राजीव रंजन नाग; नई दिल्ली। कला संसार की वह जीवंत हस्ती है। एक ऐसे दुर्लभ कलाकार हैं जिनमें कुछ रच जाने की ललक दिखती है। भारत की जमीन पर पैदा हुए हरजीत सिंह संधू बीते दशकों से कला की रंगीन दुनिया में वह रच बस गए हैं। 74 वर्षीय यह जीवंत कलाकार संभवतः मोजैक आर्ट का पहला कलाकार है जो रंगीन पत्तरें तराश कर एक ऐसी तस्वीर उकेरता है जो दूर से जीवंत, आकर्षक और मोहक लगता है। उनकी उकेरी तस्वीरें हमें-आपको खींची चली जातीं हैं। कला की घरती पर हरजीत सिंह संधू दिमाग में अनेक भावनायें और परिकल्पनाएं हैं। उनती खामोश निगाहों में कुछ उकेर देने का जज्बा है। मोज़ेक कला सार्वजनिक कला का एक अनूठा काम है।
जापान और इटली से अपने कच्चे माल के तौर पर रंगीन कट ग्लास का आयात करते हैं। एक प्रर्दशनी में टांगे जाने वाले कलाकृति को पूरा करने में छह महीने से एक वर्ष के बीच का समय लगता है। भगत सिंह का चित्र, जो पिछले सप्ताह दिल्ली में एफैक्स आर्ट गैलरी में प्रदर्शित किया गया था। ‘मुझे भगत सिंह के चित्र को पूरा करने में छह महीने से अधिक का समय लगा, क्योंकि मैं दैनिक आधार पर महान शहीद की उभरती हुई तस्वीर में कुछ इंच कटे हुए रंगीन कांच जोड़ सकता था। यह आर्ट नई दिल्ली प्रदर्शनी का आकर्षण था।’
भगत सिंह का चित्र दूर से एक पेंटिंग की तरह दिखता है, लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि यह एक मोज़ेक कला है, जो छोटे रंगीन कांच के टुकड़ों क जोड कर बना है। भगत सिंह का शरीर ही नहीं, वह चारपाई और उसके पीछे की दीवारों को रंगों में कैद करता है, जो इसे एक जीवंत माहौल देता है। कला के प्रति उनकी यही तपस्या उन्हें दूसरों से अलग बनाती हैं। कला को लेकर उनके जेहन में अनेक ख्वाब हैं। संधू दशकों पहले अमेरिका के न्युयार्क शहर में जा बसे।
राजधानी के एफैक्स गैलरी में दुर्लभ पत्थरों को तराश कर उकेरी गईं तस्वीरें के पीछे की तपस्या को बताना उन्हें उत्तेजित करता है। प्रत्येक उकेरी गई तस्वीरों की उनकी अपनी कहानी है। वसूल के पक्के संधू कहते हैं- हम अपनी कला के व्यापारी नहीं हैं। हम अपनी कला को संस्थानों और संगठनों में टंगा देखना चाहते हैं। हम कला का सम्मान चाहते हैं। उनकी दिली इच्छा है कि स्वर्ण मंदिर की बनाई उनकी तस्वीरें दरवार साहेब की दीवारों पर टंगें दिखें..। लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसके लए उनसे संपर्क नहीं किया..। वह कहते हैं सिख पंथ के लिए प्रेरक उनकी स्वर्ण मंदिर की जीवंत तस्वीर मुफ्त में उपहार स्वरुप भेंट करते लेकिन किसी ने रुचि नहीं दिखाई।
पंजाब के मोगा में जन्मे हरजीत रोमनों द्वारा लोकप्रिय प्राचीन कला के एक सच्चे विश्व स्तर के व्यवसायी के रूप में उभरे हैं। उन्होंने न केवल भगत सिंह, बल्कि मदर थेरेसा, माइकल ब्लूमबर्ग, बाबा फरीद और अमेरिकी राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा के मोज़ेक कला प्रोफाइल भी बनाए हैं। वह दिल्ली में केवल दो आर्ट प्रदर्शिनी लगा सके क्योंकि प्रत्येक का भार परिवहन के लिए भारी था। कांच के इन कला को अमेरिका से लाना न केवल होल्डिंग संरचनाएं लगभग 100 किलो तक बढ़ जाती हैं बल्कि इसके विखरने का भी डर हता है। हरजीत संधू होशियारपुर आर्ट्स कॉलेज से कला में स्नातकोत्तर हैं। वह न्यूयॉर्क में बोरोक्स के निवासी हैं। वह लगभग प्रत्येक साल पंजाब में अपने पैतृक गांव मोगा आते हैं और अपनी कला के काम के साथ लोगों से मिलते हैं।
‘‘पच्चीकारी कला में एक सतह की सजावट, बारीकी से सेट से बने डिजाइनों के साथ आमतौर पर विभिन्न रंगों के, सामग्री के रुप में पत्थरों के टुकड़े, पत्थर, खनिज, कांच, टाइल ये चीजें उनकी कला काम में खास मदद करती। हालांकि मोज़ेक एक कला का रूप है जो व्यापक रूप से अलग-अलग जगहों पर और इतिहास में अलग-अलग समय पर दिखाई देता है। बीजान्टियम-और एक समय-चौथी से 14 वीं शताब्दी तक यह प्रमुख सचित्र कला बन गई। कला की इस शैली की ब्रिटानिका परिभाषा कहती है और भारत में इस शैली का अभ्यास करने वाले बहुत कम हैं।
हरजीत में एक शीर्ष भारतीय कलाकार बनने की भारी समझ है। उन्होंने कलाकार की दृष्टि को एक मास्टर शिल्पकार के साथ जोड़ने की दर कला को संयोजित किया है। उन्होंने कहा, ‘मुझे भगत सिंह जैसे महान व्यक्तित्व के पूरे चेहरे या पूरे शरीर को बनाने के लिए एक-एक करके वर्गाकार चश्मे के प्रत्येक टुकड़े को जोड़कर तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने इतिहास के लोगों के इन प्रोफाइलों को सावधानी से समझा है।’ चूंकि कला की यह शैली पीढ़ियों तक कला के काम के रूप में कायम रह सकती है, इसलिए वह उन ऐतिहासिक पात्रों को चित्रित करना पसंद करते हैं जिन्होंने मानवता में योगदान दिया, चाहे वह भगत सिंह हों या मदर टेरेसा। मदर टेरेसा पर हरजीत का काम दिल्ली के एक कला संग्राहक अशोक जैन ने एक बड़ी रकम में खरीदा था, क्योंकि जैन को उस काम में दिलचस्पी थी जो ऑनलाइन प्रदर्शित किया गया था। हरजीत की कला को 50 लाख में खरीदने वाले जैन ने कहा- ‘मैं आपका प्रशंसक हूं और विशेष रूप से मदर टेरेसा के आपके कार्यों ने मेरी कष्टि को किसी भी सौदेबाजी से परे बदल दिया।’ उन्होंने भगत सिंह के अपने काम की कीमत 10,000 डॉलर रखी है, क्योंकि इसे बनाने में उन्हें लगभग 8 महीने लगे थे और कहते हैं कि इसे बीमा के साथ भारत ले जाते समय और इसका परिवहन शुल्क 5000 डॉलर था। शहीद भगत सिंह का भतीजा और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त हरजीत की दिल्ली प्रदर्शनी में महत्वपूर्ण आगंतुक थे।
हालांकि हरजीत अप्रैल में ब्रोंक्स वापस चले जायेंगे। वह दिल्ली में भगत सिंह पर अपना काम छोड़ना पसंद करते है, क्योंकि यह न केवल भारत के लिए कीमती है, बल्कि परिवहन के लिए भी भारी है। उन्होंने इसके आसपास के पवित्र जल में इसके साथ-साथ प्रतिबिंबों के साथ स्वर्ण मंदिर की एक छवि भी बनाई है। यह प्रदर्शनी का खास आकर्षण था। हरजीत को देश के बाहर और पंजाब के विभिन्न संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया है, लेकिन मोगा में अपने दोस्तों के दबाव में नई दिल्ली में यह उनकी पहली प्रदर्शनी थी। उन्हें 2013 में चंडीगढ़ के रॉक गार्डन के निर्माता नेक चंद द्वारा सम्मानित किया गयाष न्यूयॉर्क में डिट्रा गैलरी और शिमला में एक वार्षिक कला प्रदर्शनी के अलावा कनाडा के सिख विरासत संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया था।
हरजीत की एफैक्स की पांच दिवसीय प्रदर्शनी में मार्च के आखिरी में आगंतुकों की कतार लग ई। हरजीत नए संसद भवन सहित आगामी सेंट्रल विस्टा भवन पर स्थापना कार्य पर काम करने के इच्छुक हैं। उन्हें उम्मीद है कि अधिकारी उन्हें ऐसा करने के लिए आमंत्रित करेंगे। हरजीत कहते हैं, ‘मैं न्यूयॉर्क में स्थित हूं, लेकिन मैं एक मोगा से जुड़ा व्यक्ति हूं।’ लेकिन चूंकि वह राजधानी के सत्ता गलियारों में नए हैं, ल हाजा उम्मीद की जा सकती है कि कोई इस दुर्लभ कलाकार को ढूंढेगा जो भारत में पारंमपरिक सार्वजनिक कला की हमारी अवधारणा को बढ़ा सकता है। कला इतिहासकार डॉ सरोज चमन टिप्पणी करते हैं-हरजीत मोज़ेक में काम करने के लिए खासे उत्साहित हैं। शानदार रंग, सोने की पारदर्शी चमक उनकी कृतियों की अनूठी विशेषताएं हैं जिसके माध्यम से उन्होंने ‘मुक्ति’ हासिल की। उनकी मोज़ेक कला भारत में दिखाई देगी या नहीं, हरजीत ने निश्चित रूप से न्यूयॉर्क से अपने काम के साथ दुनिया के महान मोज़ेक कलाकारों के इतिहास में प्रवेश किया है। मोजैक कलाकर इस बात बेफिक्र हैं कि उनकी दुर्लभ विधा की दूर -दूर तक न तो कोई प्रतिस्पर्धा है और न ही कोई चुनौती।