सुदूर ग्रामीण अंचलों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रामकथा पर आधारित लोकनाट्य आज भी देखने को मिल जायेंगे। चित्रकूट क्षेत्र में ‘राउत’ जन समुदाय द्वारा खेले जाने वाले नाटक रामकथा पर ही आधारित हैं।
हिंसा का अंतहीन दौर
यमन में वर्चस्व और सत्ता के लिए शिया और सुन्नी समुदायों के मध्य कड़ा संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में जहां अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे खतरनाक आतंकी संगठन सुन्नियों का साथ दे रहे हैं, वहीं शिया लड़ाकों की अगुवाई हूती मिलिशिया जैसे विद्रोही संगठन कर रहे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए यह नहीं लगता है कि यमन बहुत जल्द गृह युद्ध और हिंसा की जटिल परिस्थितियों से बाहर आ सकेगा।
गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच चुके अरब देश यमन में शिया हाउती विद्रोहियों के ठिकानों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में हवाई हमले शुरू किए गए। राजधानी सना और उसके आसपास के इलाकों में किए गए हमलों तथा सत्ता संघर्ष में सरकार और विद्रोहियों में जारी हिंसा में हजारों नागरिकों की मौत हो चुकी है तथा कई लाख नागरिक बेघर हो गए हैं। हजारों इमारतें और मकान ध्वस्त हो गए हैं तथा चारो ओर आतंक और दहशत का हाहाकार मचा हुआ है। इन हमलों के बाद मुस्लिम राष्ट्र दो गुटों में बंट गए हैं। एक ओर सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर, बहरीन, कुवैत, मिस्र जैसे देश हैं, जो किसी भी कीमत पर शिया हाउती विद्रोहियों से यमन के राष्ट्रपति आब्दीरब्बू मंसूर हादी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर ईरान इन देशों के विरोध में खड़ा हो गया है। हवाई हमलों पर नाराजगी जताते हुए ईरान ने कहा है कि इससे विवादों का हल तलाशने में मदद नहीं मिलेगी।